रुद्रप्रयाग: एक ओर सरकार काश्तकारों को फल उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर फलों की पौध उपलब्ध कराती हैं, वहीं दूसरी ओर जब फलों का उत्पादन होना प्रारम्भ होता है तो काश्तकारों को न तो बाजार उपलब्ध होता है और ना ही सरकार उनकी सुध लेती है. समय पर फलों का समर्थन मूल्य घोषित न होने से काश्तकारों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में फल उत्पादकों में भारी निराशा व्याप्त है. वे धीरे-धीरे फल उत्पादन से हाथ पीछे खींचने लगे हैं. कुछ ऐसा ही हाल माल्टा उत्पादकों के साथ भी हो रहा है.
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में माल्टा का उत्पादन भारी मात्रा में होता है. उद्यान विभाग भी इसके प्रोत्साहन के लिए समय समय पर काश्तकारों को पौध भी उपलब्ध कराता आ रहा है. विशेषकर रुद्रप्रयाग जनपद में एक यही फल है जो बहुतायत में पैदा होता है. यह काश्तकारों की आर्थिकी सुधारने में मददगार साबित होता है, लेकिन सरकार की उपेक्षा से माल्टा उत्पादक बेहद निराश हैं. ऐसे में सैकड़ों कुंतल माल्टा यूं ही पेड़ों पर ही बर्बाद हो रहा है.
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दरअसल, सरकार ने समर्थन मूल्य केवल सी ग्रेड के माल्टा का घोषित किया है. वह भी 8 रुपए प्रति किलो रखा गया है. रुद्रप्रयाग जनपद में सबसे अधिक माल्टा उत्पादन करने वाले ओरिंग गांव निवासी 90 वर्षीय फल उत्पादक पूर्व सैनिक अजीत सिंह कण्डारी का कहना है कि पहाड़ में एक माल्टा ही ऐसा फल है, जो काश्तकार की आर्थिकी में मददगार साबित होता है. पूरा बाजार तो बाहर से आने वाले किन्नू से भरा पड़ा है. इसके बावजूद सरकार माल्टा उत्पादकों की कोई सुध नहीं ले रही है. केवल सी ग्रेड का समर्थन मूल्य घोषित कर अपना पल्ला झाड़ रही है.
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उन्होंने सरकार से मांग की है कि ए एवं बी ग्रेड का माल्टा सरकार को खरीदना चाहिए, जबकि सी ग्रेड माल्टे को स्क्वैश, मुरब्बा, कैण्डी आदि के उत्पादन के लिए निजी कम्पनियों को बेचा जाना चाहिए. जिससे काश्तकारों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिल सके. केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने कहा एक ओर सरकार उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में फलों के उत्पादन बढ़ाने के बड़े बड़े दावे कर रही है, वहीं काश्तकारों को बाजार उपलब्ध कराने में सरकार पूरी तरह से असफल रही है.