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रुद्रप्रयाग: पांडव लीला का है विशेष महत्व, जानिए आयोजन से जुड़ी मान्यता - पांडव लीला का महत्व

पांडव लीला मनाने का विशेष महत्व है. इस पांडव लीला को मनाना ग्रामीणों के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि इस नृत्य के आयोजन न करने पर जानवरों में खुरपका जैसी बीमारियां होने लगती है.

पांडव लीला न करना भी ग्रामीणों को पड़ता है भारी.
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Published : Nov 19, 2019, 8:24 PM IST

रुद्रप्रयाग: केदारघाटी क्षेत्र की जनता इन दिनों पांडव लीला में लीन है. ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी आस्था के साथ इस नृत्य का आयोजन किया जाता है. पांडव लीला के आयोजन से बाहरी शहरों में रह रहे प्रवासी गांव की ओर रुख कर रहे हैं. ऐसे में गांव का माहौल भक्तिमय बना हुआ है. इस पांडव लीला को भी ग्रामीणों में बहुत आवश्यक माना जाता है . अगर ग्रामीण इस नृत्य का आयोजन नहीं करते हैं तो मवेशियों में खुरपका जैसी बीमारियां होने लगती है.

पांडव लीला न करना भी ग्रामीणों को पड़ता है भारी.

दरअसल, जिले में पांडव लीला मनाने का विशेष महत्व है. माना जाता है कि पांडवों ने स्वर्गारोहणी जाने से पूर्व यहां के लोगों को अपने अस्त्र-शस्त्र दिये थे. जिससे वे चिरकाल तक इनकी पूजा-अर्चना करते रहें. आज भी लोग पांडवों की परंपराओं को निभाते आ रहे हैं. पांडव लीला में रात के समय नृत्य किया जाता है और दिन में लीलाओं का आयोजन होता है. इन लीलाओं को देखने के लिए बाहरी प्रवासी भी गांव की ओर रुख किए हुए हैं.

ग्रामीणों के अनुसार, इन लीलाओं के आयोजन से क्षेत्र में खुशहाली बनी रहती है. जिन जगहों पर इन लीलाओं का आयोजन नहीं होता है, वहां मवेशियों में खुरपका जैसी बीमारी होनी शुरू हो जाती हैं. ग्रामीणों को इस बीमारी से निजात पाने के लिए लीला का आयोजन करना ही पड़ता है. लीलाओं में चक्रव्यूह का आयोजन के दौरान दूर-दराज क्षेत्रों से हजारों की संख्या में कार्यक्रम स्थल में लोग पहुंचते हैं. लीलाओं के आयोजन में शासन और प्रशासन की ओर से कोई सहायता नहीं की जाती है. स्वयं के खर्चे पर ग्रामीण ये आयोजन करते हैं.

ये भी पढ़ें: पूर्व CM खंडूड़ी और बहुगुणा को बचाने के लिए सरकार ला सकती है विधेयक

केदारघाटी को पांडवों की धरती भी कहा जाता है. मान्यता है कि पांडव यहीं से स्वार्गारोहणी के लिए गए थे. स्वर्गारोहणी तक पांडव जहां-जहां से गुजरे थे उन स्थानों पर विशेष रूप से पांडव लीला आयोजित होती है. प्रत्येक वर्ष नवंबर से लेकर फरवरी माह तक केदारघाटी में पांडव नृत्य का आयोजन होता है. नृत्य के दौरान पांडवों के जन्म से लेकर मोक्ष तक का सजीव चित्रण किया जाता है.

रुद्रप्रयाग: केदारघाटी क्षेत्र की जनता इन दिनों पांडव लीला में लीन है. ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी आस्था के साथ इस नृत्य का आयोजन किया जाता है. पांडव लीला के आयोजन से बाहरी शहरों में रह रहे प्रवासी गांव की ओर रुख कर रहे हैं. ऐसे में गांव का माहौल भक्तिमय बना हुआ है. इस पांडव लीला को भी ग्रामीणों में बहुत आवश्यक माना जाता है . अगर ग्रामीण इस नृत्य का आयोजन नहीं करते हैं तो मवेशियों में खुरपका जैसी बीमारियां होने लगती है.

