रुद्रप्रयाग: केदारघाटी क्षेत्र की जनता इन दिनों पांडव लीला में लीन है. ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी आस्था के साथ इस नृत्य का आयोजन किया जाता है. पांडव लीला के आयोजन से बाहरी शहरों में रह रहे प्रवासी गांव की ओर रुख कर रहे हैं. ऐसे में गांव का माहौल भक्तिमय बना हुआ है. इस पांडव लीला को भी ग्रामीणों में बहुत आवश्यक माना जाता है . अगर ग्रामीण इस नृत्य का आयोजन नहीं करते हैं तो मवेशियों में खुरपका जैसी बीमारियां होने लगती है.
दरअसल, जिले में पांडव लीला मनाने का विशेष महत्व है. माना जाता है कि पांडवों ने स्वर्गारोहणी जाने से पूर्व यहां के लोगों को अपने अस्त्र-शस्त्र दिये थे. जिससे वे चिरकाल तक इनकी पूजा-अर्चना करते रहें. आज भी लोग पांडवों की परंपराओं को निभाते आ रहे हैं. पांडव लीला में रात के समय नृत्य किया जाता है और दिन में लीलाओं का आयोजन होता है. इन लीलाओं को देखने के लिए बाहरी प्रवासी भी गांव की ओर रुख किए हुए हैं.
ग्रामीणों के अनुसार, इन लीलाओं के आयोजन से क्षेत्र में खुशहाली बनी रहती है. जिन जगहों पर इन लीलाओं का आयोजन नहीं होता है, वहां मवेशियों में खुरपका जैसी बीमारी होनी शुरू हो जाती हैं. ग्रामीणों को इस बीमारी से निजात पाने के लिए लीला का आयोजन करना ही पड़ता है. लीलाओं में चक्रव्यूह का आयोजन के दौरान दूर-दराज क्षेत्रों से हजारों की संख्या में कार्यक्रम स्थल में लोग पहुंचते हैं. लीलाओं के आयोजन में शासन और प्रशासन की ओर से कोई सहायता नहीं की जाती है. स्वयं के खर्चे पर ग्रामीण ये आयोजन करते हैं.
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केदारघाटी को पांडवों की धरती भी कहा जाता है. मान्यता है कि पांडव यहीं से स्वार्गारोहणी के लिए गए थे. स्वर्गारोहणी तक पांडव जहां-जहां से गुजरे थे उन स्थानों पर विशेष रूप से पांडव लीला आयोजित होती है. प्रत्येक वर्ष नवंबर से लेकर फरवरी माह तक केदारघाटी में पांडव नृत्य का आयोजन होता है. नृत्य के दौरान पांडवों के जन्म से लेकर मोक्ष तक का सजीव चित्रण किया जाता है.