रुद्रप्रयाग: भगवान शिव को समर्पित पंच केदारों में से एक तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर के कपाट आज बुधवार सुबह 11 बजे वैदिक मंत्रोचार और विधि-विधान से शीतकाल के लिए बंद हो गए हैं. इस अवसर पर डेढ़ हजार श्रद्धालुओं ने बाबा तुंगनाथ के दर्शन किए. बता दें कि तुंगनाथ धाम लगभग 3680 मीटर (12,073 फीट) पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है.
बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने भगवान तुंगनाथ के कपाट बंद होने के अवसर पर सभी श्रद्धालुजनों को बधाई दी और कहा कि पहली बार तुंगनाथ में एक लाख पैंतीस हजार से अधिक तीर्थयात्रियों ने दर्शन किए हैं. बीकेटीसी उपाध्यक्ष किशोर पंवार व मुख्य कार्याधिकारी योगेन्द्र सिंह ने कपाट बंद होने के अवसर पर तीर्थयात्रियों का आभार जताया.
बता दें कि, आज सुबह ब्रह्ममुहुर्त में भगवान तुंगनाथ के कपाट खुले गए थे. इसके बाद प्रात:कालीन पूजा-अर्चना तथा दर्शन शुरू हो गए. तत्पश्चात सुबह 10 बजे से कपाट बंद की प्रक्रिया शुरू की गई. बाबा तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग को स्थानीय फूलों भस्म आदि से ढककर समाधि रूप दे दिया गया. इसके बाद ठीक ग्यारह बजे पूर्वाह्न भगवान तुंगनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए.
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कपाट बंद होने के बाद भगवान तुंगनाथ की देव डोली मंदिर प्रांगण में आ गयी तथा मंदिर परिक्रमा के पश्चात देवडोली चोपता के लिए प्रस्थान हुई. बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी हरीश गौड़ ने बताया कि 2 नवंबर को भगवान तुंगनाथ की देव डोली भनकुन प्रवास करेगी. 3 नवंबर को भूतनाथ मंदिर होते हुए शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कंडेय मंदिर मक्कूमठ पहुंचेगी. 3 नवंबर को देवभोज का आयोजन किया जाएगा. इसी के साथ यहां बाबा तुंगनाथ की शीतकालीन पूजाएं शुरू हो जाएंगी.
पांडवों ने किया था निर्माण: मान्यता है कि इस मंदिर को पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद बनवाया था. युद्घ में हुए प्रचंड नरसंहार से नाराज शिवजी को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिरों का निर्माण करवाया गया था. यहां भगवान शिव भुजा रूप में विद्यमान हैं. तुंगनाथ मंदिर पंचकेदारों में से सबसे ऊंचाई पर है. पंचकेदारों में तुंगनाथ के अलावा केदारनाथ, मध्यमहेश्वर, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर का स्थान है. इनमें केदारनाथ सबसे प्रथम स्थान पर आते हैं. द्वितीय केदार मध्यमहेश्वर, तृतीय केदार तुंगनाथ, चतुर्थ केदार रुद्रनाथ व पंचम केदार कल्पेश्वर के रूप में विराजमान हैं. पंच केदारों में केवल कल्पेश्वर धाम की सालभर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है.