रुद्रप्रयाग: रक्षाबंधन से एक दिन पूर्व रात्रि को चार प्रहर की पूजा कर श्री केदारनाथ, ओंकारेश्वर तथा विश्वनाथ मंदिर में भतूज पर्व अर्थात अन्नकूट मेला विधि विधान से मनाया गया. इस दौरान हजारों की तादाद में तीर्थ यात्रियों तथा श्रद्धालुओं ने भगवान शंकर के त्रिकोणीय लिंग पर खाद्य सामग्री का लेप लगाकर मनौतियां मांगी.
कथाओं के अनुसार जब समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शंकर ने ग्रहण किया, तब समस्त देवी देवताओं को यह लगने लगा कि अब पेट में इस जहर के पहुंचते ही भगवान शंकर तांडव नृत्य करने लगेंगे. इससे विश्व का विनाश निश्चित है. तब अन्य देवताओं ने भगवान शंकर से विष को अपने गले में ही सुरक्षित रखने की प्रार्थना की. जिसे भगवान शंकर ने सहर्ष स्वीकार किया. गले में विष को रखने के बाद भगवान का दूसरा नाम नीलकंठ पड़ गया, क्योंकि इस विष के प्रभाव से उनका कंठ पूर्ण रूप से नीला हो गया था.
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इस विष के प्रभाव को दूर करने के लिए भगवान शंकर का रुद्राभिषेक किया जाता है. वर्ष भर में एक बार इस विश्व की अनल को शांत करने के लिए नए अनाज चावल का लेप लिंग पर लगाया जाता है. केदारनाथ धाम, पंच केदार गद्दी स्थल ओंकारेश्वर तथा विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी में मंदिरों को फूलों से सुसज्जित किया गया. इस दौरान भगवान के लिंग का ऋंगार कर चार प्रहर की पूजा अर्चना की गई. साथ ही वेद पाठियों और स्थानीय लोगों द्वारा वेदोक्त मंत्र से भगवान शंकर का अभिषेक किया गया. प्रात काल इस लिंग पर लिपटे हुए चावल के लेप का प्रसाद रूप में सभी भक्तों में बांटा गया.
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स्थानीय भाषा में इसे भतूज मेला कहा जाता है, जबकि साधारण भाषा में इसे अन्नकूट कहा जाता है. विद्वान आचार्य हर्षवर्धन देवशाली ने कहा संपूर्ण विश्व को विष के असर से मुक्त करने के लिए अन्नकूट मेला आयोजित किया जाता है. उन्होंने बताया मान्यता है कि नए अन्न में जहर के कई कारक भी विद्यमान होते हैं. ऐसे में सर्वप्रथम नए अन्न का भोग भगवान शंकर को लगाया जाता है ,ताकि विष का प्रभाव न्यून हो सके. प्रतिवर्ष रक्षाबंधन से एक दिन पूर्व यह मेला आयोजित किया जाता है.