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'हिलटॉप' के विरोध में उतरा संत समाज तो स्थानीय सरकार के साथ

टिहरी के देवप्रयाग में खुले शराब की फैक्ट्री का लम्बे समय से संत समाज विरोध कर रहा है. जिसको लेकर आज स्थानीय लोगों ने फैक्ट्री के खिलाफ बोलने वाले लोगों का विरोध किया है.

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Published : Jul 29, 2019, 7:11 PM IST

देवप्रयाग में शराब फैक्ट्री के समर्थन में स्थानीय लोग.

टिहरी: साधू-संत समाज के लोग देवप्रयाग के डडुआ गांव में बनी शराब की फैक्ट्री का लगातार विरोध कर रहे हैं. लेकिन गांव में खुली इस फैक्ट्री का ग्रामीणों ने स्वागत किया है. ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें गांव में ही रोजगार मिल रहा है, इसलिए वे उत्तराखंड सरकार के साथ खड़े हैं. साथ ही कहा कि संत समाज जिस देवप्रयाग कि बात कर रहा है वो इस गांव से 38 किलोमीटर दूर है.

देवप्रयाग में शराब फैक्ट्री के समर्थन में स्थानीय लोग.

देवप्रयाग में बने शराब फैक्ट्री का ग्रामीण वकालत कर रहे हैं. ग्रामीण, संत-समाज और राजनीतिक दलों के विरोध में खड़े हो गए हैं. ग्रामीणों ने विरोध कर रहे संतों और राजनीतिक दलों के विरोध में डडुआ गांव में प्रदर्शन किया. इस दौरान ग्रामीणों ने कहा कि अगर जरुरत पड़ी तो वे भूख हड़ताल करने को भी तैयार हैं.

पढ़ें: वर्ल्ड टाइगर डे पर PM मोदी ने जारी किए आंकड़ें, 10 साल में उत्तराखंड में दोगुनी हुई बाघों की संख्या

विरोध की वजह
दरअसल, देवप्रयाग संगम स्थली मानी जाती है. जहां अलकनंदा और भागीरथी नदी का मिलन होता है और यहीं से होकर गंगा नदी निकलती है, जोकि आस्था का प्रतीक मानी जाती है. ऐसे में साधु-संतों का कहना है कि देवप्रयाग में बनी शराब की फैक्ट्री आस्था को ठेस पहुंचाने का काम कर रही है.

संगम से कोसो दूर है फैक्ट्री
स्थानीय लोगों की मानें तो शराब की फैक्ट्री संगम से 38 किलोमीटर दूर डडुआ गांव के एक बंजर भूमी पर बनाई गई है. जहां शराब की फैक्ट्री एक तरह से यहां के लोगों को रोजगार देने का काम कर रही है. इस गांव में फैक्ट्री बनने से यहां के लोग काफी खुश हैं. साथ ही उत्तराखंड सरकार का धन्यवाद करते हैं.

पलायन की पीड़ा
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन के चलते आज बहुत से गांव वीरान हो गए हैं. जिन गांवों में थोड़े बहुत लोग हैं भी तो उनमें से युवकों को रोजगार की तलाश में मैदानी क्षेत्रों की ओर रुख करना पड़ रहा है. ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन को रोकने का इन इलाकों में उद्योगों का लगना काफी हद तक जरूरी है.

फैक्ट्री से मिला रोजगार
काफी लम्बे समय से डडुआ में लगी इस फैक्ट्री का विरोध हो रहा है. लेकिन यहां फैक्ट्री खुलने से अभीतक 100 लोगों को रोजगार मिल चुका है. जिसमें विधवा महिलांए और दिव्यांग सहित कई ऐसे गरीब परिवार शामिल हैं, जहां कोई कमाने वाला नहीं था. वहीं, आने वाले समय में 1000 से अधिक लोगों को यहां रोजगार दिया जाना है.

टिहरी: साधू-संत समाज के लोग देवप्रयाग के डडुआ गांव में बनी शराब की फैक्ट्री का लगातार विरोध कर रहे हैं. लेकिन गांव में खुली इस फैक्ट्री का ग्रामीणों ने स्वागत किया है. ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें गांव में ही रोजगार मिल रहा है, इसलिए वे उत्तराखंड सरकार के साथ खड़े हैं. साथ ही कहा कि संत समाज जिस देवप्रयाग कि बात कर रहा है वो इस गांव से 38 किलोमीटर दूर है.

देवप्रयाग में शराब फैक्ट्री के समर्थन में स्थानीय लोग.

