टिहरीः आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र 2022 चल रहे हैं. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. आज दुर्गा अष्टमी है. इस मौके पर विभिन्न मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ी रही. इसी कड़ी में प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी के मंदिर में भी भक्तों का तांता लगा रहा है. कई भक्त पैदल तो कई ट्रॉली के माध्यम से मंदिर पहुंच रहे हैं और मां सुरकंडा के दर्शन कर रहे हैं. माना जाता है कि यहां आने वाले किसी भी भक्त को देवी मां निराश नहीं करती है.
क्या है पौराणिक मान्यताः मान्यता है कि जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया. भगवान शिव के मना करने पर भी उनकी पत्नी और राजा दक्ष की पुत्री सती भी यज्ञ में गई. जहां उसका घोर अपमान हुआ तो वो यज्ञ कुंड में कूद गई. जिससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और तांडव करने लगे.
भगवान शिव ने सती का देह त्रिशूल में लटकाकर हिमालय में चारों ओर घुमाया. जिससे हाहाकार मच गया. जिसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के देह को काट दिया. जिससे माता सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा. तब से इस जगह का नाम सुरकुट पड़ा, जो बाद में सिद्धपीठ सुरकंडा के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इनका उल्लेख केदारखंड और स्कंद पुराण में भी मिलता है.
शिव की जटाओं से निकली धारा यहां पर भी गिरी थीः इस सिद्ध पीठ के पीछे एक और मान्यता ये भी है कि जब राजा भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे तो उस समय शिव की जटाओं से गंगा की एक धारा निकलकर सुरकुट पर्वत पर गिरी थी. इसका प्रमाण के रूप में मंदिर के नीचे की पहाड़ी पर जल स्रोत फूटता है. दशहरा और नवरात्रि पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व बताया गया है. इन अवसरों पर मां के दर्शन करने से समस्त पाप मिट जाते हैं.
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टिहरी जिले के जौनपुर के सुरकुट पर्वत पर सुरकंडा देवा का मंदिर है. यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है, जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है. यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से भी एक है. इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है. केदारखंड व स्कंद पुराण के मुताबिक, राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था. मान्यता है कि नवरात्रि व गंगा दशहरे के अवसर पर इस मंदिर में देवी के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है.
कैसे पहुंचे सुरकंडा मंदिरः सुरकंडा माता का मंदिर करीब 2750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह मंदिर मसूरी चंबा मोटर मार्ग पर धनौल्टी से 8 किलोमीटर की दूरी पर कद्दूखाल नामक स्थान पर है. जबकि, टिहरी से 41 किलोमीटर की दूरी पर है. जहां सड़क मार्ग से करीब 2.5 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. अब मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे सेवा उपलब्ध है.
यह मंदिर साल भर खुला रहता है. यहां का मौसम ठंडा रहता है, लेकिन दिसंबर, जनवरी और फरवरी महीने में ठंड ज्यादा रहती है. इस दौरान बर्फ भी गिरती है. ऊंची चोटी में स्थित होने के कारण भक्तगण इस मंदिर के पास स्थित चोटी से चंद्रबदनी मंदिर, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ और दून घाटी आदि धार्मिक स्थान देख सकते हैं.
काशीपुर में कन्या पूजन कर लोगों ने लिया आशीर्वादः दुर्गा अष्टमी के मौके पर काशीपुर के मां मनसा देवी, मां चामुंडा देवी, चौराहे वाली माता मंदिर और गायत्री देवी समेत अन्य मंदिरों में भक्तों की लाइन लगी है. जहां मंदिरों में भक्तों ने मां की पूजा-अर्चना की तो वहीं घरों में भी नवरात्रि के व्रत रखकर उद्यापन और कन्या पूजन किया गया. कन्या पूजन के तहत घरों में मां के भक्तों ने नौ देवियों के रूप में छोटी-छोटी कन्याओं को प्रसाद स्वरूप भोजन कराया और उन्हें उपहार भी दिए. मां के स्वरूप में बैठी छोटी-छोटी कन्याओं ने भक्तों को आशीर्वाद भी दिया.
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जसपुर में निकला मां कालिका का डोलाः जहां पूरे देश में नवरात्रि की धूम मची है तो वहीं आज जसपुर में काली मंदिर से माता रानी का ढोला नगर भ्रमण पर निकला. डोला यात्रा बैंड बाजे और शंकर-पार्वती की आकर्षक झांकियों के साथ निकाला गया. लोगों ने जगह-जगह पुष्प वर्षा कर स्वागत किया. साथ ही माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त कर प्रसाद भी ग्रहण किया. बता दें कि हर साल नवरात्रि पर माता रानी का डोला हर्षोल्लास के साथ विश्व शांति की कामना के साथ नगर के मुख्य मार्गों पर निकाला जाता है. जिसमें श्रद्धालु बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
जौनसार बावर में धूमधाम से मनाई गई अष्टमी: जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर अपने अनोखे रीति रिवाज संस्कृति सभ्यता व खानपान के लिए बीच में अपनी अलग पहचान रखता है. शारदीय नवरात्रों में जहां संपूर्ण देश में दुर्गा माता के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है. इसके साथ ही देश भर में अष्टमी और नवमी का बड़ा महत्व होता है लेकिन जौनसार बाबा जनजाति क्षेत्र में अष्टमी ही मनाई जाती है. जिसे स्थानीय भाषा में आठों कहा जाता है. जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में अष्टमी का बड़ा ही महत्व है. यहां जनजातीय लोग अपनी परंपरा के अनुसार पूरे दिन घर के मुखिया कुलदेवी का व्रत कर शाम के समय पूजा अर्चना कर देवी की स्तुति करते हैं. जिसके बाद विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का देवी को भोग लगाकर उपवास खोला जाता है और परिवार के सभी लोग एक साथ भोजन करते हैं. आठों संपूर्ण जौनसार बाबर के प्रत्येक गांव में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.