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अगस्त्यमुनि में राजा बलि के पूजन में उमड़ी भीड़, तीन दिन पृथ्वी पर रहता है असुरराज का शासन

Worship of King Bali in Agastyamuni दीपावली के शुभ अवसर पर अगस्त्यमुनि स्थित महर्षि अगस्त्य मुनि के मंदिर में बलिराज पूजन का आयोजन विधि विधान से किया गया. भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की यह पूजा केदारखंड में केवल महर्षि अगस्त्य मन्दिर अगस्त्यमुनि में ही की जाती है. इसलिए क्षेत्र की जनता में इसका बड़ा धार्मिक महत्व है.

Baliraj pojan
राजा बलि की कहानी
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 13, 2023, 1:26 PM IST

Updated : Nov 13, 2023, 3:46 PM IST

रुद्रप्रयाग: अगस्त्यमुनि में बलिराज का पूजन संपन्न हुआ. बलिराज की पूजा सभी भक्तों के लिए सामूहिक रूप में दीपावली मनाने का अद्भुत नजारा होता है. इस अवसर पर मुनि महाराज के मंदिर को 700 दीयों से सजाया गया. इन दीयों को भक्त जन अपने घरों से लेकर आये थे.

अगस्त्यमुनि में हुआ बलिराज पूजन: मंदिर के प्रांगण में पुजारियों द्वारा भक्तों के साथ विष्णु भगवान को मध्यस्थ रखकर चावल और धान से राजा बलि, भगवान विष्णु के वामन स्वरूप एवं गुरु शुक्राचार्य की अनुकृतियां बनाई गईं. समारोह को लेकर इतना उत्साह था कि अनेक भक्त भी इसमें शामिल हुए. करीब 3 घंटे चले कार्यक्रम में माहौल देखने लायक था. देर सायं को आरती हुई और सैकड़ों भक्तों ने क्षेत्र एवं अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना की. वामन महाराज एवं बलिराज की पूजा अर्चना की गई. फुलझड़ियां एवं पटाखे जलाकर दीपावली का शुभारम्भ किया. भक्त भगवान वामन के आशीर्वाद स्वरूप मंदिर से जलते दीए घर ले गये और अपने घरों के दीपों को जलाकर लक्ष्मी पूजन किया.

बड़ी संख्या में बलिराज पूजन के साक्षी बने लोग: बड़ी संख्या में भक्त बलिराज पूजन के साक्षी बनने के लिए मंदिर में पहुंचे. अगस्त्य मंदिर के मठाधीश पं योगेश बैंजवाल और पुजारी पं भूपेन्द्र बैंजवाल ने बताया कि बलिराज पूजन की यह प्रथा यहां सदियों से चली आ रही है. इस प्रथा के चलन में पौराणिकता के साथ ही सामाजिकता का भी पुट है. सायंकालीन आरती के साथ दीपोत्सव प्रारम्भ होता है. इसके साक्षी सैकड़ों की संख्या में उपस्थित भक्तजन होते हैं.

ऐसे हुई तैयारी: पहले इस अवसर पर निकटवर्ती गांवों से ग्रामीण मंदिर परिसर में भैलो खेलने आते थे और सामूहिक रूप से दीपावली मनाते थे. समय के साथ साथ दीपावली का स्वरूप भी बदलने लगा है. जिसका असर इस प्रथा पर भी पड़ा है. फिर भी कई स्थानीय लोग इस अवसर पर मंदिर प्रांगण में एकत्रित होकर फुलझड़ियां, अनार एवं पटाखे जलाकर दीपावली मनाते हैं. मंदिर को सजाने एवं संवारने में, हरि सिंह खत्री, विपिन रावत, सुशील गोस्वामी, चन्द्रमोहन नैथानी, नवीन बिष्ट, अखिलेश गोस्वामी आदि सहित कई नन्हें भक्तों ने भी सहयोग किया.

यह है कथा: पौराणिक कथा के अनुसार असुरों में एक राजा बलि हुए जो कि अपनी दान वीरता के लिए प्रसिद्ध थे. देवता इस डर से कि कहीं राजा बलि स्वर्ग पर विजय प्राप्त न कर दें, विष्णु भगवान से इससे मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करते हैं. इसी प्रार्थना को पूरा करने के लिए विष्णु भगवान वामन का रूप धरकर राजा बलि के पास जाकर तीन पग भूमि दान स्वरूप मांगते हैं. सभी मंत्रियों एवं गुरु शुक्राचार्य के लाख मना करने के बावजूद दानवीर राजा बलि तीन पग जमीन देने के लिए तैयार हो जाते हैं.

