रुद्रप्रयाग: तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ की चल-विग्रह उत्सव डोली अंतिम रात्रि प्रवास के लिए मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर चोपता पहुंच गई है. 20 मई को शुभ मुहूर्त में 11.30 बजे भगवान तुंगनाथ धाम के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए जाएंगे. कपाट खोलने के दौरान 13 तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी ही मंदिर परिसर में मौजूद रहेंगे.
वहीं, इससे पहले भूतनाथ मंदिर में पुरोहितों ने भगवान तुंगनाथ का रुद्राभिषेक कर आरती उतारी और 33 करोड़ देवी-देवताओं का आह्वान कर विश्व कल्याण की कामना की. कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते भगवान तुंगनाथ की डोली सादगी से हिमालय के लिए रवाना हुई.
इस दौरान पाबजगपुणा, चिलियाखोड, बनियाकुंड के बुग्यालों में नृत्य करते डोली अंतिम रात्रि प्रवास के लिए चोपता पहुंची. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान तुंगनाथ की डोली को हिमालय के आंचल में बसे सुंदर मखमली बुग्याल अति प्रिय लगते हैं.
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भगवान तुंगनाथ धाम की मान्यता
उत्तराखंड में केदारनाथ धाम के साथ चार स्थान और हैं. जिन्हें मिलाकर पंच केदार कहते हैं. पंच केदार में पहले केदार के रूप में केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है. द्वितीय केदार के रूप में भगवान मदमहेश्वर की पूजा होती है. तृतीय केदार के रूप में भगवान तुंगनाथ की पूजा की जाती है. चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ की पूजा होती है. पांचवे केदार के रूप में कल्पेश्वर को पूजे जाने की परंपरा है. तुंगनाथ मंदिर में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा होती है. सभी पंच केदार भगवान शिव के पवित्र स्थान हैं, जहां भगवान शंकर के विभिन्न विग्रहों की पूजा होती है.
पांडवों ने बनाया तुंगनाथ का मंदिर
मान्यता है कि पांडवों ने ही तुंगनाथ मंदिर की स्थापना की थी. पंचकेदारों में यह मंदिर सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान है. तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है. जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है. मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है.
भगवान राम से भी जुड़ा है तुंगनाथ मंदिर
पुराणों में कहा गया है कि भगवान राम शिव को अपना ईष्ट भगवान मानकर पूजा करते थे. मान्यता है कि रावण का वध करने के बाद भगवान राम ने तुंगनाथ से डेढ़ किलोमीटर दूर चंद्रशिला पर आकर ध्यान किया था और यहां कुछ वक्त बिताया था.