रुद्रप्रयाग: तृतीय केदार से विख्यात भगवान तुंगनाथ धाम को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की योजना बनाई जा रही है. इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा है. जिला प्रशासन रुद्रप्रयाग की ओर से मंदिर से जुड़े राजस्व अभिलेखों की जानकारी जुटाई जा रही है.
करीब एक हजार साल पुराने मंदिर को अब राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय से अनुमति मांगी है. अनुमति मिलने के बाद मंदिर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया जाएगा. जिलाधिकारी मनुज गोयल ने बताया कि तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ धाम को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की तैयारी की जा रही है. इसको लेकर जिला प्रशासन की ओर से मंदिर से जुड़े राजस्व अभिलेखों की जानकारी एकत्रित की जा रही है.
तृतीय केदारनाथ भंगवान तुंगनाथ धाम में सालभर तक श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है. छः माह कपाट खुले रहने पर श्रद्धालु यहां आते ही हैं, साथ ही शीतकाल के दौरान बर्फ गिरने पर भी पर्यटक एवं तीर्थयात्री तुंगनाथ धाम पहुंचते हैं. मिनी स्विटजरलैंड चोपता से तुंगनाथ की दूरी साढ़े तीन किमी है और ज्यादातर पर्यटक एवं श्रद्धालु मंदिर तक पैदल ही पहुंचते हैं. यहां से एक किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ने पर चन्द्रशिला मंदिर है, जहां से नीचे देखने पर तुंगनाथ मंदिर भव्य नजर आता है.
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तुंगनाथ मंदिर
तुंगनाथ भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित मंदिर है. तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां भगवान शिव की भुजा के रूप में आराधना होती है. चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित तुंगनाथ मंदिर प्राकृतिक सौंदर्यता का अद्भुत प्रतीक है. कथाओं के मुताबिक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया था.
इस मंदिर को 1 हजार वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है और मक्कूमठ के मैठाणी ब्राह्मण यहां के पुजारी होते हैं. शीतकाल में यहां भी छह माह कपाट बंद होते हैं. शीतकाल के दौरान मक्कूमठ में भगवान तुंगनाथ की पूजा होती है. एक अन्य कथा के मुताबिक, भगवान राम ने जब रावण का वध किया. तब स्वयं को ब्रह्मा हत्या के शाप से मुक्त करने के लिए यहां भगवान शिव की तपस्या की.