पांडव लीला न करना भी ग्रामीणों को पड़ता है भारी.

दरअसल, जिले में पांडव लीला मनाने का विशेष महत्व है. माना जाता है कि पांडवों ने स्वर्गारोहणी जाने से पूर्व यहां के लोगों को अपने अस्त्र-शस्त्र दिये थे. जिससे वे चिरकाल तक इनकी पूजा-अर्चना करते रहें. आज भी लोग पांडवों की परंपराओं को निभाते आ रहे हैं. पांडव लीला में रात के समय नृत्य किया जाता है और दिन में लीलाओं का आयोजन होता है. इन लीलाओं को देखने के लिए बाहरी प्रवासी भी गांव की ओर रुख किए हुए हैं.

ग्रामीणों के अनुसार, इन लीलाओं के आयोजन से क्षेत्र में खुशहाली बनी रहती है. जिन जगहों पर इन लीलाओं का आयोजन नहीं होता है, वहां मवेशियों में खुरपका जैसी बीमारी होनी शुरू हो जाती हैं. ग्रामीणों को इस बीमारी से निजात पाने के लिए लीला का आयोजन करना ही पड़ता है. लीलाओं में चक्रव्यूह का आयोजन के दौरान दूर-दराज क्षेत्रों से हजारों की संख्या में कार्यक्रम स्थल में लोग पहुंचते हैं. लीलाओं के आयोजन में शासन और प्रशासन की ओर से कोई सहायता नहीं की जाती है. स्वयं के खर्चे पर ग्रामीण ये आयोजन करते हैं.

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केदारघाटी को पांडवों की धरती भी कहा जाता है. मान्यता है कि पांडव यहीं से स्वार्गारोहणी के लिए गए थे. स्वर्गारोहणी तक पांडव जहां-जहां से गुजरे थे उन स्थानों पर विशेष रूप से पांडव लीला आयोजित होती है. प्रत्येक वर्ष नवंबर से लेकर फरवरी माह तक केदारघाटी में पांडव नृत्य का आयोजन होता है. नृत्य के दौरान पांडवों के जन्म से लेकर मोक्ष तक का सजीव चित्रण किया जाता है.

