रुद्रप्रयाग: बाबा केदारनाथ जिनकी बारहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा की जाती है, जिनकी महिमा अपरंपार है. वैज्ञानिकों के मुताबिक बाबा केदार का धाम केदारनाथ मंदिर 400 सालों से बर्फ से ढका हुआ रहा. 2013 के विनाशकारी आपदा झेल चुका और न जाने और कई छोटी बड़ी आपदाओं को झेलने वाले भगवान शिव के इस धाम की ऐसी महिमा है कि कभी इस मंदिर को कभी कुछ नहीं हुआ. आइए जानते हैं इस मंदिर की रोचक पौराणिक कथा...
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
हिदूं धर्म में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करना शुभ माना जाता है. कहते हैं शिव के ज्याोतिर्लिंगों के दर्शन व आराधना से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. हर साल केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. केदारनाथ धाम चारों तरफ बर्फ के पहाड़ और दो तरफ से मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के बीच स्थित है. हर व्यक्ति भगवान शिव के इस धाम के दर्शन जीवन में एक बार अवश्य करना चाहता है.
पौराणिक कथा
महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे. लेकिन भगवान शिव पांडवों से काफी नाराज थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे. पांडव भगवान शिव की खोज में हिमालय पर चल दिए, काफी खोज के बाद भी भगवान भोलेनाथ पांडवों को नहीं मिले.
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जिसके बाद पांडव भगवान शिव का पीछा करते-करते केदारनाथ पहुंच गए. भगवान शिव ने पांडवों को देखते ही भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जाकर मिल गए. जिसके बाद भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया.
अन्य सब गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए, पर भगवान शंकर रूपी भैंसे पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुआ. इतने में पांडव समझ गए और भीम ने बलपूर्वक भैंस पर झपटे, लेकिन भैंस भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा. तब भीम ने त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया.
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भगवान भोलेनाथ पांडवों की भक्ति देखकर प्रसन्न हो गए. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्त कर दिया. तब से माना जाता है शंकर रूपी भैंसे का त्रिकोणात्मक पीठ का भाग केदारनाथ में तो सिर नेपाल के काठमांडू में है. जहां भगवान शिव के सिर की पूजा होती है.