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मां सुरकंडा देवी के दर्शन मात्र दूर हो जाते हैं सब कष्ट, जानिए क्या है मान्यता

टिहरी जिले में सुरकंडा देवी हिन्दूओं का प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है, जोकि नौ देवी के रूपों में से एक है. यह मंदिर टिहरी जिले के चंबा मसूरी-मोटर मार्ग पर कद्दूखाल से डेढ़ किमी उपर करीब तीन हजार फुट की ऊंचाई सुरकुट पर्वत पर स्थित है.

Surkanda Devi
मां सुरकंडा
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Published : Oct 24, 2020, 6:01 AM IST

टिहरी: जिले में सुरकंडा देवी हिन्दूओं का प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है, जोकि नौ देवी के रूपों में से एक है. सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठ में से है. यह मंदिर टिहरी जिले के चंबा मसूरी-मोटर मार्ग पर कद्दूखाल से डेढ़ किमी उपर करीब तीन हजार फुट की ऊंचाई सुरकुट पर्वत पर है. मां सुरकंडा मंदिर की मान्‍यता है कि मां के दर्शन करने से सभी के पाप मिट जाते हैं.

पौराणिक लोग बताते है कि, पुराण में लिखा है कि जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया था. तो उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया. लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. इससे क्रोधित होकर शिव की पत्नी और राजा दक्ष की पुत्री यज्ञ में चली गई. वहां उनका अपमान हुआ. जिसके बाद वह यज्ञकुंड में कूद गई. इस पर शिव ने क्रोधित होकर सती का शव त्रिशूल में लटकाकर हिमालय में चारों ओर घुमाया. भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कटकर सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा. जिसके बाद से ही इस जगह का नाम सुरकुट पड़ा. जो बाद में सिद्वपीठ सुरकंडा के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

मां सुरकंडा देवी.

मां सुरकंडा मंदिर की एक और मान्यता है कि जब राजा भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर ला रहे थे उस समय शिव की जटाओं से गंगा की एक धारा निकलकर सुरकुट पर्वत पर गिरी. इसका प्रमाण के रूप में मंदिर के नीचे की पहाड़ी पर जलस्रोत फूटता है. दशहरे और नवरात्र पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व बताया गया है. इन अवसरों पर मां के दर्शन करने से सभी पाप मिट जाते हैं.

पढ़ें: नवरात्रि का सातवां दिन आज, कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य देवी हैं हाट कालिका

आपको बता दें कि, मां सुरकंडा मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है, इस मंदिर तक पहुंचने के लिए हर जगह से वाहनों की सुविधा है. मंदिर के नीचे कद्दूखाल तक वाहनों से पहुंचना पड़ता है. उसके बाद करीब डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़कर मंदिर पहुंचते हैं. कद्दूखाल से मंदिर आने-जाने के लिए घोड़े भी उपलब्ध है.

बाहर से आने वाले यात्री ऋषिकेश से चंबा 60 किमी, चंबा से कद्दूखाल 20 किमी वाहन से आ सकते हैं. वाहन दिन में हर समय मिल जाती हैं. इसके अलावा देहरादून से मसूरी होकर करीब 60 किमी की दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंच सकते हैं. मुख्य रेल मार्ग हरिद्वार और देहरादून है. जबकि नजदीकी हवाई अड्डा जॉलीग्रांट है.

बता दें कि, सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर वर्षभर खुला रहता है. यहां श्रद्धालु कभी भी आ सकते हैं. यहां हमेशा मौसम ठंडा रहता है, लेकिन दिसंबर, जनवरी और फरवरी माह में ठंड अधिक रहती है. सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर के पुजारी रमेश प्रसाद लेखवार का कहना है कि मां सुरकंडा के दर्शनों का विशेष महत्तव है, यहां सभी की मनोकामना पूर्ण होती है.

टिहरी: जिले में सुरकंडा देवी हिन्दूओं का प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है, जोकि नौ देवी के रूपों में से एक है. सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठ में से है. यह मंदिर टिहरी जिले के चंबा मसूरी-मोटर मार्ग पर कद्दूखाल से डेढ़ किमी उपर करीब तीन हजार फुट की ऊंचाई सुरकुट पर्वत पर है. मां सुरकंडा मंदिर की मान्‍यता है कि मां के दर्शन करने से सभी के पाप मिट जाते हैं.

पौराणिक लोग बताते है कि, पुराण में लिखा है कि जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया था. तो उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया. लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. इससे क्रोधित होकर शिव की पत्नी और राजा दक्ष की पुत्री यज्ञ में चली गई. वहां उनका अपमान हुआ. जिसके बाद वह यज्ञकुंड में कूद गई. इस पर शिव ने क्रोधित होकर सती का शव त्रिशूल में लटकाकर हिमालय में चारों ओर घुमाया. भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कटकर सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा. जिसके बाद से ही इस जगह का नाम सुरकुट पड़ा. जो बाद में सिद्वपीठ सुरकंडा के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

मां सुरकंडा देवी.

मां सुरकंडा मंदिर की एक और मान्यता है कि जब राजा भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर ला रहे थे उस समय शिव की जटाओं से गंगा की एक धारा निकलकर सुरकुट पर्वत पर गिरी. इसका प्रमाण के रूप में मंदिर के नीचे की पहाड़ी पर जलस्रोत फूटता है. दशहरे और नवरात्र पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व बताया गया है. इन अवसरों पर मां के दर्शन करने से सभी पाप मिट जाते हैं.

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आपको बता दें कि, मां सुरकंडा मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है, इस मंदिर तक पहुंचने के लिए हर जगह से वाहनों की सुविधा है. मंदिर के नीचे कद्दूखाल तक वाहनों से पहुंचना पड़ता है. उसके बाद करीब डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़कर मंदिर पहुंचते हैं. कद्दूखाल से मंदिर आने-जाने के लिए घोड़े भी उपलब्ध है.

बाहर से आने वाले यात्री ऋषिकेश से चंबा 60 किमी, चंबा से कद्दूखाल 20 किमी वाहन से आ सकते हैं. वाहन दिन में हर समय मिल जाती हैं. इसके अलावा देहरादून से मसूरी होकर करीब 60 किमी की दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंच सकते हैं. मुख्य रेल मार्ग हरिद्वार और देहरादून है. जबकि नजदीकी हवाई अड्डा जॉलीग्रांट है.

बता दें कि, सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर वर्षभर खुला रहता है. यहां श्रद्धालु कभी भी आ सकते हैं. यहां हमेशा मौसम ठंडा रहता है, लेकिन दिसंबर, जनवरी और फरवरी माह में ठंड अधिक रहती है. सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर के पुजारी रमेश प्रसाद लेखवार का कहना है कि मां सुरकंडा के दर्शनों का विशेष महत्तव है, यहां सभी की मनोकामना पूर्ण होती है.

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