Intro:केदारघाटी की जनता पांडव लीला में लीन
बाहरी प्रवासी और धियाणियों ने किया है गांवों का रूख
जहां लीला का नहीं होती है आयोजन, वहां होती खुरपक्का की बीमारी
लीलाओं के आयोजन में सरकारी स्तर से नहीं मिल रही कोई मदद
रुद्रप्रयाग। केदारघाटी क्षेत्र की जनता इन दिनों पांडव लीला में लीन है। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी आस्था के साथ इस नृत्य का आयोजन किया जाता है। पांडव लीला के आयोजन से बाहरी शहरों में रह रहे प्रवासी गांव की ओर रूख किये हुए हैं और धियाणियां भी अपने मायके में पहुंच रही है। ऐसे में गांव का माहौल भक्तिमय बना हुआ है। यह लीला करीबन दो से तीन सप्ताह तक चलती है, जिसमें कईं दृश्य पेश किये जाते हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण चक्रव्यूह, हाथी कौथिग और गैंडा वध को देखने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। जगह-जगह हो रही लीलाओं के आयोजन से पूर्व जहां कल तक गांवों में वीरानी देखी जाती थी, वहीं आज जमावड़ा लगा हुआ है। Body:दरअसल, जिले में पांडव लीला मनाने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि पांडवों ने स्वर्गारोहणी जाने से पूर्व यहां के लोगों को अपने अस्त्र-शस्त्र दिये थे कि जिससे कि वे चिरकाल तक इनकी पूजा-अर्चना करते रहें। आज भी लोग पांडवों की परम्पराओं को निभाते आ रहे हैं। पांडव लीला में रात के समय नृत्य किया जाता है और दिन में लीलाओं का आयोजन होता है। इन लीलाओं को देखने के लिए बाहरी प्रवासी भी गांव की रूख किये हुए हैं और धियाणियां भी मायके में आकर लीलाओं का आनंद ले रही है। ऐसे में वीरान पड़े हुए गांवों में इन दिनों माहौल खुशी का बना हुआ है। वर्षों से केदारघाटी की जनता पांडव लीला का आयोजन करती आ रही है और ग्रामीणों की माने तो इन लीलाओं के आयोजन से क्षेत्र में खुशहाली भी बनी रहती है। जिस जगह पर इन लीलाओं का आयोजन नहीं होता है, वहां मवेशियों में खुरपक्का जैसी बीमारी होनी शुरू होती है और ग्रामीणों को इस बीमारी से निजात पाने के लिए लीला का आयोजन करना ही पड़ता है। लीलाओं में चक्रव्यूह का आयोजन के दौरान दूर-दराज क्षेत्रों से हजारों की संख्या में कार्यक्रम स्थल में लोग पहुंचते हैं और अभिमन्यु के वीर साहस को देखकर तालियां भी बजाते हैं, मगर सातवें द्वार पर जब वीर अभिमन्यु को कौरवों द्वारा मारा जाता है तो यह दृश्य श्रद्धालुओं की आंखों को नम कर देता है और फिर अश्रु की धारा लोगों की आंखों से बहने लगती है। लीलाओं के आयोजन में सरकार और शासन व प्रशासन की ओर से कोई सहायता नहीं की जाती है। स्वयं के खर्चे पर ग्रामीण यह आयोजन करते हैं।
Conclusion:केदारघाटी से होकर स्र्वगारोहणी गये थे पांडव
पौराणिक धरोहरों को संजोये है केदारघाटी की जनता
रुद्रप्रयाग। केदारघाटी को पांडवों की धरती भी कहा जाता है। मान्यता है कि पांडव यहीं से स्वार्गारोहणी के लिए गए थे। इसी कारण उत्तराखंड में पांडव पूजन की विशेष परंपरा है। बताया जाता है कि स्वर्ग जाते समय पांडव अलकनंदा व मंदाकिनी नदी किनारे से होकर स्वर्गारोहणी तक गए। जहां-जहां से पांडव गुजरे उन स्थानों पर विशेष रूप से पांडव लीला आयोजित होती है। प्रत्येक वर्ष नवंबर से लेकर फरवरी माह तक केदारघाटी में पाण्डव नृत्य का आयोजन होता है। खरीफ की फसल कटने के बाद एकादशी व इसके बाद से इसके आयोजन की पौराणिक परंपरा है।
रुद्रप्रयाग जिले के दरमोला, गुप्तकाशी, जखोली, अगस्त्यमुनि, बच्छणस्यूं, रानीगढ़, धनपुर सहित केदारघाटी के कई गांवों में पांडव नृत्य का आयोजन किया गया है। ग्रामीणों की माने तो स्वर्ग जाने से पहले भगवान कृष्ण के आदेश पर पांडव अपने अस्त्र-शस्त्र केदारघाटी में छोड़ कर मोक्ष के लिए स्वर्गारोहणी की ओर चले गए थे। जिन स्थानों पर यह अस्त्र छोड़े गए थे, उन स्थानों पर विशेष तौर से पाडव नृत्य का आयोजन किया जाता है और इन्हीं अस्त्र-शस्त्रों के साथ पांडव नृत्य करते हैं। केदारघाटी में पाण्डव नृत्य अधिकांश गांवों में आयोजित किए जाते हैं, लेकिन अलकनंदा व मंदाकनी नदी के किनारे वाले क्षेत्रों में पांडव नृत्य अस्त्र-शस्त्रों, जबकि पौड़ी जनपद के कई क्षेत्रों में मंडाण के साथ यह नृत्य भव्य रूप से आयोजित होता है। नृत्य के दौरान पांडवों के जन्म से लेकर मोक्ष तक का सजीव चित्रण किया जाता है।
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