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रुद्रप्रयाग: लॉकडाउन में घर लौटे प्रवासियों ने घराट को बनाया रोजगार का जरिया

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के दौरान घर लौटे युवा प्रवासियों ने घराट का महत्व समझा और इन युवाओं ने अब घराट को अपने रोजगार का जरिया बनाया है.

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लॉकडाउन में घर लौटे प्रवासियों ने घराट को बनाया रोजगार का जरिया
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Published : Oct 2, 2020, 3:39 PM IST

रुद्रप्रयाग : पहाड़ में दम तोड़ते पौराणिक घराट अब पुनर्जीवित होने लगे हैं. इन घराटों के महत्व को युवा पीढ़ी समझ रही है, और इसे रोजगार का अब जरिया बना रहे हैं. पौराणिक काल में घराट पर ही गेूहं को पिसा जाता था. यह पानी से चलने वाली चक्की है और इससे पिसा गया गेहूं खाने में भी काफी स्वादिष्ट होता है. घराट के आटे की इंटरनेशनल डिमांड है. इस आटे को कोल्ड प्रेस की कैटेगरी में जाना जाता है और स्वास्थ्य की दृष्टि से यह काफी लाभदायक है.

गौरतलब है कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते प्रदेश में हजारों लोगों ने रिवर्स पलायन किया है. वहीं, स्कूल बंद होने के चलते स्कूली छात्र घर पर बैठे है. रोजगार को लेकर युवा भटक रहे हैं. जबकि, कुछ युवा ऐसे भी हैं जो अपनी पौराणिक परंपराओं का निर्वहन करके उन्हें रोजगार का जरिया बना रहे हैं. जिले के रानीगढ़ पट्टी और सिलगढ़ पट्टी में युवा पौराणिक घराट को पुनः जीवित करने में लगे हुए हैं. उन्हें यह घराट चलाना काफी पसंद आ रहा है. इसमें बिजली का कोई प्रयोग नहीं किया जाता है और इससे गेहूं को आसानी से पीसा जाता है. आमदमी के मामले में घराट काफी लाभदायक सिद्ध हो रहा है, जिससे युवा इसे रोजगार से जोड़कर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार ला रहे हैं.

घराट को बनाया रोजगार का जरिया.

जिले में हजारों युवा कोरोना वायरस के चलते अपने शहरों से गांव की तरफ पलायन कर अपने गांव लौटे हैं. ये युवा सरकारी विभागों से लेकर प्राईवेट कंपनियों के चक्कर लगा रहे हैं, और रोजगार की तलाश में जुटे हुए हैं, मगर कुछ युवा अपनी विरासत को संभालने का काम करने लगे हैं और दूसरों के लिए मिसाल बने हुए हैं. पहाड़ी जिलों में कृषि, पशुपालन, डेयरी से रोजगार चलाया जा सकता है. इसके अलावा यहां कोई ऐसा साधन नहीं है, जिससे लोग अपनी आजीविका को सुधार सकें. खेती करने में युवाओं की कोई खास दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है, जबकि कुछ युवा ऐसे भी हैं जो बकरी, भेड़, मुर्गी पालन को पसंद कर रहे हैं और कुछ ऐसे है जो गाय, भैंस को रोजगार का जरिया बना रहे हैं, मगर इन सबसे अलग ऐसे युवा भी हैं जो अपनी हजारों वर्षों पुरानी विरासत को फिर से पुनजीर्वित करने में लगे हुए हैं और अन्य लोगों के लिए भी मिसाल बन रहे हैं.

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दरअसल , रानीगढ़ पट्टी निवासी पर्यावरण प्रेमी देव राघवेन्द्र बद्री ने बताया कि पौराणिक घराट का काफी महत्व है. यह रोजगार के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है. इस पर बिजली का कोई खर्चा नहीं है, जबकि पानी से चलने वाला इस यंत्र से लोगों को भी काफी फायदे मिलेंगे. उन्होंने बताया कि पौराणिक काल में घराट में पिसा गेंहू और मंडवा पीसा जाता है. पहले के लोग काफी चुस्त दुरूस्त रहते थे, मगर अब बिजली के मशीनों से पीसा जा रहा गेहूं नुकसानदायक है.

