रुद्रप्रयागः जिले के युवाओं की ओर से बनाई गई शॉर्ट फिल्म 'पताल ती' (Uttarakhand short film Patal ti) अब दुनिया के प्रतिष्ठित मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (Moscow International Film Festival) के लिए चुनी गई है. मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 26 अगस्त से 2 सितंबर के बीच होने जा रहा है. मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में चयन को लेकर ना केवल इसके निर्माता-निर्देशक उत्साहित हैं, बल्कि स्थानीय जनता भी बड़ी बेसब्री से इसका इंतजार कर रही है तथा इसके सफल होने की प्रार्थना कर रहे हैं.
बता दें कि इससे पूर्व यह फिल्म बुसान इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल (Busan International Short Film Festival) के लिए चुनी गई थी. जहां पर इसने खूब प्रशंसा बटोरी और चौथे स्थान प्राप्त करने में सफल रही थी. बुसान की सफलता के बाद अभी यह फिल्म इटली के डेल्ला लेसिनिया फिल्म फेस्टिवल के लिए चुनी गई है, जो 19 से 28 अगस्त तक इटली के वेरोना शहर में होगा. वहां के बाद यह फिल्म मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में 30 अगस्त 2022 को दिखाई जाएगी.
44वें मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के कॉम्पिटिशन में इस साल फीचर फिल्मों, डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्मों के लिए 40 फिल्मों का चयन हुआ है, जिसमें 12 फीचर फिल्म, 10 डॉक्यूमेंट्री फिल्म और 18 शॉर्ट फिल्मों को चुना गया है. इस वर्ष इस कॉम्पिटिशन में भारत से एक मात्र शॉर्ट फिल्म पताल-ती का चयन हुआ है.
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रुद्रप्रयाग के तीन युवाओं ने बनाई है फिल्मः उत्तराखंड की शॉर्ट फिल्म पताल ती को बनाने वाले टीम के प्रमुख सूत्रधार रुद्रप्रयाग जिले के तीन युवा हैं, फिल्म के निर्माता-निर्देशक संतोष रावत क्यूडी दशज्यूला, सिनोमेटोग्राफर बिट्टू रावत चोपता जाखणी, एक्सिक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेन्द्र रौतेला और उनके बेटे कैमरामैन दिव्यांशु रौतेला कोयलपुर (डांगी गुनाऊं) के निवासी हैं. इन दिनों देश दुनिया की सुर्खियों में छाए रूद्रप्रयाग जिले के ये युवा अपनी प्रतिभा की चमक को अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के फलक पर बिखेर रहे हैं. इनमें कैमरामेन दिव्यांशु रौतेला सबसे युवा हैं और छोटी उम्र में ही उन्होंने कैमरे के पीछे रहकर अपनी प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय फलक तक पहुंचा दिया है.
स्टूडियो यूके 13 की टीम द्वारा भोटिया भाषा की लोक कथा पर बनाई गई शार्ट फिल्म पताल ती (होली वाटर) का कम समय में अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमक बिखेरना समस्त उत्तराखंड वासियों के लिए गर्व का क्षण है. यह फिल्म उत्तराखंड और खासकर भोटिया जनजाति को एक नए नजरिए से देश दुनिया के सामने लाई है.
फिल्म के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर और रुद्रप्रयाग जिले के रचनाधर्मी शिक्षक गजेंद्र रौतेला बताते हैं कि फिल्म की कथा पहाड़ के जीवन दर्शन को दर्शाती है. अपने अंतिम समय पर दादा द्वारा पोते से कुछ ख्वाहिश रखना और पोते द्वारा उसे पूरा करने की कोशिश और प्रकृति के साथ सहजीवन और संघर्ष इसे और भी मानवीय और संवेदनशील बना देता है.
यही वह खास बात है कि जो भाषा और देश की सीमाओं को तोड़कर हमारी संवेदनाओं को झकझोरती है. यह हमारा सौभग्य है कि मास्को फिल्म फेस्टिवल में हमारी फिल्म ऐसे समय में दिखाई जा रही है, जब हमारे देश के महान फिल्मकार सत्यजीत रे की जन्म शताब्दी वर्ष पर फेस्टिवल में उनकी फिल्मों का रेट्रोस्पेक्टिव हो रहा है.