ETV Bharat / state

रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट से विधायक भरत सिंह चौधरी का रिपोर्ट कार्ड

author img

By

Published : Jan 20, 2022, 2:57 PM IST

रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट पर अभी तक भाजपा 3 बार कब्जा कर चुकी है. 2017 में विधायक रहे भरत सिंह चौधरी ने रुद्रप्रयाग में सड़कों का जाल तो बिछाया है. लेकिन उसके बावजूद भी वहां की जनता की कुछ शिकायतें और समस्याएं अभी भी बरकरार हैं.

rudraprayag assembly seat
रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट

रुद्रप्रयाग: दो विधानसभा वाला छोटा सा रुद्रप्रयाग जिला धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ और रुद्रप्रयाग विधानसभा है. जिले की दोनों विधानसभाएं हमेशा चर्चाओं में रहती हैं. लेकिन बात अगर रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट की करें तो उत्तराखंड गठन के बाद चार विधानसभा चुनाव में रुद्रप्रयाग विधानसभा एक बार कांग्रेस के झोली में रही तो 3 बार भाजपा के प्रतिनिधि को जनता को दायित्व सौंपा. वर्तमान में भाजपा से भरत सिंह चौधरी विधायक हैं.

लोगों के मुताबिक रुद्रप्रयाग विधानसभा में पांच साल के कार्यकाल में भले ही सड़कों का जाल बिछाया गया है. लेकिन क्षेत्र की जनता की जो जरूरतें थे, वह पूरी नहीं हो पाई हैं. जहां एक ओर ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या से आज भी सैकड़ों गांव की जनता परेशान है. वहीं, जंगली जानवरों के आतंक से ग्रामीण पलायन के लिए मजबूर हैं. जबकि सैनिक स्कूल, कृषि महाविद्यालय का निर्माण कार्य होने के साथ ही घोलतीर में नर्सिंग कॉलेज की घोषणा, घोषणा बनकर ही रह गई. इसके साथ ही दो आईटीआई कॉलेज भी बंद हो गए. इन समस्याओं की ओर विधायक का ध्यान नहीं गया. जनशून्य हो रहे गांवों की तस्वीर आज विधायक के विकास कार्यों की पोल खोल रही है.

उम्मीदों पर नाकामः रुद्रप्रयाग विधानसभा की स्थानीय जनता का कहना है कि उत्तराखंड में पांचवां विधानसभा चुनाव होने जा रहा है और वर्तमान में भाजपा की सरकार है. रुद्रप्रयाग विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल करने वाले भरत सिंह चौधरी को भारी बहुमत मिला. उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी से दोगुना वोट मिला और जनता को विश्वास था कि वे क्षेत्र का चहुमुखी विकास करेंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ. जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में क्षेत्रीय विधायक नाकाम ही साबित हुए है. लोगों का कहना है कि विधायक चौधरी ने क्षेत्र में सड़कों का जाल तो बिछाया, मगर गावों में मूलभूत सुविधा मुहैया नहीं करवाई. ऐसे में ग्रामीण इलाकों में सड़कों के जाल का ज्यादा फायदा नहीं मिल पा रहा है.

ये भी पढ़ेंः TSR Inside Story: कहीं ये तो नहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत के चुनाव नहीं लड़ने की वजह !

अधर में लटका सैनिक स्कूल कार्यः जनता का कहना है कि रुद्रप्रयाग विधानसभा में जो पुराने सड़कें हैं, उनकी हालत काफी दयनीय बनी हुई हैं. उन पर क्षेत्र के विधायक का कोई ध्यान नहीं गया, जबकि नेटवर्क सुविधा से वंचित गांव आज भी दूर संचार को लेकर तरस रहे हैं. जिला चिकित्सालय में बहुत बुरे हाल हैं. यह रेफर सेंटर बना हुआ है. जखोली में सीएससी सेंटर में कोई चिकित्सक नहीं है. इतने लंबे समय से डिग्री कॉलेज का निर्माण नहीं हो पाया. राजकीय बालिका इंटर कॉलेज के पुराने भवन में डिग्री कॉलेज चल रहा है. जहां छात्र संख्या अधिक होने से टिन शेड में पठन-पाठन चल रहा है. जखोली के दिगधार में सैनिक स्कूल कार्य अधर में लटका हुआ है. पिछले साढ़े चार साल में सैनिक स्कूल का निर्माण कार्य तक शुरू नहीं हो पाया.

रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी का राजनीतिक सफरः रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी अभी तक पांच विधानसभा चुनाव हार गए हैं. छठवीं बार वह 2017 में भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे हैं. उत्तर प्रदेश सरकार में भी भरत सिंह चौधरी ने दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें कामयाबी हासिल नहीं हो पाई. भरत सिंह चौधरी के राजनीतिक करियर की शुरूआत 1985 में शुरू हुई. 1985 में वह साधन सहकारिता समिति नगरासू के अध्यक्ष बने. जिसके बाद वह 1989 में जिला परिषद के सदस्य भी रहे. जबकि 1998 में वह ग्राम प्रधान मरोड़ा के प्रधान चुने गए. साल 1993 में पहली बार भरत सिंह चौधरी ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार में कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा. इस चुनाव में उन्हें हार मिली और डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक विजय रहे.

ये भी पढ़ेंः नरेंद्र नगर सीट: बीजेपी MLA सुबोध उनियाल और ओम गोपाल रावत ने दावेदारी ठोकी, ये हैं आंकड़े

1996 में भी भरत सिंह चौधरी ने कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से ही सेकुलर कांग्रेस से चुनाव लड़ा, लेकिन यहां भी उन्हें हार झेलनी पड़ी. इसके बाद वर्ष 2002 में कर्णप्रयाग से कांग्रेस ने भरत सिंह चौधरी को अपना दावेदार घोषित किया, लेकिन कांग्रेस के टिकट पर भी भरत सिंह चौधरी की नैया पार नहीं हो पाई. 2002 के बाद भरत सिंह चौधरी ने कर्णप्रयाग विधानसभा छोड़ रुद्रप्रयाग विधानसभा पर ध्यान देना शुरू किया. 2007 और 2012 का विधानसभा चुनाव भरत सिंह चौधरी ने रुद्रप्रयाग विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ा, लेकिन दोनों विधानसभा चुनावों में जनता ने एक बार फिर चौधरी को नकार दिया.

साल 2013 में भरत सिंह चौधरी ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चौधरी को विधानसभा चुनाव का टिकट दिया. 2017 में मोदी लहर और जनता की सिमपत्ती के चलते आखिरकार भरत सिंह चौधरी पांच चुनाव हारने के बाद पहली बार विधानसभा पहुंचे. 2017 के चुनाव में भरत सिंह चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मी राणा को काफी बड़े अंतर से परास्त कर दिया.

सामाजिक ताना-बानाः रुद्रप्रयाग विधानसभा में महिला मतदाता 51,862 हैं तो पुरूष मतदाता 51,389 हैं. कुल मिलाकर रुद्रप्रयाग विधानसभा में 1,03,251 मतदाता हैं. विधानसभा में 188 केंद्र बनाए गए हैं. रुद्रप्रयाग विधानसभा में 2181 सर्विस मतदाता हैं. रुद्रप्रयाग में 1162 दिव्यांग मतदाता हैं. रुद्रप्रयाग में 27 ऐसे मतदान स्थल हैं, जो बर्फ से प्रभावित हो सकते हैं. रुद्रप्रयाग विधानसभा चुनाव में मात्र 60 प्रतिशत लोग ही अपने मत का प्रयोग करते हैं. रुद्रप्रयाग विधानसभा के भीतर 17 प्रतिशत एससी, 15 प्रतिशत ब्राह्मण, 67 प्रतिशत ठाकुर तो एक प्रतिशत अन्य लोग निवास करते हैं. रुद्रप्रयाग विधानसभा में ठाकुर वोटरों का अधिक बोलबाला रहता है. जिसका यही कारण है कि आज तक रुद्रप्रयाग विधानसभा में ठाकुर व्यक्ति ही विधानसभा पहुंचा है.

