ETV Bharat / state

पापड़ी त्योहार मनाने के पीछे ये है बूढ़ी मां और बेटी की मार्मिक कहानी, भूली बिसरी यादों को ताजा करते हैं लोग - Story of Papdi festival

उत्तराखंड में हर पर्व की अपनी विशेषता है, जिसे लोग धूमधाम से मनाते हैं. आज हम ऐसे ही पर्व के बारे में आपको बताने जा रहे हैं. जिसके पीछे एक मार्मिक लोग कथा भी जनश्रुति में प्रचलित है. जिससे इस पर्व का महत्व लोगों में और बढ़ जाता है. आइए आपको पर्व के बारे में विस्तार से बताते हैं.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By

Published : Apr 10, 2023, 8:07 AM IST

Updated : Apr 10, 2023, 9:52 AM IST

भूली बिसरी यादों को ताजा करते हैं लोग

धनौल्टी: इन दिनों पापड़ी का त्योहार पहाड़ी क्षेत्रों में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार का बच्चे, ध्याणी (व्याही हुई बेटी) बेसब्री से इंतजार करती हैं. जिसको लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिलता है. गुजरे जमाने में लोग त्योहार से पहले घरों की साफ-सफाई कर सजाते थे. इसके बाद बैसाखी की शुरुआत होते ही पूरे बैसाख माह में पहाड़ों में अलग-अलग जगहों में थौलू (मेले) का आयोजन किया जाता था. मेले में सभी लोग नाते-रिश्तेदार पापड़ी ले जाकर सामूहिक रूप में एक जगह पर बैठकर बड़े चाव से खाते थे और भूली बिसरी यादों को आपस में साझा करते थे. हालांकि बदलते समय में मेलों का क्रेज कुछ कम हुआ है. लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक पापड़ी त्योहार आज भी उसी अंदाज में मनाया जाता है.

पापड़ी त्योहार मनाने की परंपरा: पापड़ी त्यौहार की परंपरा को मनाने के पीछे एक गरीब ध्याणी (व्याही हुई बेटी) की कहानी है जो कि अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी. पिता के गुजर जाने के बाद मायके में केवल उसकी बूढ़ी मां ही रहती थी. बैसाखी की मेलों के लिए जब वह अपने मायके पहुंची तो मां की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण त्योहार मनाने का मन नहीं किया. जिससे उसकी मां की आंखों में आंसू आ गए, यह देखकर बेटी ने घर के कोने में रखी चावल की पोटली को निकाला और उसे ओखली में कूट कर उसकी पापड़ी बनाई और सहेलियों के साथ मेले में जाकर बड़े चाव से खाया.
पढ़ें-कौवों के लिए बनाए जाते हैं खास पकवान, जानिए घुघुतिया के पीछे की पौराणिक कथा

साल भर सुरक्षित रहती है पापड़ी: ससुराल जाते वक्त भी वह अन्य सहेलियों की तरह टोकरी भर कलेऊ (घर में आये आगंतुकों को दिये जाने वाले पकवान) साथ ले गई. अन्य सहेलियों की तरह कलेऊ के साथ बेटी की विदाई होते देख उसकी मां काफी खुश हुई. तब से पापड़ी का त्योहार मनाया जा रहा है. पापड़ी बनाने में केवल चावल का ही उपयोग होता है. एक किलो चावल में काफी पापड़ी तैयार हो जाती है जो साल भर तक सुरक्षित रहती है. पापड़ी को जरूरत के हिसाब से जब चाहे तब बिना मसाले के बहुत कम तेल में फ्राई कर तैयार किया जा सकता है. जिसे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग बनाकर रखते हैं.
पढ़ें-कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार की धूम, पर्व की ये है रोचक कथा

ऐसे बनाई जाती है पापड़ी: पापड़ी बनाने के लिए चावलों को भिगोकर उसे ओखली में कूटा जाता है. फिर छननी से उसे छानकर चावल के बारीक पाउडर के साथ नमक मिलाकर, चावल के पाउडर का पानी में घोल बनाया जाता है. चावल के घोल को चौड़े हरे पत्तों या पतली तस्तरी नुमा बर्तन पर फैलाकर चूल्हे के ऊपर गर्म पानी के भाप में पकाया जाता है, फिर धूप में सुखाया जाता है. पापड़ी की विशेषता है कि यह साल भर तक भी खराब नहीं होती. ये केवल चिप्स की तरह जरूरत के हिसाब से तेल में तली जाती है और और मेहमान नवाजी में भी इसका बड़ा क्रेज है. इसे लोग अपने सगे संबंधियों के लिए भी भेजते हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक पापड़ी त्योहार आज भी लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. हालांकि बदलते समय मे मेलों का क्रेज कुछ कम हुआ है. लेकिन पापड़ी लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखती है.

