टिहरी: नई टिहरी में बांध प्रभावित 20 गांव के 600 परिवारों ने इस बार लोकसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार करने का एलान किया है. ग्रामीणों का आरोप है कि 2010 से अबतक उन्हें सिर्फ बेवकूफ बनाया जा रहा है. चुनाव के दौरान प्रत्याशी विस्थापन के झूठे दावे करते हैं और चुनाव खत्म होने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है. जिससे तंग आकर उन्होंने इस बार चुनाव बहिष्कार का एलान किया है.
ग्रामीणों का कहना है कि 2005 में टिहरी बांध बनना शुरू हो गया था. जिसके बाद से ही लोग पुर्नवास की आस लगाए बैठे हैं. उन्होंने बताया कि टिहरी बांध बनने के बाद से तहसील और आसपास के 20 गांवों की जमीन में दरार पड़ने के साथ ही भूस्खलन भी होने लगा था. लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.
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वहीं, तत्कालीन सरकार ने खतरे की जद में आए करीब 45 गांवों का भूगर्भीय सर्वेक्षण भी करवाया. सर्वेक्षण के आधार पर 20 गांव के 415 परिवारों का पुनर्वास प्रस्ताव पारित कर वन भूमि हस्तांतरण का प्रस्ताव को भारत सरकार को भेजा गया. लेकिन भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. जिससे ये मामला अभी तक लंबित पड़ा है. लिहाजा, गांवों के पुनर्वास की कार्रवाई भूमि चयन तक सिमट कर रह गई है.
बता दें कि भूगर्भ वैज्ञानिकों ने अपने सर्वेक्षण रिपोर्ट में लिखा था कि रौलकोट, गडोली, भलड़गांव को तत्काल प्रभाव विस्थापित किया जाए. साथ ही इन गांवों के विस्थापन के लिए हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से भी ऑर्डर आया था. बावजूद इसके आज तक इन गांवों का विस्थापन नहीं किया गया.
ग्रामीणों ने कहा कि चुनाव के बाद सभी जनप्रतिनिधि ग्रामीणों की समस्याओं से किनारा कर लेते हैं. जिससे परेशान होकर सभी ग्रामीणों ने इस बार चुनाव बहिष्कार का एलान किया है. वहीं, अधिकारियों का कहना है कि इन गांव के विस्थापन का मामला शासन को भेज दिया गया है. जैसे ही निर्देश मिलेंगे उस आधार पर विस्थापन की कार्रवाई की जाएगी.