रुद्रप्रयाग: केदारनाथ धाम के ठीक ऊपर एक बार फिर से एवलॉन्च (Avalanche on Kedarnath Hills ) हुआ है. एवलॉन्च होने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल (Kedarnath avalanche video viral) हो रहा है. वायरल वीडियो में बहुत ही तेजी के साथ बर्फ का गुब्बार आगे बढ़ रहा है. ये वीडियो हेलीकॉप्टर से लिया गया है. ये वीडियो शनिवार सुबह का बताया जा रहा है.
कमेटी का गठन: उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग ने हाल ही में केदारनाथ धाम के पीछे दो हिमस्खलन होने के बाद एक समिति गठित की है. कमेटी इस संबंध में सरकार को विस्तृत रिपोर्ट देगी. इस कमेटी में उप महानिदेशक, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग, निदेशक आईआईटी रुड़की, निदेशक वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, निदेशक भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान एवं अधिशासी निदेशक उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को शामिल किया गया है.
हालांकि प्रशासन ने इस बारे में कहा केदारनाथ मंदिर के पीछे आंशिक हिमस्खलन हुआ है, जिसमें किसी भी प्रकार की जान-माल की क्षति नहीं हुई है. मगर पर्यावरणविद् इसे भविष्य के लिए बड़ा खतरा बताकर चिंतित (Environmentalists worried after avalanche) नजर आ रहे हैं. बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजय अजेंद्र के मुताबिक एवलॉन्च से मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के जल स्तर में कोई वृद्धि नहीं देखी गई है. एहतियात के तौर पर स्थानीय प्रशासन, जीएमवीएन और एसडीआरएफ की टीमें लगातार जलस्तर की निगरानी कर रही हैं.
वहीं, पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेन्द्र बद्री (Environmental expert Dev Raghavendra Badri) ने कहा हिमालयी पहाड़ियों में हिमस्खलन होने से भू-वैज्ञानिकों के साथ ही पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ गई है. बर्फ का इतना तेजी से नीचे आना पर्यावरण असंतुलन को दिखा रहा है. उन्होंने कहा केदारनाथ हिमालय सेंसिटिव जोन में है. यह ऊंचा हिमालय है. केदारनाथ धाम में जो पुनर्निर्माण कार्य चल रहे हैं, उनमें ब्लास्टिंग का प्रयोग किया जा रहा है.
चौराबाड़ी ग्लेशियर पहले ही सेंसिटिव जोन है. इसके नीचे ब्लास्टिंग किया जाना खतरनाक साबित हो रहा है. पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेन्द्र ने बताया हिमालय में ग्लेशियर बेहद ही कमजोर होते हैं, यहां ब्लास्टिंग के बाद कंपन उत्पन्न होने से हलचल पैदा होती है. ग्लेशियर का अपना क्लाइमेट होता है. इसमें विखंडन आ गया है. ग्लोबल वार्मिंग होने के कारण हिमालय के ग्लेशियरों पर बुरा असर पड़ रहा है.
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पर्यावरण विशेषज्ञ ने कहा केदारनाथ धाम को आस्था के नजरिए के साथ ही पर्यावरण दृष्टिकोण से भी देखना पड़ेगा. हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. कहीं ना कहीं यह प्राकृतिक आपदा का कारण बन सकता है. उन्होंने कहा पर्यावरणविदों का मानना है कि केदारनाथ की पहाड़ियां सेंसिटिव हैं. यहां पर हलचल होना पर्यावरण के लिए सही नहीं है. केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण के कार्य सही तरीके से नहीं किये जा रहे हैं. बुग्यालों के साथ ही कैचमेंट एरिया को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. उन्होंने कहा जिस तरह से दो बार केदारनाथ के पीछे की पहाड़ियों में हिमस्खलन हुआ है, यह भविष्य के लिए किसी बड़े खतरे का इशारा है.
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जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदन सिंह रजवार ने बताया शनिवार सुबह साढ़े पांच से छह बजे के बीच केदारनाथ मंदिर से सात किमी पीछे अचानक हुए आंशिक हिमस्खलन से किसी भी प्रकार की जान-माल की क्षति नहीं हुई है. केदारनाथ धाम में बह रही मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के जल स्तर में भी कोई वृद्धि नहीं हुई है. घटना को देखते हुए केदारनाथ धाम में मौजूद एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस बल एवं डीडीआरएफ टीम के साथ ही यात्रा में तैनात अधिकारी एवं कर्मचारियों को सचेत रहने को कहा गया है.