रुद्रप्रयाग: महान दानी और असुरों के राजा बलि के पुत्र को बाणासुर दानव के रूप में जाना जाता है. लेकिन केदारघाटी के लमगोंडी गांव में बाणासुर को भूमि के देवता के रूप में पूजा जाता है. केदारघाटी का लमगोंडी गांव केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों का गांव है. यहां के ग्रामीण बाणासुर की नित्य पूजा अर्चना करते हैं. इस बार बाणासुर की डोली ग्रामीणों के साथ केदारनाथ और बदरीनाथ यात्रा पर निकली है. बाणासुर की डोली 28 अगस्त को केदारनाथ धाम पहुंचेगी और केदारनाथ के दर्शन के बाद बदरीनाथ जायेगी.
दानवराज बाणासुर की डोली यात्रा: बाणासुर को हम सभी राक्षस के रूप में जानते हैं. बाणासुर राक्षसों के राजा हुआ करते थे. हालांकि यह भी कहा जाता है कि बाणासुर ज्ञानी होने के साथ ही महान शिव भक्त भी थे. इन्होंने कई वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की थी. मान्यता है की केदारघाटी के लमगोंडी क्षेत्र को उस समय शोणितपुर के रूप में जाना जाता था. इस क्षेत्र को बाणासुर ने अपनी राजधानी बनाया था. साथ ही शिव भक्त होने के कारण उन्होंने यहां कई वर्षों तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी.
लमगोंडी गांव में होती है बाणासुर की पूजा: अब लमगोंडी गांव में केदारनाथ के कुछ तीर्थ पुरोहित निवास करते हैं. यह बाणासुर की अपने भूमि के देवता के रूप में पूजा करते हैं. उत्तराखंड का ये पहला गांव होगा, जहां राक्षस कुल में जन्मे किसी व्यक्ति की पूजा होती होगी. हालांकि लमगोड़ी के ग्रामीणों का कहना कि बाणासुर राक्षस कुल में जरूर जन्मे थे, लेकिन वह महान ज्ञानी और शिव भक्त भी थे.
बदरी केदार यात्रा पर निकली बाणासुर की डोली: इन दिनों लमगोंडी गांव के भूमि के देवता बाणासुर केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा पर निकले हैं. आजकल बाणासुर की देव डोली आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर आशीष दे रही है. 28 अगस्त को बाणासुर की यात्रा हजारों भक्तों के साथ केदारनाथ पहुंचेगी. केदारनाथ दर्शन के बाद बाणासुर की डोली बदरीनाथ की यात्रा पर निकलेगी. बाणासुर की डोली इन दिनों खेत खलिहानों में खूब नृत्य कर रही है. भक्त भी बाणासुर की यात्रा का पुष्प वर्षा से भव्य स्वागत कर रहे हैं.
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