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प्रतापनगर में पाये गये 50 करोड़ साल पुराने स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स - Stromatolite fossils found in Pratapnagar

टिहरी जिले के प्रतापनगर की पहाड़ी पर 50 करोड़ साल पुराने स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स पाये गये हैं.

स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स
स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स
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Published : Oct 29, 2020, 6:08 PM IST

Updated : Oct 29, 2020, 6:43 PM IST

टिहरी: प्रतापनगर की पहाड़ी पर 50 करोड़ साल पुराना स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स मिला है. इन स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स को परीक्षण के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय भेजा गया था. देश के प्रसिद्ध भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया इस पर अध्ययन कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि पीड़ी पर्वत में कई अन्य स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स भी मौजूद हैं. इससे अब टिहरी वन प्रभाग भी खासा उत्साहित नजर आ रहा है.

टिहरी वन प्रभाग के प्रतापनगर ब्लॉक में समुद्रतल से 8,367 फीट की ऊंचाई पर स्थित पीड़ी पर्वत में करोड़ों साल पुराना स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स (जीवाश्म) मिला है. इसी साल सितंबर में वन विभाग की टीम ने यहां का दौरा किया था. प्रभागीय वनाधिकारी ने कहा कि सितम्बर में टिहरी दौरे पर आए कुमाऊं विश्वविद्यालय में तैनात विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया से इस संबंध में चर्चा कर स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स की जांच का आग्रह किया गया था.

50-million-year-old-stromatolite-fossils-found-in-pratapnagar
50 करोड़ साल पुराने स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल्स

पढ़ें- कांग्रेस का राजभवन कूच, पूर्व सीएम हरीश रावत समेत कई कांग्रेसी पुलिस हिरासत में

प्रो. कोटलिया ने संभावना जताई कि इस स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स की उम्र लगभग 50 करोड़ साल हो सकती है. इस तरह के जीवाश्म करोड़ों साल पहले सरीसृप वर्ग के जीव रहे होंगे. इसलिए इसमें मौजूद तत्वों की जांच की जा रही है.

पढ़ें- निकिता हत्याकांड: VHP और बजरंग दल ने जलाया हत्यारोपियों का पुतला, सख्त सजा देने की मांग

स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स में बारे में भू-विज्ञानी प्रो.बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि अरबों साल पहले धरती पर कुछ सरीसृप या अन्य जीव मौजूद थे. मरने के बाद भी जिनके जीवाश्म सुरक्षित हैं. यह जरूर हुआ कि समय के साथ इन जीवाश्मों पर मिट्टी की परत जमती चली गई. इस लंबे अंतराल में प्राकृतिक रूप से आने वाले बदलावों को झेलते हुए ये जीवाश्म चट्टान में बदल गए हैं.

प्रतापनगर में पाये गये 50 करोड़ साल पुराने स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल्स

पढ़ें- CBI जांच पर हरदा का बड़ा बयान, कहा- उनका केस CM त्रिवेंद्र से अलग

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. राजेश वर्मा बताते हैं कि स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स असल में 90 से सौ करोड़ साल पुरानी काई यानी शैवाल है. यह इस बात का संकेत है कि उस दौर में इन इलाकों में वातावरण न अधिक गर्म रहा होगा, न अधिक ठंडा. कम पानी, खासकर चूना पत्थर वाले इलाकों में इस तरह की काई का पाया जाना सामान्य बात है.

टिहरी: प्रतापनगर की पहाड़ी पर 50 करोड़ साल पुराना स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स मिला है. इन स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स को परीक्षण के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय भेजा गया था. देश के प्रसिद्ध भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया इस पर अध्ययन कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि पीड़ी पर्वत में कई अन्य स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स भी मौजूद हैं. इससे अब टिहरी वन प्रभाग भी खासा उत्साहित नजर आ रहा है.

टिहरी वन प्रभाग के प्रतापनगर ब्लॉक में समुद्रतल से 8,367 फीट की ऊंचाई पर स्थित पीड़ी पर्वत में करोड़ों साल पुराना स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स (जीवाश्म) मिला है. इसी साल सितंबर में वन विभाग की टीम ने यहां का दौरा किया था. प्रभागीय वनाधिकारी ने कहा कि सितम्बर में टिहरी दौरे पर आए कुमाऊं विश्वविद्यालय में तैनात विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया से इस संबंध में चर्चा कर स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स की जांच का आग्रह किया गया था.

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50 करोड़ साल पुराने स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल्स

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प्रो. कोटलिया ने संभावना जताई कि इस स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स की उम्र लगभग 50 करोड़ साल हो सकती है. इस तरह के जीवाश्म करोड़ों साल पहले सरीसृप वर्ग के जीव रहे होंगे. इसलिए इसमें मौजूद तत्वों की जांच की जा रही है.

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स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स में बारे में भू-विज्ञानी प्रो.बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि अरबों साल पहले धरती पर कुछ सरीसृप या अन्य जीव मौजूद थे. मरने के बाद भी जिनके जीवाश्म सुरक्षित हैं. यह जरूर हुआ कि समय के साथ इन जीवाश्मों पर मिट्टी की परत जमती चली गई. इस लंबे अंतराल में प्राकृतिक रूप से आने वाले बदलावों को झेलते हुए ये जीवाश्म चट्टान में बदल गए हैं.

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वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. राजेश वर्मा बताते हैं कि स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल्स असल में 90 से सौ करोड़ साल पुरानी काई यानी शैवाल है. यह इस बात का संकेत है कि उस दौर में इन इलाकों में वातावरण न अधिक गर्म रहा होगा, न अधिक ठंडा. कम पानी, खासकर चूना पत्थर वाले इलाकों में इस तरह की काई का पाया जाना सामान्य बात है.

Last Updated : Oct 29, 2020, 6:43 PM IST

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