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पंजाब के बाद उत्तराखंड में भी उठी चुनाव की तिथि बदलने की मांग, जानिए कारण

पंजाब के बाद अब उत्तराखंड के राजनीतिक दलों ने चुनाव की तिथि (election date in uttarakhand) की बदलने की मांग चुनाव आयोग से की है. राजनीतिक दलों का कहना है कि चुनाव आयोग को उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों और कड़ाके की ठंड को ध्यान में रखकर चुनाव की तिथि को बदलना चाहिए.

election date in uttarakhand
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022
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Published : Jan 21, 2022, 2:44 PM IST

रुद्रप्रयाग: चुनाव आयोग द्वारा पंजाब विधानसभा चुनावों की तिथि में बदलाव करने के बाद अब उत्तराखंड में भी विधानसभा चुनाव (uttarakhand assembly election 2022) की तिथि बदलने की मांग उठने लगी है. चुनाव की तिथि बदलने की मांग करने वालों का कहना है कि प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए मतदान की तिथि मार्च माह के पहले सप्ताह में होनी चाहिए. लेकिन अगर चुनावी आंकड़ों को देखा जाए तो चुनाव आयोग को फरवरी माह में ही चुनाव कराना मुफीद लगता है.

चुनाव आयोग ने उत्तराखंड में 14 फरवरी को मतदान का दिन निश्चित किया है. वहीं, पंजाब में भी 14 फरवरी निश्चित किया था, लेकिन वहां सरकार एवं सभी विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से संत रविदास की जयंती को देखते हुए चुनाव तिथियों में बदलाव की मांग की थी. चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों की मांग को सही मानते हुए मतदान तिथि बदलकर अब 20 फरवरी कर दी है, जिसके बाद उत्तराखंड में भी चुनाव की तिथि बदलने की मांग उठने लगी है.

उत्तराखंड में पड़ रही कड़ाके की ठंड: उत्तराखंड में इस समय कड़ाके की ठंड पड़ रही है. मौसम विभाग की मानें तो आगामी दिनों में ठंड और बर्फबारी (Snowfall in Uttarakhand) बढ़ने के आसार हैं. ऐसे में उत्तराखंड में चुनाव कराना बहुत मुश्किल हो सकता है. प्रत्याशियों को मतदाता तक पहुंच बनाने के लिए खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. वहीं, दूसरी ओर ऊंचाई और बर्फीले इलाकों में पोलिंग पार्टियों को भी पहुंचाने में प्रशासन को भी काफी परेशानी होगी.

पढ़ें- हरक सिंह की BJP में वापसी के आसार, सुबोध उनियाल बोले- गलती मान लें तो शायद हाईकमान सोचे

निर्दलीय प्रत्याशियों को होगी ज्यादा परेशानी: कड़ाके की ठंड में सबसे अधिक चुनौती निर्दलीय प्रत्याशियों को 14 दिन में अपना चुनाव चिन्ह मतदाताओं तक पहुंचाने की होगी. कोरोना महामारी के कारण चुनावी सभाओं और रोड शो पर बैन लगा है. ऐसे में हर दल और हर प्रत्याशी को मतदाता तक पहुंच बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा, फिर भी 14 दिनों में हर गांव, हर मतदाता तक पंहुच पाना उनके लिए टेड़ी खीर होगी. ऐसे में हर दल एवं सामाजिक संगठन चुनाव तिथि में बदलाव की मांग करने लगे हैं.

रविवार को चुनाव कराने की मांग: कई संगठन रविवार को चुनाव कराने की भी मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि नजदीकी प्रदेशों में रहने वाले प्रवासी मतदाता रविवार को मतदान करने घरों को आ सकते हैं. ऐसे में मतदान प्रतिशत भी बढ़ने की संभावना है, लेकिन आंकड़ों की नजर से देखें तो मध्यावधि चुनावों को छोड़कर चुनाव आयोग ने अधिकतर फरवरी में ही चुनाव कराना मुफीद समझा है.

क्या कहते हैं आंकड़े: उत्तर प्रदेश में रहते हुए यहां मतदान प्रतिशत 50 से भी कम रहा है. आंकड़े बता रहे हैं कि चुनाव आयोग ने अभी तक केवल साल 1974 और 1985 में ही रविवार को चुनाव कराए हैं. इन दोनों वर्षों में भी मतदान प्रतिशत पर कोई खास असर नहीं पड़ा था. उत्तराखंड बनने से मतदान प्रतिशत काफी बड़ा है. ऐसी स्थिति में लगता नहीं कि चुनाव आयोग तिथियों में बदलाव करेगा.

