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टिहरी झील में विलुप्ति की कगार पर कई प्रजातियों की मछलियां, मंत्री ने मांगी रिपोर्ट - टिहली में मछलियों की प्रजाति विलुप्त

टिहरी झील में विदेश मछलिया स्थानीय मछलियों के लिए खतरा बन रही है. विदेश मछली कॉमन कार्प के कारण मछलियों की करीब दस स्थानीय प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर है.

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टिहरी झील
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Published : Dec 5, 2019, 6:58 PM IST

टिहरी: 42 वर्ग किमी में फैली टिहरी झील में स्थानीय मछलियों के अस्तिव पर खतरा मंडराने लगा है. टिहरी झील बनने से पूर्व भागीरथी और भिलंगना नदी में पाई जाने वाली लगभग दस प्रजातियों की मछलियां अब झील से गायब हो चुकी हैं. इसे लेकर मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री रेखा आर्य ने टिहरी जिला मत्स्य विभाग से रिपोर्ट मांगी है.

विदेश कॉमन कार्प मछली बनी बड़ी वजह
एक बड़ी चिंता का विषय ये है कि टिहरी झील में मछलियों जिनकी दस प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं. इसकी प्रमुख वजह विदेशी कॉमन कार्प मछली की तेजी से बढ़ती संख्या है. कॉमन कार्प के रहते स्थानीय मछलियों को झील में रहने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है. अगर स्थानीय मछलियों को संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले समय में यह पूरी तरह विलुप्त हो जाएगी.

टिहरी झील में विलुप्ति की कगार पर कई प्रजातियों की मछलियां

पढ़ें- अब जंगल में मोबाइल ऐप से गश्ती दल पर रहेगी नजर, वन्यजीवों की गतिविधियां का भी चलेगा पता

असेला मछली भी हो चुकी है विलुप्त
साल 2006 में टिहरी बांध की झील बनने से पहले भागीरथी और भिलंगना नदी में प्रसिद्ध स्थानीय मछली असेला समेत 13 अन्य प्रजाति की मछलियां पाई जाती थी. लेकिन झील बनने के बाद इनमें से दस प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं. अब मात्र तीन स्थानीय प्रजाति की मछलियां ही झील में रह गई हैं. इनमें नाऊ, चौंगु और महाशीर प्रजाति शामिल हैं.

स्थानीय मछलियों के अस्तिव पर खतरा
टिहरी झील में बीते कुछ सालों के दौरान विदेशी कॉमन कार्प मछली की संख्या तेजी से बढ़ी है. यह मछली आसानी से झील के पानी में स्थापित हो जाती है, जिससे स्थानीय मछलियों के वास और भोजन स्थल में कमी आई है. कॉमन कार्प ने स्थानीय मछलियों के रहने और खाने के स्थलों पर कब्जा जमा लिया है. अब स्थानीय मछलियां भागीरथी में चिन्यालीसौड़ से उत्तरकाशी की तरफ और भिलंगना में केवल घनसाली में ही मिल रही हैं. ऐसे में अगर स्थानीय मछलियों के वास स्थलों का संरक्षण नहीं हुआ तो कॉमन कार्प यहां से भी इन्हें बाहर कर देगी.

पढ़ें- विधानसभा में उठा आपदा का मुद्दा, पीड़ितों को 10 लाख मुआवजा देने की मांग

इन प्रजातियों पर सकंट
असेला, असेला की तीन अन्य प्रजाति साइजोथोरेक्स रिचार्डसोनी, साइजोथोरेक्स प्लेजियोस्टोमस व साइजोथोरेक्स कर्वीप्रोन, मसीन, खरोंट, गुंथला, फुलरा, गडियाल व नाऊ.

क्या कहता है विभाग
मत्स्य विभाग की मानें तो उत्तरकाशी के कल्याणी में विभाग की हैचरी में कॉमन कार्प का सीड तैयार किया जाती था. करीब दस साल पहले बाढ़ के कारण हैचरी क्षतिग्रस्त हो गया था और सारी कॉमन कार्प मछली बहकर भागीरथी नदी में आ गई थी. इसके बाद ये मछलियां तेजी से बढ़ी हैं. इस वजह से स्थानीय मछलियों के वास और भोजन स्थल में कमी आई है. इसके अलावा विभाग का ये भी मानना है कि महाशीर मछली की कमी का बड़ा कारण अवैध शिकार भी है.

