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कार्तिकेय धाम में देव दीपावली का शुभारंभ, सतपाल महाराज ने भी किए दर्शन

अखण्ड जागरण कर कार्तिक स्वामी सहित तैतीस कोटि देवी-देवताओं का आह्वान किया गया. देव सेनापति भगवान कार्तिक स्वामी के तीर्थ में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ देव दीपावली का शुभारंभ किया गया. रात्रि के चारों पहर आरती उतार कर विश्व कल्याण की कामना गई.

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देव दीपावली का शुभारंभ
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Published : Nov 29, 2020, 7:09 PM IST

Updated : Nov 29, 2020, 7:34 PM IST

रुद्रप्रयाग: जिले के शीर्ष पर विराजमान देव सेनापति भगवान कार्तिक स्वामी के तीर्थ में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ देव दीपावली का शुभारंभ किया गया. रात्रि जागरण के लिए मंदिर में कीर्तन मंडलियां एवं पुत्र प्राप्ति के लिए खड़ा दीपक व्रत को लेकर दंपतियां पहुंचे. चमोली व रुद्रप्रयाग जिले के 362 गांवों के आराध्य देव भगवान कार्तिक स्वामी मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा पर देव दीपावली धूमधाम से मनाई जा रही है.

मंदिर में भक्तों के पहुंचने का सिलसिला जारी है. मंदिर में रात्रि को विशेष पूजा अर्चना के बाद भक्तों ने कीर्तन भजनों का भी आयोजन किया. रात्रि में चार पहर की पूजा अर्चना कर विश्व कल्याण की कामना की गई. मंदिर समिति की ओर से मंदिर को फूलों और लड़ियों से सजाया गया है. रात्रि को मंदिर में दीपक जलाए गए. कुमार कार्तिकेय का उत्तर भारत का एक मात्र मंदिर हैं. प्रतिवर्ष यहां जून माह में महायज्ञ का आयोजन के साथ कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाने की परंपरा है.

कार्तिकेय धाम में देव दीपावली का शुभारंभ.

वहीं, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की भी भगवान कार्तिकेय के प्रति अगाध आस्था है. वे हर साल यहां पहुंचते हैं. उनका कहना है कि जिले के क्रौंच पर्वत पर स्थित भगवान कार्तिकेय के मंदिर को पर्यटन मानचित्र में स्थान देने को लेकर प्रयास किया जा रहा है. दक्षिण भारत के लोगों की भगवान कार्तिकेय के प्रति अगाध आस्था है. कार्तिक स्वामी का मंदिर विकसित होने के बाद लाखों की संख्या में दक्षित भारत से श्रद्धालु यहां पहुंचेंगे, जिससे उस क्षेत्र का तेजी से विकास हो सकेगा.

लोक मान्यताओं अनुसार भगवान कार्तिक स्वामी माता पार्वती और पिता शिव को अपने शरीर का खून और मांस सौंपकर निर्वाण रूप लेकर क्रौंच पर्वत पर जगत कल्याण के लिए तपस्या करने गए थे. कई वर्षों बाद पार्वती ने पुत्र विरह में आकर भगवान शिव से कहा कि मुझे प्रिय पुत्र कार्तिकेय की बहुत याद सता रही है. तब भगवान शंकर पार्वती को साथ लेकर कार्तिक मास की वैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर पुत्र कार्तिकेय को मिलने के लिए क्रौंच पर्वत तीर्थ पर आए, लेकिन माता-पिता के आने पर कार्तिकेय क्रौंच पर्वत तीर्थ से चार कोस दूर हिमालय की ओर चले गये.

ये भी पढ़ें: कोरोना इफेक्ट: उत्तराखंड परिवहन निगम का बड़ा फैसला, अब बीच रास्ते में नहीं उतर पाएंगे यात्री

कुमार कार्तिकेय के क्रौंच पर्वत तीर्थ से चार कोस दूर हिमालय की ओर जाने से पार्वती को पुत्र कार्तिकेय की बहुत याद सताने लगी. कार्तिक मास की बैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर शिव-पार्वती के क्रौंच पर्वत तीर्थ पर रात्रि प्रवास करने के कारण तैतीस कोटि देवी-देवता भी इस पावन अवसर पर वहां पहुंच गये थे. तब से आज तक क्रौंच पर्वत तीर्थ पर बैकुण्ठ चतुर्दशी व कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाती है. इस पावन अवसर पर शिव-पार्वती, ब्रह्मा, विष्णु सहित तैतीस कोटि देवी-देवताओं के उपस्थित रहने के कारण यह पर्व देवी दीपावली के रूप में मनाया जाता है.

