टिहरी: 42 वर्ग किमी में फैली टिहरी झील में स्थानीय मछलियों के अस्तिव पर खतरा मंडराने लगा है. टिहरी झील बनने से पूर्व भागीरथी और भिलंगना नदी में पाई जाने वाली लगभग दस प्रजातियों की मछलियां अब झील से गायब हो चुकी हैं. इसे लेकर मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री रेखा आर्य ने टिहरी जिला मत्स्य विभाग से रिपोर्ट मांगी है.
विदेश कॉमन कार्प मछली बनी बड़ी वजह
एक बड़ी चिंता का विषय ये है कि टिहरी झील में मछलियों जिनकी दस प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं. इसकी प्रमुख वजह विदेशी कॉमन कार्प मछली की तेजी से बढ़ती संख्या है. कॉमन कार्प के रहते स्थानीय मछलियों को झील में रहने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है. अगर स्थानीय मछलियों को संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले समय में यह पूरी तरह विलुप्त हो जाएगी.
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असेला मछली भी हो चुकी है विलुप्त
साल 2006 में टिहरी बांध की झील बनने से पहले भागीरथी और भिलंगना नदी में प्रसिद्ध स्थानीय मछली असेला समेत 13 अन्य प्रजाति की मछलियां पाई जाती थी. लेकिन झील बनने के बाद इनमें से दस प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं. अब मात्र तीन स्थानीय प्रजाति की मछलियां ही झील में रह गई हैं. इनमें नाऊ, चौंगु और महाशीर प्रजाति शामिल हैं.
स्थानीय मछलियों के अस्तिव पर खतरा
टिहरी झील में बीते कुछ सालों के दौरान विदेशी कॉमन कार्प मछली की संख्या तेजी से बढ़ी है. यह मछली आसानी से झील के पानी में स्थापित हो जाती है, जिससे स्थानीय मछलियों के वास और भोजन स्थल में कमी आई है. कॉमन कार्प ने स्थानीय मछलियों के रहने और खाने के स्थलों पर कब्जा जमा लिया है. अब स्थानीय मछलियां भागीरथी में चिन्यालीसौड़ से उत्तरकाशी की तरफ और भिलंगना में केवल घनसाली में ही मिल रही हैं. ऐसे में अगर स्थानीय मछलियों के वास स्थलों का संरक्षण नहीं हुआ तो कॉमन कार्प यहां से भी इन्हें बाहर कर देगी.
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इन प्रजातियों पर सकंट
असेला, असेला की तीन अन्य प्रजाति साइजोथोरेक्स रिचार्डसोनी, साइजोथोरेक्स प्लेजियोस्टोमस व साइजोथोरेक्स कर्वीप्रोन, मसीन, खरोंट, गुंथला, फुलरा, गडियाल व नाऊ.
क्या कहता है विभाग
मत्स्य विभाग की मानें तो उत्तरकाशी के कल्याणी में विभाग की हैचरी में कॉमन कार्प का सीड तैयार किया जाती था. करीब दस साल पहले बाढ़ के कारण हैचरी क्षतिग्रस्त हो गया था और सारी कॉमन कार्प मछली बहकर भागीरथी नदी में आ गई थी. इसके बाद ये मछलियां तेजी से बढ़ी हैं. इस वजह से स्थानीय मछलियों के वास और भोजन स्थल में कमी आई है. इसके अलावा विभाग का ये भी मानना है कि महाशीर मछली की कमी का बड़ा कारण अवैध शिकार भी है.