चमोलीः भू-बैकुंठ बदरीनाथ धाम के कपाट विधि-विधान के साथ खोल दिए हैं. कपाट खुलने के बाद देश-विदेश से काफी संख्या में श्रद्धालु बदरीनाथ धाम पहुंचकर भगवान बदरी विशाल के दर्शन कर रहे हैं. साथ ही धाम में स्थित अन्य दर्शनीय स्थलों के भी दर्शन कर अभिभूत हो रहे हैं. इसी क्रम में श्रद्धालु माणा रोड स्थित शेष नेत्र झील और शेष नेत्र शिला के भी दर्शन कर रहे हैं. जहां श्रद्धालु घी से शेषनेत्र शिला पर लेपन कर शेषनेत्र शिला की पूजा कर रहे हैं. माना जाता है कि नेत्र विकार से पीड़ित लोगों की आंखों पर यहां पर चढ़ाया लेप लगाने से नेत्र संबंधित दु:ख दर्द दूर हो जाते हैं.
बता दें कि बदरीनाथ धाम में माणा रोड पर नारायण पर्वत की तलहटी में शेष नेत्र झील और शिला स्थित है. बीते सालों शेष नेत्र झील का जलस्तर कम होने के कारण और झील के बड़े हिस्से में दलदल से झील के दर्शन के लिए आये तीर्थ यात्रियों को मायूसी हाथ लगती थी, लेकिन इस बार शीतकाल में कपाट बंद होने के बाद धाम में जमकर हुई बर्फबारी से शेषनेत्र झील पानी से पूरी तरह लबालब है. धाम की यात्रा पर आए श्रद्धालु झील और शेषनेत्र शिला के दर्शन करने उमड़ रहे हैं.
पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने जब भू बैकुंठ बदरीनाथ धाम में रहने की इच्छा जताई थी. उनके साथ शेषनाग ने भी बदरीनाथ धाम आने का आग्रह किया था, लेकिन भगवान विष्णु ने शेषनाग से कहा था कि आप नाग के रूप में भू बैकुंठ बदरीनाथ में रहेंगे तो मनुष्य आपके विशाल रूप को देखकर डरेंगे. ऐसे में आपके डर से लोग बदरीनाथ धाम नहीं पहुंचेंगे.
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भगवान विष्णु ने शेषनाग से कहा कि आप शेष नेत्र शिला के रूप में बदरीनाथ धाम में रह सकते हो, जिससे तुम हमेशा मेरे साथ ही मौजूद रहोगे. जिसके बाद शेषनाग ने भगवान विष्णु का आदेश मानकर शेषनेत्र झील के पास ही आंखनुमा शिला के रूप में अवतार लिया था. जिसके बाद से इसे शेष नेत्र शिला के नाम से जाना जाता है.
वहीं, पुजारी विजय प्रसाद पांडे ने बताया कि शेषनाग की आंखों से निकले पानी से शेषनेत्र झील का निर्माण हुआ है. यहां पर श्रद्धालु घी से शेषनेत्र शिला पर लेपन कर उनकी पूजा करते हैं. साथ ही बताया कि शेषनेत्र शिला पर लेपन किए गए घी को नेत्र विकार से पीड़ित मनुष्य की आंखों पर लगाने से नेत्र संबंधित दु:ख दर्द दूर हो जाते हैं.