ये भी पढ़ेंः चितई के ग्वेल देवता की शरण में पहुंचे किशोर उपाध्याय के समर्थक, लगाई न्याय की गुहार

समस्याएं व मुद्देः रुद्रप्रयाग विधानसभा की सबसे बड़ी समस्या पानी की है. रुद्रप्रयाग विधानसभा की पूर्वी एवं पश्चिमी भरदार पट्टियों के अधिकांश गांवों में पानी का गंभीर संकट छाया रहता है. रुद्रप्रयाग विधानसभा के कई गांव आज भी सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाए हैं. कई गांवों में सड़क तो बन गई हैं, लेकिन वर्षों से इनका डामरीकरण नहीं हो पाया है. रुद्रप्रयाग विधानसभा में एक डिग्री कॉलेज स्थित है, लेकिन वर्षों से कॉलेज को अपना भवन नहीं मिल पाया है. रुद्रप्रयाग विधानसभा में शिक्षा और स्वास्थ्य भी एक बड़ा मुददा है. कहने को रुद्रप्रयाग विधानसभा में ही जिला चिकित्सालय है, लेकिन यह चिकित्सालय मात्र रेफर सेंटर बन गया है. यहां के अधिकांश मरीजों को बेस चिकित्सालय श्रीनगर रेफर किया जाता है. इसके अलावा सैनिक स्कूल का निर्माण कार्य आज तक शुरू नहीं हुआ तो कृषि महाविद्यालय के छात्र यहां से चले गए हैं. यहां शिक्षक न होने से उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसके अलावा बसुकेदार और चिरबटिया में आईटीआई कॉलेज बंद किए गए.

रुद्रप्रयाग जनपद का गठन और रुद्रप्रयाग विधानसभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि सितंबर 1997 में रुद्रप्रयाग जनपद का गठन टिहरी, पौड़ी और चमोली जिले के कुछ हिस्सों को काटकर किया गया था. 1997 में रुद्रप्रयाग उत्तर प्रदेश का हिस्सा था. 1997 से लेकर 2000 तक रुद्रप्रयाग में तीन-तीन विधायक रहे. बदरी-केदार वाले क्षेत्र में केदार सिंह फोनिया, रुद्रप्रयाग वाले क्षेत्र में डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक तो टिहरी वाले क्षेत्र में मातबर सिंह कंडारी रुद्रप्रयाग का प्रतिनिधित्व करते रहे. 9 नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ. जिसके बाद पहली बार रुद्रप्रयाग में विधानसभा चुनाव संपंन हुए. प्रथम विधानसभा चुनाव में भाजपा के मातबर सिंह कंडारी विधानसभा पहुंचे. वर्ष 2007 में संपंन हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के मातबर सिंह कंडारी ही चुनाव जीते. एनडी तिवारी सरकार में मातबर सिंह कंडारी नेता प्रतिपक्ष रहे. जबकि खंडूड़ी सरकार में वह सिंचाई मंत्री रहे.

ये भी पढ़ेंः मंत्री रेखा आर्य ने गिनाईं सरकार की उपलब्धियां, 60+ सीट जीतने का दावा

वर्ष 2012 में संपंन हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मातबर सिंह कंडारी को ही तीसरी बार टिकट दिया, लेकिन कांग्रेस ने यहां अपना दांव बदल दिया. कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता डॉ. हरक सिंह रावत को रुद्रप्रयाग विधानसभा से चुनाव लड़वा दिया. इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. हरक सिंह रावत ने मातबर सिंह कंडारी को काफी बड़े अंतर से पराजित कर दिया और वर्षों से रुद्रप्रयाग विधानसभा पर भाजपा की बादशाहत को भी समाप्त कर दिया. रुद्रप्रयाग विधानसभा से चुनाव जीतने के बाद डॉ. हरक सिंह रावत हरीश रावत सरकार में मंत्री रहे.

2017 के विधानसभा चुनाव में रुद्रप्रयाग विधानसभा के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गये. उस दौरान भाजपा से मंत्री और विधायक रहे मातबर सिंह कंडारी कांग्रेस में शामिल हो गये. जबकि कांग्रेस नेता भरत सिंह चौधरी बीजेपी में शामिल हो गए. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तत्कालीन रुद्रप्रयाग की जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मी राणा पर दांव खेला. जबकि भाजपा ने कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए भरत सिंह चौधरी को टिकट दे दिया. 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर रुद्रप्रयाग विधानसभा भाजपा के हाथ लग गई. कुल मिलाकर देखा जाय तो रुद्रप्रयाग में चार विधानसभा चुनाव संपंन हो गए हैं, जिनमें तीन बार भाजपा का तो एक बार कांग्रेस का विधायक रहा है.

