टिहरीः उत्तराखंड देवी-देवताओं की धरा है. यही वजह है कि इस पावन धरा को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. यहां पर विराजमान आस्था के केंद्र इसे अलग ही पहचान दिलाते हैं. इन्हीं आस्था के केंद्रों में सिद्धपीठ मां कुंजापुरी का मंदिर भी है. जो टिहरी में विराजमान है. इसे 52वें सिद्धपीठ के रूप में पूजा जाता है. जिसका वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में भी मिलता है. माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु यहां माता के दरबार में आता है, वो कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है.
देवभूमि उत्तराखंड में चारधाम, पंचबदरी, पंचकेदार, पंचप्रयाग विराजमान हैं. इसके अलावा कई सिद्धपीठ भी मौजूद हैं. इनमें एक सिद्धपीठ माता कुंजापुरी है. वैसे तो सालभर यहां देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं, लेकिन नवरात्रि में इसकी विशेषता और बढ़ जाती है. इन दिनों भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंच रहे हैं और अपनी मन्नतें मांग रहे हैं.
ब्राह्मण नहीं ठाकुर करते हैं पूजाः इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां पुजारी ब्राह्मण न होकर ठाकुर जाति के भंडारी लोग हैं. वो ही यहां पूजा-पाठ करवाते हैं. इस मंदिर में जो भी श्रद्धालु आता है वो खाली हाथ नहीं लौटता है. यहां तक कि किसी भी प्रकार का छाया दोष या किसी भी असाध्य रोग आदि से पीड़ित रहता है तो वो माता के दरबार में हाजिरी लगाता है. जिसके बाद उसके सब दुःख दूर हो जाते हैं, ऐसी मान्यता है. इसलिए इस मंदिर में दर्शन करने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं.
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नवरात्र में कुंज भाग आता है ऊपरः आश्चर्य की बात यह है कि इस मंदिर में जब नवरात्र आते हैं तो जहां पर कुंज गिरा, वह भाग नवरात्रों में ऊपर की तरफ आ जाता है. बाकी समय में यह नीचे चला जाता है. माना जाता है कि यहां पर माता सती का कुंज भाग गिरा था. जिसके बाद यह मंदिर कुंजापुरी कहलाया.
क्या है महिमाः पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया था. जिसमें सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया गया, लेकिन यज्ञ में भगवान शिव को नहीं बुलाया गया. जिससे मां सती नाराज हो गईं और अपने पति के अपमान से आहत देखकर अग्नि कुंड में कूद गईं. जिसके बाद भगवान शिव ने सती के देह को लेकर तांडव मचाना शुरू किया. जिससे तीनों लोक में हाहाकार मच गया है. जिसे देख भगवान बिष्णु ने सृष्टि के विनाश को रोकने के लिए सुदर्शन चक्र से सती की देह को काट दिया.
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ऐसे में जहां-जहां माता सती के अंग कट कर गिरे वो सिद्धपीठ कहलाए. कुंजापुरी मंदिर में माता सती का कुंज भाग गिरा. जबकि, सुरकंडा मंदिर में में सिर का भाग, चंद्रबदनी में बदन का भाग और नैना देवी के पास में आंख वाला भाग गिरा. इसी तरह जहां-जहां माता सती के भाग गिरे वो प्रसिद्ध सिद्धपीठ बनते गए.
कुल देवी के रूप पूजी जाती हैं मां कुंजापुरीः टिहरी के लोग मां कुंजापुरी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. कहा जाता है कि जब भी किसी बच्चे पर बाहरी छाया यानी भूतप्रेत आदि लगा हो तो कुंजापुरी सिद्धपीठ के हवन कुंड की राख का टीका लगाने मात्र से कष्ट दूर हो जाता है. यहां पर हवन करने से भी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस मंदिर में माता को प्रसन्न करने के लिए श्रृंगार का सामान चुन्नी, श्रीफल, पंचमेवा, मिठाई आदि चढ़ाई जाती है.
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शादी-विवाह की मनोकामनाएं होती हैं पूरीः माना जाता है कि जिनकी शादी में दिक्कतें आ रही हैं या जिनकी शादी नहीं हो पा रही है, वो मंदिर प्रांगण में लगे रासुली के पेड़ पर माता की चुन्नी बांधते हैं. जिसके कुछ समय बाद ही उनकी शादी हो जाती है. यही वजह है कि कुंवारे भक्त यहां काफी संख्या में पहुंचते हैं और माता के दर्शन के लिए बेताब रहते हैं. वहीं, मंदिर प्रांगण से गगांत्री, यमुनोत्री और गोमुख की बर्फ से ढकी पहाड़ियां नजर आती हैं, जो श्रद्धालुओं के साथ पर्यटकों को भी अपनी ओर खींच लेती हैं.
कैसे पहुंचे कुंजापुरीः सिद्धपीठ कुंजापुरी पहुंचने के लिए सबसे पहले ऋषिकेश आना पड़ता है. ऋषिकेश से नरेंद्रनगर 14 किलोमीटर सड़क मार्ग के जरिए हिंडोलाखाल पहुंचना होता है. हिंडोलाखाल से कुंजापुरी सिद्धपीठ की दूरी 7 किलोमीटर है. यहां पहुंचने पर आपको 312 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. जिसके बाद मां के दर्शन होते हैं.