प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष विक्रम झिंक्वाण ने कहा कि उत्तराखंड में कोरोना की तीसरी लहर में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए चुनाव आयोग को मतदान तिथि में बदलाव करना चाहिए. विशेषज्ञ भी फरवरी के दूसरे व तीसरे सप्ताह में कोरोना की तीसरी लहर का पीक बता रहे हैं. साथ ही जनपद के ऊंचे क्षेत्रों में जहां बर्फ अधिक होगी वहां पोलिंग पार्टी को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में मतदान की तिथि में बदलाव कर मार्च माह के प्रथम सप्ताह में करना उचित होगा.

बढ़ सकता है मतदान प्रतिशत: उत्तराखंड वीरांगना संगठन की जिलाध्यक्ष माधुरी नेगी ने कहा कि उत्तराखंड में इन दिनों भीषण सर्दी हो रही है. मौसम विभाग भी आने वाले कुछ दिनों में पहाड़ी क्षेत्रों में शीतलहर एवं भारी बर्फबारी का अंदेशा जता रहा है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत कम हो सकता है. अगर मतदान की तिथि 14 फरवरी से बदलकर 3 से 6 मार्च के बीच की जाए तो मतदान प्रतिशत बढ़ सकता है.

प्रधान संगठन के अध्यक्ष विजयपाल राणा ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में विकट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उम्मीदवार को इतने कम समय में दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के मतदाता तक पहुंचना बहुत मुश्किल होगा. जनसंख्या घनत्व कम होने से एक दिन में उम्मीदवार बहुत कम मतदाताओं से मिल पाएगा. कोरोना के कारण चुनावी सभाओं एवं रोड शो पर प्रतिबंध लगाया गया है. उम्मीदवार को प्रचार के लिए अधिक समय मिलना चाहिए. इसके लिए चुनाव आयोग को मतदान तिथि फरवरी के अंतिम सप्ताह या मार्च माह के पहले सप्ताह तक बढ़ानी चाहिए.

अब तक हुए चुनावों की तिथियां एवं दिन

विधानसभा चुनावतिथिदिवस
1952 28 मार्चशुक्रवार
1957 25 फरवरीसोमवार
1962 19 फरवरीसोमवार
1967 21 फरवरीमंगलवार
1969 05 फरवरीबुधवार
1974 24 फरवरीरविवार
1977 06 अक्टूबरगुरूवार
1980 28 मईबुधवार
1985 03 फरवरीरविवार
1989 22 नवंबरबुधवार
1991 20 मईशुक्रवार
1993 18 नवंबरगुरूवार
1996 10 जुलाईबुधवार
2002 14 फरवरीगुरूवार
2007 21 फरवरीबुधवार
2012 30 जनवरीसोमवार
2017 15 फरवरीबुधवार
2022 14 फरवरीसोमवार

रुद्रप्रयाग: चुनाव आयोग द्वारा पंजाब विधानसभा चुनावों की तिथि में बदलाव करने के बाद अब उत्तराखंड में भी विधानसभा चुनाव (uttarakhand assembly election 2022) की तिथि बदलने की मांग उठने लगी है. चुनाव की तिथि बदलने की मांग करने वालों का कहना है कि प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए मतदान की तिथि मार्च माह के पहले सप्ताह में होनी चाहिए. लेकिन अगर चुनावी आंकड़ों को देखा जाए तो चुनाव आयोग को फरवरी माह में ही चुनाव कराना मुफीद लगता है.

चुनाव आयोग ने उत्तराखंड में 14 फरवरी को मतदान का दिन निश्चित किया है. वहीं, पंजाब में भी 14 फरवरी निश्चित किया था, लेकिन वहां सरकार एवं सभी विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से संत रविदास की जयंती को देखते हुए चुनाव तिथियों में बदलाव की मांग की थी. चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों की मांग को सही मानते हुए मतदान तिथि बदलकर अब 20 फरवरी कर दी है, जिसके बाद उत्तराखंड में भी चुनाव की तिथि बदलने की मांग उठने लगी है.

उत्तराखंड में पड़ रही कड़ाके की ठंड: उत्तराखंड में इस समय कड़ाके की ठंड पड़ रही है. मौसम विभाग की मानें तो आगामी दिनों में ठंड और बर्फबारी (Snowfall in Uttarakhand) बढ़ने के आसार हैं. ऐसे में उत्तराखंड में चुनाव कराना बहुत मुश्किल हो सकता है. प्रत्याशियों को मतदाता तक पहुंच बनाने के लिए खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. वहीं, दूसरी ओर ऊंचाई और बर्फीले इलाकों में पोलिंग पार्टियों को भी पहुंचाने में प्रशासन को भी काफी परेशानी होगी.