रुद्रप्रयाग: दो विधानसभा वाला छोटा सा रुद्रप्रयाग जिला धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ और रुद्रप्रयाग विधानसभा है. जिले की दोनों विधानसभाएं हमेशा चर्चाओं में रहती हैं. लेकिन बात अगर रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट की करें तो उत्तराखंड गठन के बाद चार विधानसभा चुनाव में रुद्रप्रयाग विधानसभा एक बार कांग्रेस के झोली में रही तो 3 बार भाजपा के प्रतिनिधि को जनता को दायित्व सौंपा. वर्तमान में भाजपा से भरत सिंह चौधरी विधायक हैं.

लोगों के मुताबिक रुद्रप्रयाग विधानसभा में पांच साल के कार्यकाल में भले ही सड़कों का जाल बिछाया गया है. लेकिन क्षेत्र की जनता की जो जरूरतें थे, वह पूरी नहीं हो पाई हैं. जहां एक ओर ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या से आज भी सैकड़ों गांव की जनता परेशान है. वहीं, जंगली जानवरों के आतंक से ग्रामीण पलायन के लिए मजबूर हैं. जबकि सैनिक स्कूल, कृषि महाविद्यालय का निर्माण कार्य होने के साथ ही घोलतीर में नर्सिंग कॉलेज की घोषणा, घोषणा बनकर ही रह गई. इसके साथ ही दो आईटीआई कॉलेज भी बंद हो गए. इन समस्याओं की ओर विधायक का ध्यान नहीं गया. जनशून्य हो रहे गांवों की तस्वीर आज विधायक के विकास कार्यों की पोल खोल रही है.

उम्मीदों पर नाकामः रुद्रप्रयाग विधानसभा की स्थानीय जनता का कहना है कि उत्तराखंड में पांचवां विधानसभा चुनाव होने जा रहा है और वर्तमान में भाजपा की सरकार है. रुद्रप्रयाग विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल करने वाले भरत सिंह चौधरी को भारी बहुमत मिला. उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी से दोगुना वोट मिला और जनता को विश्वास था कि वे क्षेत्र का चहुमुखी विकास करेंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ. जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में क्षेत्रीय विधायक नाकाम ही साबित हुए है. लोगों का कहना है कि विधायक चौधरी ने क्षेत्र में सड़कों का जाल तो बिछाया, मगर गावों में मूलभूत सुविधा मुहैया नहीं करवाई. ऐसे में ग्रामीण इलाकों में सड़कों के जाल का ज्यादा फायदा नहीं मिल पा रहा है.

ये भी पढ़ेंः TSR Inside Story: कहीं ये तो नहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत के चुनाव नहीं लड़ने की वजह !

अधर में लटका सैनिक स्कूल कार्यः जनता का कहना है कि रुद्रप्रयाग विधानसभा में जो पुराने सड़कें हैं, उनकी हालत काफी दयनीय बनी हुई हैं. उन पर क्षेत्र के विधायक का कोई ध्यान नहीं गया, जबकि नेटवर्क सुविधा से वंचित गांव आज भी दूर संचार को लेकर तरस रहे हैं. जिला चिकित्सालय में बहुत बुरे हाल हैं. यह रेफर सेंटर बना हुआ है. जखोली में सीएससी सेंटर में कोई चिकित्सक नहीं है. इतने लंबे समय से डिग्री कॉलेज का निर्माण नहीं हो पाया. राजकीय बालिका इंटर कॉलेज के पुराने भवन में डिग्री कॉलेज चल रहा है. जहां छात्र संख्या अधिक होने से टिन शेड में पठन-पाठन चल रहा है. जखोली के दिगधार में सैनिक स्कूल कार्य अधर में लटका हुआ है. पिछले साढ़े चार साल में सैनिक स्कूल का निर्माण कार्य तक शुरू नहीं हो पाया.

रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी का राजनीतिक सफरः रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी अभी तक पांच विधानसभा चुनाव हार गए हैं. छठवीं बार वह 2017 में भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे हैं. उत्तर प्रदेश सरकार में भी भरत सिंह चौधरी ने दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें कामयाबी हासिल नहीं हो पाई. भरत सिंह चौधरी के राजनीतिक करियर की शुरूआत 1985 में शुरू हुई. 1985 में वह साधन सहकारिता समिति नगरासू के अध्यक्ष बने. जिसके बाद वह 1989 में जिला परिषद के सदस्य भी रहे. जबकि 1998 में वह ग्राम प्रधान मरोड़ा के प्रधान चुने गए. साल 1993 में पहली बार भरत सिंह चौधरी ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार में कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा. इस चुनाव में उन्हें हार मिली और डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक विजय रहे.

ये भी पढ़ेंः नरेंद्र नगर सीट: बीजेपी MLA सुबोध उनियाल और ओम गोपाल रावत ने दावेदारी ठोकी, ये हैं आंकड़े

1996 में भी भरत सिंह चौधरी ने कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से ही सेकुलर कांग्रेस से चुनाव लड़ा, लेकिन यहां भी उन्हें हार झेलनी पड़ी. इसके बाद वर्ष 2002 में कर्णप्रयाग से कांग्रेस ने भरत सिंह चौधरी को अपना दावेदार घोषित किया, लेकिन कांग्रेस के टिकट पर भी भरत सिंह चौधरी की नैया पार नहीं हो पाई. 2002 के बाद भरत सिंह चौधरी ने कर्णप्रयाग विधानसभा छोड़ रुद्रप्रयाग विधानसभा पर ध्यान देना शुरू किया. 2007 और 2012 का विधानसभा चुनाव भरत सिंह चौधरी ने रुद्रप्रयाग विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ा, लेकिन दोनों विधानसभा चुनावों में जनता ने एक बार फिर चौधरी को नकार दिया.

साल 2013 में भरत सिंह चौधरी ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चौधरी को विधानसभा चुनाव का टिकट दिया. 2017 में मोदी लहर और जनता की सिमपत्ती के चलते आखिरकार भरत सिंह चौधरी पांच चुनाव हारने के बाद पहली बार विधानसभा पहुंचे. 2017 के चुनाव में भरत सिंह चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मी राणा को काफी बड़े अंतर से परास्त कर दिया.

सामाजिक ताना-बानाः रुद्रप्रयाग विधानसभा में महिला मतदाता 51,862 हैं तो पुरूष मतदाता 51,389 हैं. कुल मिलाकर रुद्रप्रयाग विधानसभा में 1,03,251 मतदाता हैं. विधानसभा में 188 केंद्र बनाए गए हैं. रुद्रप्रयाग विधानसभा में 2181 सर्विस मतदाता हैं. रुद्रप्रयाग में 1162 दिव्यांग मतदाता हैं. रुद्रप्रयाग में 27 ऐसे मतदान स्थल हैं, जो बर्फ से प्रभावित हो सकते हैं. रुद्रप्रयाग विधानसभा चुनाव में मात्र 60 प्रतिशत लोग ही अपने मत का प्रयोग करते हैं. रुद्रप्रयाग विधानसभा के भीतर 17 प्रतिशत एससी, 15 प्रतिशत ब्राह्मण, 67 प्रतिशत ठाकुर तो एक प्रतिशत अन्य लोग निवास करते हैं. रुद्रप्रयाग विधानसभा में ठाकुर वोटरों का अधिक बोलबाला रहता है. जिसका यही कारण है कि आज तक रुद्रप्रयाग विधानसभा में ठाकुर व्यक्ति ही विधानसभा पहुंचा है.

