रुद्रप्रयाग: केदारघाटी में ग्लोबल वार्मिंग का खासा असर दिखने लग गया है. बर्फबारी से लकदक रहने वाले जंगल भीषण आग की चपेट में आ गये हैं. केदारघाटी के अधिकांश जंगलों के भीषण आग की चपेट में आने से लाखों की वन सम्पदा स्वाहा होने के साथ ही वन्य जीव-जन्तुओं के जीवन पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं. वहीं, ग्रामीणों व वन विभाग द्वारा जंगलों में लगी भीषण आग पर काबू पाने के प्रयास तो किये जा रहे हैं, मगर आग पर काबू पाना चुनौती पूर्ण बना हुआ है.
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केदारघाटी में ग्लोबल वार्मिंग का असर दिखने के लिए मनुष्य को जिम्मेदार माना जा रहा है, क्योंकि मनुष्य द्वारा ही समय-समय पर प्रकृति का दोहन किया जा रहा है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. लगभग दो दशक पूर्व की बात करें तो केदारघाटी का सीमान्त क्षेत्र नवम्बर से फरवरी माह तक बर्फबारी से लकदक रहता था. मगर लगभग आठ वर्षों से बर्फबारी से लकदक रहने वाला भूभाग बर्फ विहीन होता जा रहा है. केदारघाटी का सीमान्त क्षेत्र बर्फ विहीन होने से विगत कई दिनों से केदारघाटी के अधिकांश जंगल भीषण आग की चपेट में आ गये हैं. मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित हैं.
मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने तथा जंगलों के भीषण आग की चपेट में आने का मुख्य कारण पर्यावरणविद ग्लोबल वार्मिंग को मान रहे हैं. विगत दिनों की बात करें तो केदारघाटी, कालीमठ घाटी व मदमहेश्वर घाटी के जंगल भीषण आग की चपेट में आने से लाखों की वन सम्पदा स्वाहा हो गयी थी. तीनों क्षेत्रों के जंगलों में लगी भीषण आग पर काबू पाया ही गया था कि अब तुंगनाथ घाटी के जंगल भीषण आग की चपेट में आने से लाखों की वन सम्पदा स्वाहा हो गयी है.
पर्यावरणविद हर्ष जमलोकी का कहना कि कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण अब पहले की तरह बर्फबारी न होने से जंगल भीषण आग की चपेट में आ रहे हैं. उनका कहना है कि मानव द्वारा निरन्तर प्रकृति का दोहन करने के परिणाम स्वरूप आज पहले की तरह बर्फबारी देखने को नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि पूर्व में दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह से लेकर फरवरी अन्तिम सप्ताह तक बर्फबारी से लकदक रहने वाला सीमान्त भूभाग के भीषण आग की चपेट में आना भविष्य के लिए चिन्ता का विषय बना हुआ है.