टिहरी: सभी पार्टियों के दिग्गज 2019 के चुनावी महासंग्राम में उतर चुके हैं. सभी नेता अपने तरकस से सियासी तीर छोड़ने में लगे हुए हैं. विपक्ष जहां राफेल और चौकीदार चोर के नारे के सहारे केंद्र सरकार को घेरने में लगा हुआ है तो वहीं सत्ताधारी पार्टी चौकीदार के दम पर अपने आप को फिर से सत्ता पर काबिज करने की कवायद में जुटी हुई है. लेकिन इन सब के बीच उत्तराखंड में स्थानीय मुद्दे गौण है.
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उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीट पर 11 अप्रैल को मतदान होना है. सभी प्रत्याशी वोटरों को लुभाने के लिए उनके बीच पहुंचे रहे हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम भी जनता के बीच पहुंची और उनकी समस्याओं को सुना. ईटीवी भारत ने टिहरी लोकसभा क्षेत्र के प्रतापनगर का रुख किया और यहां के लोगों की समस्याओं को जाना. बता दें कि गढ़वाल टिहरी लोकसभा सीट से बीजेपी की निर्वतमान सांसद राज्यलक्ष्मी शाह हैं. इस बार भी वो मैदान में हैं. वहीं उनके खिलाफ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह चुनावी मैदान में हैं.
नाव के सहारे 100 गांव
ईटीवी भारत की टीम सबसे पहले कोटी कॉलोनी पहुंची, जहां टीम नाव से प्रतापनगर तहसील गई. प्रतापनगर तहसील के अंतर्गत 100 से ज्यादा गांव आते हैं. जिन्हें जिला मुख्यालय टिहरी तक आने के लिए रोजाना इसी नाव का सहारा लेना पड़ता है. सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक ये नाव दिन में तीन बार आती-जाती है. रविवार को ये नाव बंद रहती है. इस दौरान यदि किसी ग्रामीण या फिर प्रतापनगर के स्थानीय निवासी को कुछ जरूरी काम से जिला मुख्यालय टिहरी जाने पड़े तो उसके लिए घनसाली या पिपल डाली पुल से होकर जाना पड़ता है. जिसके लिए उसे 85 किमी का लंबा सफर तय करना पड़ता है.
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14 सालों से अधर में लटका पुल निर्माण का कार्य
सड़क मार्ग की दूरी कम करने के लिए टिहरी झील पर डोबरा-चांठी पुल बनाया जा रहा है, लेकिन आप को जानकर हैरानी होगी कि निर्माणाधीन डोबरा-चांठी पुल पिछले 14 सालों से सियासी मुद्दा बनकर रह गया है. डोबरा-चांठी पुल का निर्माण कार्य 2005 में शुरू हुआ था, जो आजतक पूरा नहीं हुआ. इस पुल के बनने से प्रतापनगर से टिहरी की दूरी मात्र 22 किमी रह जाएगी.
नाव से सफर करने वाले कुछ लोगों ने बात करते हुए सरकार के खिलाफ नाराजगी दिखाई. उनका कहना था कि चुनाव के समय तो नेता पहाडो़ं में ऐसी जगह पर भी पहुंच जाते हैं जहां कभी बंदर भी नहीं जा पाते और चुनाव खत्म होते वो 5 सालों को तक उन इलाके में नजर भी नहीं आते हैं. कुछ ग्रामीणों का कहना है कि झील में कभी भी लहर आने का खतरा बना रहता है. ऐसे में स्थानीय जान जोखिम में डालकर सफर करते है.