ये भी पढ़ेंः चितई के ग्वेल देवता की शरण में पहुंचे किशोर उपाध्याय के समर्थक, लगाई न्याय की गुहार

समस्याएं व मुद्देः रुद्रप्रयाग विधानसभा की सबसे बड़ी समस्या पानी की है. रुद्रप्रयाग विधानसभा की पूर्वी एवं पश्चिमी भरदार पट्टियों के अधिकांश गांवों में पानी का गंभीर संकट छाया रहता है. रुद्रप्रयाग विधानसभा के कई गांव आज भी सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाए हैं. कई गांवों में सड़क तो बन गई हैं, लेकिन वर्षों से इनका डामरीकरण नहीं हो पाया है. रुद्रप्रयाग विधानसभा में एक डिग्री कॉलेज स्थित है, लेकिन वर्षों से कॉलेज को अपना भवन नहीं मिल पाया है. रुद्रप्रयाग विधानसभा में शिक्षा और स्वास्थ्य भी एक बड़ा मुददा है. कहने को रुद्रप्रयाग विधानसभा में ही जिला चिकित्सालय है, लेकिन यह चिकित्सालय मात्र रेफर सेंटर बन गया है. यहां के अधिकांश मरीजों को बेस चिकित्सालय श्रीनगर रेफर किया जाता है. इसके अलावा सैनिक स्कूल का निर्माण कार्य आज तक शुरू नहीं हुआ तो कृषि महाविद्यालय के छात्र यहां से चले गए हैं. यहां शिक्षक न होने से उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसके अलावा बसुकेदार और चिरबटिया में आईटीआई कॉलेज बंद किए गए.

रुद्रप्रयाग जनपद का गठन और रुद्रप्रयाग विधानसभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि सितंबर 1997 में रुद्रप्रयाग जनपद का गठन टिहरी, पौड़ी और चमोली जिले के कुछ हिस्सों को काटकर किया गया था. 1997 में रुद्रप्रयाग उत्तर प्रदेश का हिस्सा था. 1997 से लेकर 2000 तक रुद्रप्रयाग में तीन-तीन विधायक रहे. बदरी-केदार वाले क्षेत्र में केदार सिंह फोनिया, रुद्रप्रयाग वाले क्षेत्र में डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक तो टिहरी वाले क्षेत्र में मातबर सिंह कंडारी रुद्रप्रयाग का प्रतिनिधित्व करते रहे. 9 नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ. जिसके बाद पहली बार रुद्रप्रयाग में विधानसभा चुनाव संपंन हुए. प्रथम विधानसभा चुनाव में भाजपा के मातबर सिंह कंडारी विधानसभा पहुंचे. वर्ष 2007 में संपंन हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के मातबर सिंह कंडारी ही चुनाव जीते. एनडी तिवारी सरकार में मातबर सिंह कंडारी नेता प्रतिपक्ष रहे. जबकि खंडूड़ी सरकार में वह सिंचाई मंत्री रहे.

ये भी पढ़ेंः मंत्री रेखा आर्य ने गिनाईं सरकार की उपलब्धियां, 60+ सीट जीतने का दावा

वर्ष 2012 में संपंन हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मातबर सिंह कंडारी को ही तीसरी बार टिकट दिया, लेकिन कांग्रेस ने यहां अपना दांव बदल दिया. कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता डॉ. हरक सिंह रावत को रुद्रप्रयाग विधानसभा से चुनाव लड़वा दिया. इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. हरक सिंह रावत ने मातबर सिंह कंडारी को काफी बड़े अंतर से पराजित कर दिया और वर्षों से रुद्रप्रयाग विधानसभा पर भाजपा की बादशाहत को भी समाप्त कर दिया. रुद्रप्रयाग विधानसभा से चुनाव जीतने के बाद डॉ. हरक सिंह रावत हरीश रावत सरकार में मंत्री रहे.

2017 के विधानसभा चुनाव में रुद्रप्रयाग विधानसभा के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गये. उस दौरान भाजपा से मंत्री और विधायक रहे मातबर सिंह कंडारी कांग्रेस में शामिल हो गये. जबकि कांग्रेस नेता भरत सिंह चौधरी बीजेपी में शामिल हो गए. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तत्कालीन रुद्रप्रयाग की जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मी राणा पर दांव खेला. जबकि भाजपा ने कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए भरत सिंह चौधरी को टिकट दे दिया. 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर रुद्रप्रयाग विधानसभा भाजपा के हाथ लग गई. कुल मिलाकर देखा जाय तो रुद्रप्रयाग में चार विधानसभा चुनाव संपंन हो गए हैं, जिनमें तीन बार भाजपा का तो एक बार कांग्रेस का विधायक रहा है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.