देवप्रयाग में बने शराब फैक्ट्री का ग्रामीण वकालत कर रहे हैं. ग्रामीण, संत-समाज और राजनीतिक दलों के विरोध में खड़े हो गए हैं. ग्रामीणों ने विरोध कर रहे संतों और राजनीतिक दलों के विरोध में डडुआ गांव में प्रदर्शन किया. इस दौरान ग्रामीणों ने कहा कि अगर जरुरत पड़ी तो वे भूख हड़ताल करने को भी तैयार हैं.

पढ़ें: वर्ल्ड टाइगर डे पर PM मोदी ने जारी किए आंकड़ें, 10 साल में उत्तराखंड में दोगुनी हुई बाघों की संख्या

विरोध की वजह
दरअसल, देवप्रयाग संगम स्थली मानी जाती है. जहां अलकनंदा और भागीरथी नदी का मिलन होता है और यहीं से होकर गंगा नदी निकलती है, जोकि आस्था का प्रतीक मानी जाती है. ऐसे में साधु-संतों का कहना है कि देवप्रयाग में बनी शराब की फैक्ट्री आस्था को ठेस पहुंचाने का काम कर रही है.

संगम से कोसो दूर है फैक्ट्री
स्थानीय लोगों की मानें तो शराब की फैक्ट्री संगम से 38 किलोमीटर दूर डडुआ गांव के एक बंजर भूमी पर बनाई गई है. जहां शराब की फैक्ट्री एक तरह से यहां के लोगों को रोजगार देने का काम कर रही है. इस गांव में फैक्ट्री बनने से यहां के लोग काफी खुश हैं. साथ ही उत्तराखंड सरकार का धन्यवाद करते हैं.

पलायन की पीड़ा
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन के चलते आज बहुत से गांव वीरान हो गए हैं. जिन गांवों में थोड़े बहुत लोग हैं भी तो उनमें से युवकों को रोजगार की तलाश में मैदानी क्षेत्रों की ओर रुख करना पड़ रहा है. ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन को रोकने का इन इलाकों में उद्योगों का लगना काफी हद तक जरूरी है.

फैक्ट्री से मिला रोजगार
काफी लम्बे समय से डडुआ में लगी इस फैक्ट्री का विरोध हो रहा है. लेकिन यहां फैक्ट्री खुलने से अभीतक 100 लोगों को रोजगार मिल चुका है. जिसमें विधवा महिलांए और दिव्यांग सहित कई ऐसे गरीब परिवार शामिल हैं, जहां कोई कमाने वाला नहीं था. वहीं, आने वाले समय में 1000 से अधिक लोगों को यहां रोजगार दिया जाना है.

Intro:nullBody:स्टोरी नाम - शराब फैक्टरी को ग्रामीणो का सर्मथन

Mohan Kumar



एंकर - एक तरफ जहां साधू समाज के साथ साथ राजनीतिक दल देवप्रयाग के डडुवा गांव में बनी शराब की फैक्टरी का विरोध कर रहे हो लेकिन गांव मे खुली इस फैक्ट्री का गाव के लोग स्वागत कर रहे है ग्रामीण इस फैक्ट्री के बनने से उत्साहित है और सरकार की जहा तारीफ कर रहे है वही सन्त समाज और राजनीतिक दलो के विरोध मे ग्रामीण खडे हो गये है और भुख हडताल तक करने की योजना बना रहे है ग्रामीणो ने विरोध कर रहे सन्तो और राजनीतिक दलो के विरोध मे डडुआ गाव मे उग्र प्रर्दसन किया और उनसे विरोध करने की वजह बताने की बात कही ग्रामीणो का कहना था का जिस देवप्रयाग की बात सन्त कर रहे है वह देवप्रयाग कुम्भ क्षेत्र गाव से 40 किलोमीटर दुर है ग्रामीण को गाव मे ही रोजगार मिला जिसके लिए वे सरकार के साथ है और अन्य इलाको मे भी फैक्टरीया लगाने की वकालत कर रहे हैै।