उन्होंने कहा कि रानीगढ़ पट्टी में युवाओं ने जीर्ण-शीर्ण घराटों को पुनः संरक्षित करने का काम किया है. घराट उत्तराखंड संस्कृति का हिस्सा है. पानी से चलने वाली चक्की है, जिसमें हमारे पूर्वज गेहूं पिसा करते थे. उन्होंने कहा कि घराट के आटे की इंटरनेशनल डिमांड है. इस आटे को कोल्ड प्रेस आटे की कैटेगरी में जाना जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि यह काफी महत्वूर्ण है. इन दिनों रानीगढ़ पट्टी के लदोली, द्यूली, खरखोटा में तीन घराट लगाये गए हैं. क्षेत्र के ग्रामीण इन घराटों में आकर गेहूं को पिसवा रहे हैं. उन्हें इससे पिसे गेहूं के आटे से काफी फायदे मिल रहे हैं और अपनी पौराणिक चीजों को देखकर ग्रामीण खुश नजर आ रहे हैं.

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जखोली विकासखंड के जैली कंडाली गांव निवासी अमित भट्ट ने बताया कि वह ग्यारहवीं का छात्र है, और लाॅकडाउन के कारण उनकी स्कूल बंद हैं. घर में खाली बैठकर समय बर्बाद हो रहा था. ऐसे में लाॅकडाउन का फायदा उठाते हुए जीर्ण-शीर्ण घराट को सही किया गया, अब लोग घराट में गेहूं और मंडुवा पीसाने को आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि बिजली की चक्की से पिसे गए आटे से लोगों का मोहभंग होता जा रहा है.

घराट में पीसे गेहूं से फायदे

घराट प्रकृति से निर्मित चक्की है. इसमें पिसे हुए अनाज के पोषक तत्व जलते नहीं हैं. पानी से चलने वाले घराट से आटा ठंडा रहता है. यह आटा फाइबर युक्त है. पोषक तत्व आटा है. यह पाचन तंत्र के लिए लाभदायक है. घराट के आटे की इंटरनेशनल डिमांड है. इस आटे को कोल्ड प्रेस आटे की कैटेगरी में जाना जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि यह काफी महत्वूर्ण है. कोरोना काल में घर लौटे युवा पौराणिक टेक्नोलाॅजी का उपयोग करने में लगे हैं.

रुद्रप्रयाग : पहाड़ में दम तोड़ते पौराणिक घराट अब पुनर्जीवित होने लगे हैं. इन घराटों के महत्व को युवा पीढ़ी समझ रही है, और इसे रोजगार का अब जरिया बना रहे हैं. पौराणिक काल में घराट पर ही गेूहं को पिसा जाता था. यह पानी से चलने वाली चक्की है और इससे पिसा गया गेहूं खाने में भी काफी स्वादिष्ट होता है. घराट के आटे की इंटरनेशनल डिमांड है. इस आटे को कोल्ड प्रेस की कैटेगरी में जाना जाता है और स्वास्थ्य की दृष्टि से यह काफी लाभदायक है.

गौरतलब है कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते प्रदेश में हजारों लोगों ने रिवर्स पलायन किया है. वहीं, स्कूल बंद होने के चलते स्कूली छात्र घर पर बैठे है. रोजगार को लेकर युवा भटक रहे हैं. जबकि, कुछ युवा ऐसे भी हैं जो अपनी पौराणिक परंपराओं का निर्वहन करके उन्हें रोजगार का जरिया बना रहे हैं. जिले के रानीगढ़ पट्टी और सिलगढ़ पट्टी में युवा पौराणिक घराट को पुनः जीवित करने में लगे हुए हैं. उन्हें यह घराट चलाना काफी पसंद आ रहा है. इसमें बिजली का कोई प्रयोग नहीं किया जाता है और इससे गेहूं को आसानी से पीसा जाता है. आमदमी के मामले में घराट काफी लाभदायक सिद्ध हो रहा है, जिससे युवा इसे रोजगार से जोड़कर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार ला रहे हैं.

घराट को बनाया रोजगार का जरिया.