पढ़ें- हरक सिंह की BJP में वापसी के आसार, सुबोध उनियाल बोले- गलती मान लें तो शायद हाईकमान सोचे

निर्दलीय प्रत्याशियों को होगी ज्यादा परेशानी: कड़ाके की ठंड में सबसे अधिक चुनौती निर्दलीय प्रत्याशियों को 14 दिन में अपना चुनाव चिन्ह मतदाताओं तक पहुंचाने की होगी. कोरोना महामारी के कारण चुनावी सभाओं और रोड शो पर बैन लगा है. ऐसे में हर दल और हर प्रत्याशी को मतदाता तक पहुंच बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा, फिर भी 14 दिनों में हर गांव, हर मतदाता तक पंहुच पाना उनके लिए टेड़ी खीर होगी. ऐसे में हर दल एवं सामाजिक संगठन चुनाव तिथि में बदलाव की मांग करने लगे हैं.

रविवार को चुनाव कराने की मांग: कई संगठन रविवार को चुनाव कराने की भी मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि नजदीकी प्रदेशों में रहने वाले प्रवासी मतदाता रविवार को मतदान करने घरों को आ सकते हैं. ऐसे में मतदान प्रतिशत भी बढ़ने की संभावना है, लेकिन आंकड़ों की नजर से देखें तो मध्यावधि चुनावों को छोड़कर चुनाव आयोग ने अधिकतर फरवरी में ही चुनाव कराना मुफीद समझा है.

क्या कहते हैं आंकड़े: उत्तर प्रदेश में रहते हुए यहां मतदान प्रतिशत 50 से भी कम रहा है. आंकड़े बता रहे हैं कि चुनाव आयोग ने अभी तक केवल साल 1974 और 1985 में ही रविवार को चुनाव कराए हैं. इन दोनों वर्षों में भी मतदान प्रतिशत पर कोई खास असर नहीं पड़ा था. उत्तराखंड बनने से मतदान प्रतिशत काफी बड़ा है. ऐसी स्थिति में लगता नहीं कि चुनाव आयोग तिथियों में बदलाव करेगा.

प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष विक्रम झिंक्वाण ने कहा कि उत्तराखंड में कोरोना की तीसरी लहर में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए चुनाव आयोग को मतदान तिथि में बदलाव करना चाहिए. विशेषज्ञ भी फरवरी के दूसरे व तीसरे सप्ताह में कोरोना की तीसरी लहर का पीक बता रहे हैं. साथ ही जनपद के ऊंचे क्षेत्रों में जहां बर्फ अधिक होगी वहां पोलिंग पार्टी को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में मतदान की तिथि में बदलाव कर मार्च माह के प्रथम सप्ताह में करना उचित होगा.

बढ़ सकता है मतदान प्रतिशत: उत्तराखंड वीरांगना संगठन की जिलाध्यक्ष माधुरी नेगी ने कहा कि उत्तराखंड में इन दिनों भीषण सर्दी हो रही है. मौसम विभाग भी आने वाले कुछ दिनों में पहाड़ी क्षेत्रों में शीतलहर एवं भारी बर्फबारी का अंदेशा जता रहा है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत कम हो सकता है. अगर मतदान की तिथि 14 फरवरी से बदलकर 3 से 6 मार्च के बीच की जाए तो मतदान प्रतिशत बढ़ सकता है.

प्रधान संगठन के अध्यक्ष विजयपाल राणा ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में विकट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उम्मीदवार को इतने कम समय में दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के मतदाता तक पहुंचना बहुत मुश्किल होगा. जनसंख्या घनत्व कम होने से एक दिन में उम्मीदवार बहुत कम मतदाताओं से मिल पाएगा. कोरोना के कारण चुनावी सभाओं एवं रोड शो पर प्रतिबंध लगाया गया है. उम्मीदवार को प्रचार के लिए अधिक समय मिलना चाहिए. इसके लिए चुनाव आयोग को मतदान तिथि फरवरी के अंतिम सप्ताह या मार्च माह के पहले सप्ताह तक बढ़ानी चाहिए.

अब तक हुए चुनावों की तिथियां एवं दिन

विधानसभा चुनावतिथिदिवस
1952 28 मार्चशुक्रवार
1957 25 फरवरीसोमवार
1962 19 फरवरीसोमवार
1967 21 फरवरीमंगलवार
1969 05 फरवरीबुधवार
1974 24 फरवरीरविवार
1977 06 अक्टूबरगुरूवार
1980 28 मईबुधवार
1985 03 फरवरीरविवार
1989 22 नवंबरबुधवार
1991 20 मईशुक्रवार
1993 18 नवंबरगुरूवार
1996 10 जुलाईबुधवार
2002 14 फरवरीगुरूवार
2007 21 फरवरीबुधवार
2012 30 जनवरीसोमवार
2017 15 फरवरीबुधवार
2022 14 फरवरीसोमवार
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