वीओ 1- ये हे वह अंग्रेजी शराब की फैक्टरी जहां हिलटाप नाम की शराब बनायी जा रही है जिसको लेकर उत्तराखण्ड में ही नहीं बल्की पूरे भारत में विरोध होने लगा है। सबसे पहले बताते है आपको कि आखिर इस विरोध की वजह क्या हैै - दरहसल देवप्रयाग संगम स्थलि मानी जाती है जहां से अलकनंदा व भागिरथी नदी का मिलाव होकर गंगा नदी बनती है जो एक आस्था का प्रतीक भी माना जाता हैै ऐसे में यहां पर शराब की फेक्ट्री एक तरह से आस्था को ठेस पहंुचाने का काम कर रही है परन्तु यह शराब की फक्ट्री देवप्रयाग संगम से 38 किमी दूरी पर डउुवा गांव के एक बंजर भूमी पर बनायी गयी है जहां शराब की फैक्टरी एक तरह से यहां रोजगार देने का काम कर रही है इस गांव में फक्ट्री बनने से यहां के लोग काफी खुष है। और उत्तराखण्ड सरकार का धन्यवाद करते नहीं थक रहे है। आज स्थानिय लोगो ने कम्पनी के खिलाफ बोलने वाले लोगो के खिलाफ नारेबाजी की और उत्तराखण्ड सरकार के जिन्दाबाद के नारे लगाये साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व सूबे के सीएम त्रिवेन्द्र रावत का धन्यवाद अदा किया। साथ ही अपनी पीड़ा बताते हुए उन्होने कहा कि सरकार की यह एक अच्छी पहल है पर्वतीय क्षेत्रो के लिए रोजगार की दृष्टि से। आपको बतादे कि इस गांव के लोग जो कि काफी हद तक पलायन कर चुके है उनमें से कुछ लोग अब कम्पनी खुलने से अपने घर वापसी कर रहें है सिर्फ इस लिये की उनको अब अपने गांव में ही रोजगार मिल रहा है ओर अब वीरान पड़े घर भी गुलजार होने की आस दिखने लगे है।

Bite – 1- Jamuna Devi ;Sthaniya)

Bite 2- Anil ;Sthaniya)

bite 3 - Gyan Singh Lingwal;Sthaniya)



वीओ 2- उत्तराखंड पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन के चलते आज बहुत से गांव वीरान हो चले हैं और जिन गांवों में थोड़े बहुत लोग है भी तो उनमें से युवकों को अपने रोजगार की तलाश में मैदानी क्षेत्रों का रुख करना पड़ रहा हैं और करें भी तो क्या आखिर दो वक्त की रोटी के लिए मजबूरी हैं। एसे में पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन को रोकने का एक मात्र फार्मूला जो उत्तराखंड सरकार कर रही है वह आने वाले समय मे पर्वतीय क्षेत्रों की बिगड़ी स्थिति को सुधारने में काफी हद तक कारगर सिद्ध होगा .अब रोजगार को लेकर जो युवा मैदानी क्षेत्रों का रुख करते थे उस पर विराम लगना काफी हद तक तय माना जाने लगा है। बशर्ते अगर सरकार तेजी से पर्वतीय इलाकों में उद्योगों को लगाना जारी रखे तो।

bite 4 - Mohan ;Sthaniya)

Bite 5- Neelam ;Sthaniya)



वीओ 3 - काफी लम्बे समय से डउुवा में लगी इस कम्पनी का विरोध हो रहा है लेकिन यहां के ग्रामीणो की समस्या को देखने वाला कोई नजर नहीं आ रहा है कम्पनी खुलने से अभीतक 100 लोगो को रोजगार दिया जा चुका है जिसमें विधवा महिलांए, अपहाईज सहित कई गरीब परिवार जिनके यहां कोई कमाने वाला नहीं था आज व सभी यहां कार्य कर रहे है। आने वाले भविष्य में 1000 से अधिक लोगो को यहां रोजगार दिया जाना है। रोजगार मिलने से यहां के लोग काफी खुष नजर आ रहे है। वहीं स्थानिय लोगो ने का कहना था कि जो लोग इस कम्पनी का विरोध कर रहे है वह हमें दूसरा रोजगार उपलब्ध करवा दे तो वह सभी लोग उनके साथ खड़े नजर आयेंगे।

Bite 6 - Nirmala Devi;Sthaniya)

Bite 7 – Samajsevi

Bite 8- Sohan Lal ;Sthaniya)

Bite 9- Vinita Devi ;Sthaniya)



वीओ फाईनल - संस्क्रति भी तभी बचेगी जब इंसान गांव में रहेगा रोजगार करेगा और रोजगार तब मिलेगा जब कोई व्यक्ति आकर पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग लगाएगा । रोजगार न मिलने के कारण गांव के गांव खाली होते जा रहे है ऐसे में इस प्रकार कम्पनीयों का लगना निष्चित ही उत्तराखण्ड में पलायन को रोकने में कारगर सिद्ध होगा। अब देखने वाली बात होगी कि उत्तराखण्ड सरकार इस गांव के पक्ष में आखिर अपना अन्तिम फेसला क्या सुनाती है।Conclusion:null
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