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मदमहेश्वर के शीर्ष पर है बूढ़ा मदमहेश्वर धाम, मखमली बुग्यालों ने बढ़ा दी सुंदरता - rudraprayag news

पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विश्व विख्यात भगवान मदमहेश्वर धाम के शीर्ष पर विराजमान का भू-भाग बूढा मदमहेश्वर नाम से जाना जाता है.

old Madmaheshwar
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Published : Jun 16, 2021, 3:28 PM IST

रुद्रप्रयाग: पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विश्व विख्यात भगवान मदमहेश्वर धाम के शीर्ष पर बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर है. इसके तीन ओर का भूभाग मखमली बुग्यालों और एक ओर का भूभाग भोजपत्रों से आच्छादित है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम में ऐड़ी, आछरियों और वन देवियों का वास माना जाता है. भगवान मदमहेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर की पूजा करने का विधान है.

बूढ़ा मदमहेश्वर के ऊपरी हिस्से से कई पैदल ट्रैक निकलते हैं, जिससे साहसिक पर्यटक समय-समय पर पदयात्रा कर प्रकृति के अनमोल खजाने से रूबरू होते हैं.

बूढ़ा मदमहेश्वर की महिमा

बता दें कि, मदमहेश्वर धाम से करीब दो किमी की दूरी तय करने के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर धाम पहुंचा जाता है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम से चौखंबा व हिमालय की चमचमाती श्वेद चादर को अति निकट से देखा जा सकता है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम के तीन ओर सुरम्य मखमली बुग्यालों का रुपहला विस्तार है, जिसे स्पर्श करने पर नर्म नाजुक मखमली घास का एहसास होता है. बूढ़ा मदमहेश्वर के तीन ओर फैले बुग्यालों में समय-समय पर ऐड़ी, आछरियां और वन देवियां नृत्य बिहार करती हैं.

बूढ़ा मदमहेश्वर से मदमहेश्वर घाटी की सैकड़ों फीट गहरी खाइयों व असंख्य पर्वत श्रृंखलाओं को दृष्टिगोचर करने से मानव का अंत करण शुद्ध हो जाता है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम में बरसात ऋतु में विभिन्न प्रजाति के पुष्प खिलने से ऐसा आभास होता है कि संपूर्ण इंद्र लोक इस धरती पर उतर आया हो. भगवान मदमहेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर धाम में भी पूजा करने का विधान है. बूढ़ा मदमहेश्वर व चैखंबा के मध्य पनपतियां और कांचीनटिड़ा पर्वत से कई पैदल मार्ग तो हैं, मगर इन पर पैदल सफर करना बड़ा जोखिम भरा है.

इन पैदल ट्रैकों से केदारनाथ, बदरीनाथ, उर्गम घाटी तथा पाण्डुकेसर पहुंचा जा सकता है. बूढ़ा मदमहेश्वर से लगभग 25 किमी की दूरी पर पाण्डव सेरा नामक स्थान है, जहां पाण्डवों द्वारा बोई गई धान की फसल आज भी स्वतः उग जाती है.

लोक मान्यता है कि जब मदमहेश्वर धाम जाने के लिए पैदल मार्ग नहीं था तो भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से धाम के लिए रवाना होकर इस स्थान पर विश्राम करती थी. इससे यह स्थान बूढ़ा मदमहेश्वर के नाम से विख्यात हुआ.

पढ़ें: धर्मनगरी में लोग इतमीनान से लगा रहे हुक्के के कश, सात्विकता के साथ खिलवाड़

मदमहेश्वर धाम के पूर्व प्रधान पुजारी राज शेखर लिंग ने बताया कि जो भक्त भगवान मदमहेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर की पूजा करते हैं उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं.

रुद्रप्रयाग: पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विश्व विख्यात भगवान मदमहेश्वर धाम के शीर्ष पर बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर है. इसके तीन ओर का भूभाग मखमली बुग्यालों और एक ओर का भूभाग भोजपत्रों से आच्छादित है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम में ऐड़ी, आछरियों और वन देवियों का वास माना जाता है. भगवान मदमहेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर की पूजा करने का विधान है.

बूढ़ा मदमहेश्वर के ऊपरी हिस्से से कई पैदल ट्रैक निकलते हैं, जिससे साहसिक पर्यटक समय-समय पर पदयात्रा कर प्रकृति के अनमोल खजाने से रूबरू होते हैं.

बूढ़ा मदमहेश्वर की महिमा

बता दें कि, मदमहेश्वर धाम से करीब दो किमी की दूरी तय करने के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर धाम पहुंचा जाता है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम से चौखंबा व हिमालय की चमचमाती श्वेद चादर को अति निकट से देखा जा सकता है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम के तीन ओर सुरम्य मखमली बुग्यालों का रुपहला विस्तार है, जिसे स्पर्श करने पर नर्म नाजुक मखमली घास का एहसास होता है. बूढ़ा मदमहेश्वर के तीन ओर फैले बुग्यालों में समय-समय पर ऐड़ी, आछरियां और वन देवियां नृत्य बिहार करती हैं.

बूढ़ा मदमहेश्वर से मदमहेश्वर घाटी की सैकड़ों फीट गहरी खाइयों व असंख्य पर्वत श्रृंखलाओं को दृष्टिगोचर करने से मानव का अंत करण शुद्ध हो जाता है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम में बरसात ऋतु में विभिन्न प्रजाति के पुष्प खिलने से ऐसा आभास होता है कि संपूर्ण इंद्र लोक इस धरती पर उतर आया हो. भगवान मदमहेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर धाम में भी पूजा करने का विधान है. बूढ़ा मदमहेश्वर व चैखंबा के मध्य पनपतियां और कांचीनटिड़ा पर्वत से कई पैदल मार्ग तो हैं, मगर इन पर पैदल सफर करना बड़ा जोखिम भरा है.

इन पैदल ट्रैकों से केदारनाथ, बदरीनाथ, उर्गम घाटी तथा पाण्डुकेसर पहुंचा जा सकता है. बूढ़ा मदमहेश्वर से लगभग 25 किमी की दूरी पर पाण्डव सेरा नामक स्थान है, जहां पाण्डवों द्वारा बोई गई धान की फसल आज भी स्वतः उग जाती है.

लोक मान्यता है कि जब मदमहेश्वर धाम जाने के लिए पैदल मार्ग नहीं था तो भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से धाम के लिए रवाना होकर इस स्थान पर विश्राम करती थी. इससे यह स्थान बूढ़ा मदमहेश्वर के नाम से विख्यात हुआ.

पढ़ें: धर्मनगरी में लोग इतमीनान से लगा रहे हुक्के के कश, सात्विकता के साथ खिलवाड़

मदमहेश्वर धाम के पूर्व प्रधान पुजारी राज शेखर लिंग ने बताया कि जो भक्त भगवान मदमहेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर की पूजा करते हैं उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं.

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