तीन दिन पृथ्वी पर रहता है राजा बलि का राज: भगवान वामन विशाल स्वरूप में आकर एक पग में पृथ्वी तथा एक पग में आकाश को नापकर तीसरे पग के लिए भूमि मांगते हैं. राजा बलि तीसरे पग को अपने सिर पर रखने को कहते हैं. भगवान वामन के ऐसा करते ही राजा बलि पाताल में चले जाते हैं. इस प्रकार देवताओं को राजा बलि से छुटकारा मिल जाता है. भगवान वामन राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं. राजा बलि मांगते हैं कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं अमावस्या के तीन दिन धरती पर मेरा शासन हो. इन तीन दिनों तक लक्ष्मी जी का वास धरती पर हो तथा मेरी समस्त जनता सुख समृद्धि से भरपूर हो. भगवान उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं. तब से कहा जाता है कि इन तीन दिनों में पृथ्वी पर राजा बलि का शासन रहता है.
ये भी पढ़ें: कुमाऊं के इस मंदिर में बरसती है महालक्ष्मी की असीम कृपा, एक साथ जलाए गए 11000 दीये

रुद्रप्रयाग: अगस्त्यमुनि में बलिराज का पूजन संपन्न हुआ. बलिराज की पूजा सभी भक्तों के लिए सामूहिक रूप में दीपावली मनाने का अद्भुत नजारा होता है. इस अवसर पर मुनि महाराज के मंदिर को 700 दीयों से सजाया गया. इन दीयों को भक्त जन अपने घरों से लेकर आये थे.

अगस्त्यमुनि में हुआ बलिराज पूजन: मंदिर के प्रांगण में पुजारियों द्वारा भक्तों के साथ विष्णु भगवान को मध्यस्थ रखकर चावल और धान से राजा बलि, भगवान विष्णु के वामन स्वरूप एवं गुरु शुक्राचार्य की अनुकृतियां बनाई गईं. समारोह को लेकर इतना उत्साह था कि अनेक भक्त भी इसमें शामिल हुए. करीब 3 घंटे चले कार्यक्रम में माहौल देखने लायक था. देर सायं को आरती हुई और सैकड़ों भक्तों ने क्षेत्र एवं अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना की. वामन महाराज एवं बलिराज की पूजा अर्चना की गई. फुलझड़ियां एवं पटाखे जलाकर दीपावली का शुभारम्भ किया. भक्त भगवान वामन के आशीर्वाद स्वरूप मंदिर से जलते दीए घर ले गये और अपने घरों के दीपों को जलाकर लक्ष्मी पूजन किया.

बड़ी संख्या में बलिराज पूजन के साक्षी बने लोग: बड़ी संख्या में भक्त बलिराज पूजन के साक्षी बनने के लिए मंदिर में पहुंचे. अगस्त्य मंदिर के मठाधीश पं योगेश बैंजवाल और पुजारी पं भूपेन्द्र बैंजवाल ने बताया कि बलिराज पूजन की यह प्रथा यहां सदियों से चली आ रही है. इस प्रथा के चलन में पौराणिकता के साथ ही सामाजिकता का भी पुट है. सायंकालीन आरती के साथ दीपोत्सव प्रारम्भ होता है. इसके साक्षी सैकड़ों की संख्या में उपस्थित भक्तजन होते हैं.

ऐसे हुई तैयारी: पहले इस अवसर पर निकटवर्ती गांवों से ग्रामीण मंदिर परिसर में भैलो खेलने आते थे और सामूहिक रूप से दीपावली मनाते थे. समय के साथ साथ दीपावली का स्वरूप भी बदलने लगा है. जिसका असर इस प्रथा पर भी पड़ा है. फिर भी कई स्थानीय लोग इस अवसर पर मंदिर प्रांगण में एकत्रित होकर फुलझड़ियां, अनार एवं पटाखे जलाकर दीपावली मनाते हैं. मंदिर को सजाने एवं संवारने में, हरि सिंह खत्री, विपिन रावत, सुशील गोस्वामी, चन्द्रमोहन नैथानी, नवीन बिष्ट, अखिलेश गोस्वामी आदि सहित कई नन्हें भक्तों ने भी सहयोग किया.

यह है कथा: पौराणिक कथा के अनुसार असुरों में एक राजा बलि हुए जो कि अपनी दान वीरता के लिए प्रसिद्ध थे. देवता इस डर से कि कहीं राजा बलि स्वर्ग पर विजय प्राप्त न कर दें, विष्णु भगवान से इससे मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करते हैं. इसी प्रार्थना को पूरा करने के लिए विष्णु भगवान वामन का रूप धरकर राजा बलि के पास जाकर तीन पग भूमि दान स्वरूप मांगते हैं. सभी मंत्रियों एवं गुरु शुक्राचार्य के लाख मना करने के बावजूद दानवीर राजा बलि तीन पग जमीन देने के लिए तैयार हो जाते हैं.

तीन दिन पृथ्वी पर रहता है राजा बलि का राज: भगवान वामन विशाल स्वरूप में आकर एक पग में पृथ्वी तथा एक पग में आकाश को नापकर तीसरे पग के लिए भूमि मांगते हैं. राजा बलि तीसरे पग को अपने सिर पर रखने को कहते हैं. भगवान वामन के ऐसा करते ही राजा बलि पाताल में चले जाते हैं. इस प्रकार देवताओं को राजा बलि से छुटकारा मिल जाता है. भगवान वामन राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं. राजा बलि मांगते हैं कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं अमावस्या के तीन दिन धरती पर मेरा शासन हो. इन तीन दिनों तक लक्ष्मी जी का वास धरती पर हो तथा मेरी समस्त जनता सुख समृद्धि से भरपूर हो. भगवान उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं. तब से कहा जाता है कि इन तीन दिनों में पृथ्वी पर राजा बलि का शासन रहता है.
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Last Updated : Nov 13, 2023, 3:46 PM IST
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