टिहरी: 42 वर्ग किमी में फैली टिहरी झील में स्थानीय मछलियों के अस्तिव पर खतरा मंडराने लगा है. टिहरी झील बनने से पूर्व भागीरथी और भिलंगना नदी में पाई जाने वाली लगभग दस प्रजातियों की मछलियां अब झील से गायब हो चुकी हैं. इसे लेकर मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री रेखा आर्य ने टिहरी जिला मत्स्य विभाग से रिपोर्ट मांगी है.

विदेश कॉमन कार्प मछली बनी बड़ी वजह
एक बड़ी चिंता का विषय ये है कि टिहरी झील में मछलियों जिनकी दस प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं. इसकी प्रमुख वजह विदेशी कॉमन कार्प मछली की तेजी से बढ़ती संख्या है. कॉमन कार्प के रहते स्थानीय मछलियों को झील में रहने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है. अगर स्थानीय मछलियों को संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले समय में यह पूरी तरह विलुप्त हो जाएगी.

टिहरी झील में विलुप्ति की कगार पर कई प्रजातियों की मछलियां

पढ़ें- अब जंगल में मोबाइल ऐप से गश्ती दल पर रहेगी नजर, वन्यजीवों की गतिविधियां का भी चलेगा पता

असेला मछली भी हो चुकी है विलुप्त
साल 2006 में टिहरी बांध की झील बनने से पहले भागीरथी और भिलंगना नदी में प्रसिद्ध स्थानीय मछली असेला समेत 13 अन्य प्रजाति की मछलियां पाई जाती थी. लेकिन झील बनने के बाद इनमें से दस प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं. अब मात्र तीन स्थानीय प्रजाति की मछलियां ही झील में रह गई हैं. इनमें नाऊ, चौंगु और महाशीर प्रजाति शामिल हैं.

स्थानीय मछलियों के अस्तिव पर खतरा
टिहरी झील में बीते कुछ सालों के दौरान विदेशी कॉमन कार्प मछली की संख्या तेजी से बढ़ी है. यह मछली आसानी से झील के पानी में स्थापित हो जाती है, जिससे स्थानीय मछलियों के वास और भोजन स्थल में कमी आई है. कॉमन कार्प ने स्थानीय मछलियों के रहने और खाने के स्थलों पर कब्जा जमा लिया है. अब स्थानीय मछलियां भागीरथी में चिन्यालीसौड़ से उत्तरकाशी की तरफ और भिलंगना में केवल घनसाली में ही मिल रही हैं. ऐसे में अगर स्थानीय मछलियों के वास स्थलों का संरक्षण नहीं हुआ तो कॉमन कार्प यहां से भी इन्हें बाहर कर देगी.

पढ़ें- विधानसभा में उठा आपदा का मुद्दा, पीड़ितों को 10 लाख मुआवजा देने की मांग

इन प्रजातियों पर सकंट
असेला, असेला की तीन अन्य प्रजाति साइजोथोरेक्स रिचार्डसोनी, साइजोथोरेक्स प्लेजियोस्टोमस व साइजोथोरेक्स कर्वीप्रोन, मसीन, खरोंट, गुंथला, फुलरा, गडियाल व नाऊ.

क्या कहता है विभाग
मत्स्य विभाग की मानें तो उत्तरकाशी के कल्याणी में विभाग की हैचरी में कॉमन कार्प का सीड तैयार किया जाती था. करीब दस साल पहले बाढ़ के कारण हैचरी क्षतिग्रस्त हो गया था और सारी कॉमन कार्प मछली बहकर भागीरथी नदी में आ गई थी. इसके बाद ये मछलियां तेजी से बढ़ी हैं. इस वजह से स्थानीय मछलियों के वास और भोजन स्थल में कमी आई है. इसके अलावा विभाग का ये भी मानना है कि महाशीर मछली की कमी का बड़ा कारण अवैध शिकार भी है.