जिले में हजारों युवा कोरोना वायरस के चलते अपने शहरों से गांव की तरफ पलायन कर अपने गांव लौटे हैं. ये युवा सरकारी विभागों से लेकर प्राईवेट कंपनियों के चक्कर लगा रहे हैं, और रोजगार की तलाश में जुटे हुए हैं, मगर कुछ युवा अपनी विरासत को संभालने का काम करने लगे हैं और दूसरों के लिए मिसाल बने हुए हैं. पहाड़ी जिलों में कृषि, पशुपालन, डेयरी से रोजगार चलाया जा सकता है. इसके अलावा यहां कोई ऐसा साधन नहीं है, जिससे लोग अपनी आजीविका को सुधार सकें. खेती करने में युवाओं की कोई खास दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है, जबकि कुछ युवा ऐसे भी हैं जो बकरी, भेड़, मुर्गी पालन को पसंद कर रहे हैं और कुछ ऐसे है जो गाय, भैंस को रोजगार का जरिया बना रहे हैं, मगर इन सबसे अलग ऐसे युवा भी हैं जो अपनी हजारों वर्षों पुरानी विरासत को फिर से पुनजीर्वित करने में लगे हुए हैं और अन्य लोगों के लिए भी मिसाल बन रहे हैं.

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दरअसल , रानीगढ़ पट्टी निवासी पर्यावरण प्रेमी देव राघवेन्द्र बद्री ने बताया कि पौराणिक घराट का काफी महत्व है. यह रोजगार के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है. इस पर बिजली का कोई खर्चा नहीं है, जबकि पानी से चलने वाला इस यंत्र से लोगों को भी काफी फायदे मिलेंगे. उन्होंने बताया कि पौराणिक काल में घराट में पिसा गेंहू और मंडवा पीसा जाता है. पहले के लोग काफी चुस्त दुरूस्त रहते थे, मगर अब बिजली के मशीनों से पीसा जा रहा गेहूं नुकसानदायक है.

उन्होंने कहा कि रानीगढ़ पट्टी में युवाओं ने जीर्ण-शीर्ण घराटों को पुनः संरक्षित करने का काम किया है. घराट उत्तराखंड संस्कृति का हिस्सा है. पानी से चलने वाली चक्की है, जिसमें हमारे पूर्वज गेहूं पिसा करते थे. उन्होंने कहा कि घराट के आटे की इंटरनेशनल डिमांड है. इस आटे को कोल्ड प्रेस आटे की कैटेगरी में जाना जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि यह काफी महत्वूर्ण है. इन दिनों रानीगढ़ पट्टी के लदोली, द्यूली, खरखोटा में तीन घराट लगाये गए हैं. क्षेत्र के ग्रामीण इन घराटों में आकर गेहूं को पिसवा रहे हैं. उन्हें इससे पिसे गेहूं के आटे से काफी फायदे मिल रहे हैं और अपनी पौराणिक चीजों को देखकर ग्रामीण खुश नजर आ रहे हैं.

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जखोली विकासखंड के जैली कंडाली गांव निवासी अमित भट्ट ने बताया कि वह ग्यारहवीं का छात्र है, और लाॅकडाउन के कारण उनकी स्कूल बंद हैं. घर में खाली बैठकर समय बर्बाद हो रहा था. ऐसे में लाॅकडाउन का फायदा उठाते हुए जीर्ण-शीर्ण घराट को सही किया गया, अब लोग घराट में गेहूं और मंडुवा पीसाने को आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि बिजली की चक्की से पिसे गए आटे से लोगों का मोहभंग होता जा रहा है.

घराट में पीसे गेहूं से फायदे

घराट प्रकृति से निर्मित चक्की है. इसमें पिसे हुए अनाज के पोषक तत्व जलते नहीं हैं. पानी से चलने वाले घराट से आटा ठंडा रहता है. यह आटा फाइबर युक्त है. पोषक तत्व आटा है. यह पाचन तंत्र के लिए लाभदायक है. घराट के आटे की इंटरनेशनल डिमांड है. इस आटे को कोल्ड प्रेस आटे की कैटेगरी में जाना जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि यह काफी महत्वूर्ण है. कोरोना काल में घर लौटे युवा पौराणिक टेक्नोलाॅजी का उपयोग करने में लगे हैं.

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