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रुद्रप्रयाग: पांडवों ने शस्त्रों के साथ किया नृत्य, नौगरी का कौथिग देखने उमड़ी भीड़

पहाड़ों में पांडव लीला मनाने का विशेष महत्व है. दरमोला गांव में नौगरी का कौथिग का आयोजन किया गया. जहां पांडवों ने अस्त्र-शस्त्रों के साथ नृत्य शुरू किया.

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पांडव लीला रुद्रप्रयाग
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Published : Nov 28, 2019, 12:38 PM IST

रुद्रप्रयाग: भरदार क्षेत्र के दरमोला गांव में चल रहे पांडव नृत्य की इन दिनों धूम मची है. नौगरी के कौथिग (गांव घूमने की परम्परा) में ग्रामीणों ने पांडवों के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए. इसके बाद पांडवों ने अस्त्र-शस्त्रों के साथ नृत्य शुरू किया. नृत्य देखने के लिए बड़ी संख्या में दूर-दराज क्षेत्रों से दर्शक पहुंचे. 29 नवम्बर को नारायण के फल वितरण के साथ पांडव नृत्य का विधिवत समापन होगा.

जिला मुख्यालय से सटी ग्राम पंचायत दरमोला में गत 8 नवम्बर से चल रहे पांडव नृत्य के दौरान बुधवार को नौगरी का कौथिग का आयोजन किया गया. इस बार किन्हीं कारणों के चलते पांडवों ने गांव का भ्रमण नहीं किया. स्थानीय लोग सुबह से ही अपने घरों में पांडवों के लिए विभिन्न तरह के पकवान बनाने में जुट गए.

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रुद्रप्रयाग की पांडव लीला.

पढ़ें- अब टीकाकरण से नहीं छूटेगा कोई बच्चा, बड़े पैमाने पर शुरू होगा मिशन इंद्रधनुष

सर्वप्रथम पांडवों के लिए बनाए गए पकवान से बदरी विशाल भगवान को भोग लगाया गया, उसके उपरांत ही पांडव ने इसे ग्रहण किया. मान्यता है कि जब पांडव अज्ञातवास के लिए गए थे तो उन्होंने गांवों में भिक्षा मांगकर ही अपना पेट भरा था. आज भी लोग इस परम्परा की संस्कृति को जीवित रखने में इसकी अहम भूमिका निभा रहे हैं.

रुद्रप्रयाग: भरदार क्षेत्र के दरमोला गांव में चल रहे पांडव नृत्य की इन दिनों धूम मची है. नौगरी के कौथिग (गांव घूमने की परम्परा) में ग्रामीणों ने पांडवों के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए. इसके बाद पांडवों ने अस्त्र-शस्त्रों के साथ नृत्य शुरू किया. नृत्य देखने के लिए बड़ी संख्या में दूर-दराज क्षेत्रों से दर्शक पहुंचे. 29 नवम्बर को नारायण के फल वितरण के साथ पांडव नृत्य का विधिवत समापन होगा.

जिला मुख्यालय से सटी ग्राम पंचायत दरमोला में गत 8 नवम्बर से चल रहे पांडव नृत्य के दौरान बुधवार को नौगरी का कौथिग का आयोजन किया गया. इस बार किन्हीं कारणों के चलते पांडवों ने गांव का भ्रमण नहीं किया. स्थानीय लोग सुबह से ही अपने घरों में पांडवों के लिए विभिन्न तरह के पकवान बनाने में जुट गए.

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रुद्रप्रयाग की पांडव लीला.

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सर्वप्रथम पांडवों के लिए बनाए गए पकवान से बदरी विशाल भगवान को भोग लगाया गया, उसके उपरांत ही पांडव ने इसे ग्रहण किया. मान्यता है कि जब पांडव अज्ञातवास के लिए गए थे तो उन्होंने गांवों में भिक्षा मांगकर ही अपना पेट भरा था. आज भी लोग इस परम्परा की संस्कृति को जीवित रखने में इसकी अहम भूमिका निभा रहे हैं.

Intro:दरमोला में नौगरी के कौथिग देखने को उमड़े भक्त
ग्रामीणों ने पांडवों के लिए बनाए कई प्रकार के पकवान
29 नवंबर को नारायण फल वितरण के साथ होगा समापन
रुद्रप्रयाग। भरदार क्षेत्र के दरमोला गांव में चल रहे पांडव नृत्य इन दिनों धूम मची हुई है। नौगरी के कौथिग (गांव घूमने की परम्परा) में ग्रामीणों ने पांडवों के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए। इसके उपरान्त पांडवों ने अस्त्र-शस्त्रों के साथ नृत्य शुरू किया। नृत्य देखने के लिए बड़ी संख्या में दूर-दराज क्षेत्रों से दर्शक पहुंचे थे। 29 नवम्बर को नारायण के फल वितरण के साथ पांडव नृत्य का विधिवत समापन होगा।Body:जिला मुख्यालय से सटी ग्राम पंचायत दरमोला में गत आठ नवम्बर से चल रहे पांडव नृत्य के दौरान बुधवार को नौगरी का कौथिग का आयोजन किया गया। इस बार समय व अन्य किन्ही कारणाो के चलते पांडव पश्र्वों ने गांव का भ्रमण नहीं किया। गांव के स्थानीय लोग सुबह से ही अपने घरों में पांडव पश्र्वों के लिए विभिन्न तरह के पकवान बनाने में जुट गए थे। जिसके बाद सभी ग्रामीणों द्वारा तैयार विभिन्न तरह के पकवानों को पांडव चैक में ले गए। सर्वप्रथम पांडवों के लिए बनाए गए पकवान बद्री विशाल भगवान को लगाया, उसके बाद ही पांडव पश्र्वों ने इसे ग्रहण किया। मान्यता है कि जब पांडव अज्ञातवास के लिए गए थे, तो उस समय उन्होंने विभिन्न गांवों में भीक्षा मांगकर ही अपना पेट भरा था। आज भी लोग इस परम्परा की संस्कृति को जीवित रखने में इसकी अहम भूमिका निभा रहे हैं। तथा दोपहर दो बजे बाद पांडव पश्र्वों ने अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ ढोल दमाऊ की थाप पर नृत्य शुरु किया। जो लगभग दो घंटे चलता रहा। इसके बाद अंत में भक्तों को प्रसाद वितरण भी किया गया। इससे पूर्व दूर-दराज गांव से आई धियाणियों एवं ग्रामीणों ने बद्रीनाथ व शंकरनाथ देवता के दर्शन कर भेंट भी अर्िपत की तथा उन्होंने भगवान से अपने परिवार की खुशहाली की कामना भी की। नृत्य देखने के लिए दरमोला के साथ ही जवाड़ी, तरवाडी, रौठिया, स्वीली, सेम, डुंग्री, उत्यासू, मेदनपुर समेत दूर-दराज गांवों से बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचे थे।
Conclusion:
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