Intro:टिहरी
टिहरी झील में महासीर मछलियों की पैदा वार में कमी आने से राज्यमंत्री रेखा आर्य ने टिहरी जिला मत्स्य बिभाग से मांगी जांच रिपोर्ट,Body: 42 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली टिहरी झील में महासीर मछली की कमी होने पर प्रदेश की महिला कल्याण एवं बाल विकास, पशुपालन, भेड़ एवं बकरी पालन, चारा एवं चारागाह विकास एवं मत्स्य विकास राज्यमंत्री(स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्या ने टिहरी जिला मत्स्य बिभाग से रिपोर्ट मांगी है,

टिहरी झील बनने से पूर्व भागीरथी और भिलंगना नदी में पाई जाने वाली लगभग दस प्रजाति की मछलियां अब झील से गायब हो चुकी हैं।

टिहरी झील में दो प्रजाति के मछलियों के बीजों को मस्तस्य बिभाग द्वारा डाला गया है जिसमे एक महासीर दूसरी कॉमन कार्प है


विदेशी कॉमन कार्प मछली की तेजी से बढ़ती संख्या इसकी प्रमुख वजह है। कॉमन कार्प के रहते स्थानीय मछलियों को झील में रहने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। अगर स्थानीय मछलियों को संरक्षण नहीं दिया गया तो आने वाले समय में यह पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगी।

विदित हो कि प्रसिद्ध असेला मछली भी झील से विलुप्त हो चुकी है। 

वर्ष 2006 में टिहरी बांध की झील बनने से पूर्व भागीरथी और भिलंगना नदी में प्रसिद्ध स्थानीय मछली असेला समेत 13 अन्य प्रजाति की मछलियां पाई जाती थीं, लेकिन झील बनने के बाद इनमें से दस प्रजाति विलुप्त हो चुकी हैं। अब मात्र तीन स्थानीय प्रजाति की मछलियां ही झील में रह गई हैं। इनमें नाऊ, चौंगु और महाशीर प्रजाति शामिल हैं।

टिहरी झील में बीते कुछ सालों के दौरान विदेशी कॉमन कार्प मछली की संख्या तेजी से बढ़ी है। यह मछली आसानी से झील के पानी में स्थापित हो जाती है, जिससे स्थानीय मछलियों के वास और भोजन स्थल में कमी आई है। कॉमन कार्प ने स्थानीय मछलियों के रहने और खाने के स्थलों पर कब्जा जमा लिया है। अब स्थानीय मछलियां भागीरथी में चिन्यालीसौड़ से उत्तरकाशी की तरफ और भिलंगना में केवल घनसाली में ही मिल रही हैं। ऐसे में अगर स्थानीय मछलियों के वास स्थलों का संरक्षण नहीं हुआ तो कॉमन कार्प यहां से भी इन्हें बाहर कर देगी। 

स्थानीय मछलियों की विलुप्ति के कारण 
असेला, असेला की तीन अन्य प्रजाति साइजोथोरेक्स रिचार्डसोनी, साइजोथोरेक्स प्लेजियोस्टोमस व साइजोथोरेक्स कर्वीप्रोन, मसीन,  खरोंट, गुंथला, फुलरा, गडियाल व नाऊ।

मत्स्य विभाग की मानें तो उत्तरकाशी के कल्याणी में विभाग की हैचरी में कॉमन कार्प का सीड तैयार किया जाता था। करीब दस साल पहले बाढ़ के कारण हैचरी क्षतिग्रस्त होने से कॉमन कार्प भागीरथी में आ गई। इसके बाद इसकी संख्या बेहद तेजी से बढ़ी है। Conclusion:यह भी माना जा रहा है कि महासीर मछली की कमी का कारण अबैध तरीके से शिकार करना है साथ मत्स्य बिभाग द्वार जो टेंडर मछली मारने वाला को दिया है भी ज्यादा मात्रा के महासीर मछली का शिकार कर रहै है

बाइट रेखा आर्य मंत्री
पीटीसी अरविंद
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