मंदिर समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह नेगी ने बताया कि बैकुण्ठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर क्रौंच पर्वत तीर्थ पर पूजा-अर्चना व जलाभिषेक करने से सौ गुना फल की प्राप्ति होती है. भगवान कार्तिक स्वामी के देव सेनापति होने के कारण कार्तिक मास में तैतीस कोटि देवी-देवता क्रौंच पर्वत पर निवास कर उनकी स्तुति करते हैं, इसलिए कार्तिक मास में भगवान कार्तिक स्वामी की पूजा-अर्चना व जलाभिषेक करने से जन्म-जनमान्तरों से लेकर युग-युगान्तरों के पापों का हरण होता है.

रुद्रप्रयाग: जिले के शीर्ष पर विराजमान देव सेनापति भगवान कार्तिक स्वामी के तीर्थ में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ देव दीपावली का शुभारंभ किया गया. रात्रि जागरण के लिए मंदिर में कीर्तन मंडलियां एवं पुत्र प्राप्ति के लिए खड़ा दीपक व्रत को लेकर दंपतियां पहुंचे. चमोली व रुद्रप्रयाग जिले के 362 गांवों के आराध्य देव भगवान कार्तिक स्वामी मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा पर देव दीपावली धूमधाम से मनाई जा रही है.

मंदिर में भक्तों के पहुंचने का सिलसिला जारी है. मंदिर में रात्रि को विशेष पूजा अर्चना के बाद भक्तों ने कीर्तन भजनों का भी आयोजन किया. रात्रि में चार पहर की पूजा अर्चना कर विश्व कल्याण की कामना की गई. मंदिर समिति की ओर से मंदिर को फूलों और लड़ियों से सजाया गया है. रात्रि को मंदिर में दीपक जलाए गए. कुमार कार्तिकेय का उत्तर भारत का एक मात्र मंदिर हैं. प्रतिवर्ष यहां जून माह में महायज्ञ का आयोजन के साथ कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाने की परंपरा है.

कार्तिकेय धाम में देव दीपावली का शुभारंभ.

वहीं, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की भी भगवान कार्तिकेय के प्रति अगाध आस्था है. वे हर साल यहां पहुंचते हैं. उनका कहना है कि जिले के क्रौंच पर्वत पर स्थित भगवान कार्तिकेय के मंदिर को पर्यटन मानचित्र में स्थान देने को लेकर प्रयास किया जा रहा है. दक्षिण भारत के लोगों की भगवान कार्तिकेय के प्रति अगाध आस्था है. कार्तिक स्वामी का मंदिर विकसित होने के बाद लाखों की संख्या में दक्षित भारत से श्रद्धालु यहां पहुंचेंगे, जिससे उस क्षेत्र का तेजी से विकास हो सकेगा.

लोक मान्यताओं अनुसार भगवान कार्तिक स्वामी माता पार्वती और पिता शिव को अपने शरीर का खून और मांस सौंपकर निर्वाण रूप लेकर क्रौंच पर्वत पर जगत कल्याण के लिए तपस्या करने गए थे. कई वर्षों बाद पार्वती ने पुत्र विरह में आकर भगवान शिव से कहा कि मुझे प्रिय पुत्र कार्तिकेय की बहुत याद सता रही है. तब भगवान शंकर पार्वती को साथ लेकर कार्तिक मास की वैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर पुत्र कार्तिकेय को मिलने के लिए क्रौंच पर्वत तीर्थ पर आए, लेकिन माता-पिता के आने पर कार्तिकेय क्रौंच पर्वत तीर्थ से चार कोस दूर हिमालय की ओर चले गये.

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कुमार कार्तिकेय के क्रौंच पर्वत तीर्थ से चार कोस दूर हिमालय की ओर जाने से पार्वती को पुत्र कार्तिकेय की बहुत याद सताने लगी. कार्तिक मास की बैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर शिव-पार्वती के क्रौंच पर्वत तीर्थ पर रात्रि प्रवास करने के कारण तैतीस कोटि देवी-देवता भी इस पावन अवसर पर वहां पहुंच गये थे. तब से आज तक क्रौंच पर्वत तीर्थ पर बैकुण्ठ चतुर्दशी व कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाती है. इस पावन अवसर पर शिव-पार्वती, ब्रह्मा, विष्णु सहित तैतीस कोटि देवी-देवताओं के उपस्थित रहने के कारण यह पर्व देवी दीपावली के रूप में मनाया जाता है.

मंदिर समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह नेगी ने बताया कि बैकुण्ठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर क्रौंच पर्वत तीर्थ पर पूजा-अर्चना व जलाभिषेक करने से सौ गुना फल की प्राप्ति होती है. भगवान कार्तिक स्वामी के देव सेनापति होने के कारण कार्तिक मास में तैतीस कोटि देवी-देवता क्रौंच पर्वत पर निवास कर उनकी स्तुति करते हैं, इसलिए कार्तिक मास में भगवान कार्तिक स्वामी की पूजा-अर्चना व जलाभिषेक करने से जन्म-जनमान्तरों से लेकर युग-युगान्तरों के पापों का हरण होता है.

Last Updated : Nov 29, 2020, 7:34 PM IST
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