रुद्रप्रयाग: पंच केदारों में तृतीय केदार के नाम से विख्यात भगवान तुंगनाथ की चल-विग्रह उत्सव डोली अपने शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कंडेय तीर्थ मक्कूमठ से हिमालय के लिए रवाना हो गयी. सोमवार को भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली प्रथम रात्रि प्रवास के लिए गांव के मध्य भूतनाथ मन्दिर पहुंची. जहां पर ग्रामीणों द्वारा पौराणिक परम्परा के अनुसार सादगी से नये अनाज का भोग अर्पित किया गया.
प्रशासन से मिली गाइडलाइन के अनुसार, मात्र 13 तीर्थ पुरोहित व हक-हकूकधारी भगवान तुंगनाथ की डोली की अगुवाई कर रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही लाॅकडाउन के नियमों का सख्ती से पालन किया जा रहा है. मंगलवार को भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली सुरम्य मखमली बुग्यालों से होते हुए अन्तिम रात्रि प्रवास के लिए चोपता पहुंचेगी. 20 मई को सुबह साढ़े 11 बजे विधि विधान से तुंगनाथ धाम के कपाट खोले जायेंगे.
इससे पहले आज शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कंडेय तीर्थ मक्कूमठ में विद्वान आचार्य अजय मैठाणी व सतीश मैठाणी ने पंचाग पूजन के तहत पृथ्वी, गणेश, लक्ष्मी और कुबेर सहित तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का आह्वान किया और महा रुद्रभिषेक से भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव मूर्तियों की पूजा कर आरती उतारी.
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सुबह लगभग आठ बजे भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव मूर्तियों को डोली में विराजमान कर विशेष श्रृंगार कर आरती उतारी गई. लगभग दस बजे चल विग्रह उत्सव डोली मार्कंडेय तीर्थ की तीन परिक्रमा करके अपने ग्रीष्मकालीन गद्दीस्थल के लिए रवाना हुई.
पौराणिक परम्परा के अनुसार, डोली खेत-खलिहानों में सादगी से नृत्य कर प्रथम रात्रि प्रवास के लिए गांव के मध्य भूतनाथ मन्दिर पहुंची. यहां डोली को नये अनाज का भोग लगाकर विश्व कल्याण की कामना की गयी.