भूली बिसरी यादों को ताजा करते हैं लोग

धनौल्टी: इन दिनों पापड़ी का त्योहार पहाड़ी क्षेत्रों में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार का बच्चे, ध्याणी (व्याही हुई बेटी) बेसब्री से इंतजार करती हैं. जिसको लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिलता है. गुजरे जमाने में लोग त्योहार से पहले घरों की साफ-सफाई कर सजाते थे. इसके बाद बैसाखी की शुरुआत होते ही पूरे बैसाख माह में पहाड़ों में अलग-अलग जगहों में थौलू (मेले) का आयोजन किया जाता था. मेले में सभी लोग नाते-रिश्तेदार पापड़ी ले जाकर सामूहिक रूप में एक जगह पर बैठकर बड़े चाव से खाते थे और भूली बिसरी यादों को आपस में साझा करते थे. हालांकि बदलते समय में मेलों का क्रेज कुछ कम हुआ है. लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक पापड़ी त्योहार आज भी उसी अंदाज में मनाया जाता है.

पापड़ी त्योहार मनाने की परंपरा: पापड़ी त्यौहार की परंपरा को मनाने के पीछे एक गरीब ध्याणी (व्याही हुई बेटी) की कहानी है जो कि अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी. पिता के गुजर जाने के बाद मायके में केवल उसकी बूढ़ी मां ही रहती थी. बैसाखी की मेलों के लिए जब वह अपने मायके पहुंची तो मां की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण त्योहार मनाने का मन नहीं किया. जिससे उसकी मां की आंखों में आंसू आ गए, यह देखकर बेटी ने घर के कोने में रखी चावल की पोटली को निकाला और उसे ओखली में कूट कर उसकी पापड़ी बनाई और सहेलियों के साथ मेले में जाकर बड़े चाव से खाया.
पढ़ें-कौवों के लिए बनाए जाते हैं खास पकवान, जानिए घुघुतिया के पीछे की पौराणिक कथा

साल भर सुरक्षित रहती है पापड़ी: ससुराल जाते वक्त भी वह अन्य सहेलियों की तरह टोकरी भर कलेऊ (घर में आये आगंतुकों को दिये जाने वाले पकवान) साथ ले गई. अन्य सहेलियों की तरह कलेऊ के साथ बेटी की विदाई होते देख उसकी मां काफी खुश हुई. तब से पापड़ी का त्योहार मनाया जा रहा है. पापड़ी बनाने में केवल चावल का ही उपयोग होता है. एक किलो चावल में काफी पापड़ी तैयार हो जाती है जो साल भर तक सुरक्षित रहती है. पापड़ी को जरूरत के हिसाब से जब चाहे तब बिना मसाले के बहुत कम तेल में फ्राई कर तैयार किया जा सकता है. जिसे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग बनाकर रखते हैं.
पढ़ें-कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार की धूम, पर्व की ये है रोचक कथा

ऐसे बनाई जाती है पापड़ी: पापड़ी बनाने के लिए चावलों को भिगोकर उसे ओखली में कूटा जाता है. फिर छननी से उसे छानकर चावल के बारीक पाउडर के साथ नमक मिलाकर, चावल के पाउडर का पानी में घोल बनाया जाता है. चावल के घोल को चौड़े हरे पत्तों या पतली तस्तरी नुमा बर्तन पर फैलाकर चूल्हे के ऊपर गर्म पानी के भाप में पकाया जाता है, फिर धूप में सुखाया जाता है. पापड़ी की विशेषता है कि यह साल भर तक भी खराब नहीं होती. ये केवल चिप्स की तरह जरूरत के हिसाब से तेल में तली जाती है और और मेहमान नवाजी में भी इसका बड़ा क्रेज है. इसे लोग अपने सगे संबंधियों के लिए भी भेजते हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक पापड़ी त्योहार आज भी लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. हालांकि बदलते समय मे मेलों का क्रेज कुछ कम हुआ है. लेकिन पापड़ी लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखती है.

Last Updated : Apr 10, 2023, 9:52 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.