रुद्रप्रयाग: आपदा की दृष्टि से अति संवेदनशील रुद्रप्रयाग जनपद के 23 गांव आज भी विस्थापन की बांट जोह रहे हैं. हर मॉनसून सीजन में इन गांवों के लोगों को बारिश होने पर अपने आशियानों को छोड़कर दूसरे जगह जाना पड़ता है. हर बार इन्हें विस्थापन का भरोसा देकर मौत के मुंह में धकेल दिया जाता है. ग्रामीण इलाकों में लोगों के घरों में मोटी-मोटी दरारें भूकंप की निशानी हैं, तो आपदा ने इन्हें ऐसा गहरा जख्म दिया है कि जीवन और मौत के बीच ग्रामीण अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं. जिले के 23 गांवों का विस्थापन आज तक नहीं हो पाया है. पिछले कई सालों से इन गांवों के लोग बरसाती सीजन में दूसरी जगह शरणार्थी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
विस्थापन की लिस्ट में दो गांव और जुड़े
विस्थापन की लिस्ट में अब दो गांव और जुड़ गए हैं. इनमें ऊखीमठ ब्लॉक के ग्राम पंचायत उषाड़ा के ताला और पैठाणी तोक में भू-धंसाव के कारण हालात खराब हो रहे हैं. यहां जगह-जगह दरारें पड़ने से लोग अपने घरों को छोड़ चुके हैं. दोनों जगहें रहने लायक नहीं रह गई हैं, जबकि जखोली के सिरवाड़ी में बादल फटने के बाद से आवासीय भवनों, गौशाला व कृषि भूमि को व्यापक क्षति पहुंची है. इसलिए प्राथमिकता के साथ इन गांवों का विस्थापन होना जरूरी है.
इन गावों के परिवारों का होना है विस्थापन
जखोली तहसील
गांव का नाम | परिवार |
पांजणा | 148 |
जैली | 11 |
मुसाढुंग (सुनाई तोक) | 33 |
ऊखीमठ विकासखंड
गांव का नाम | परिवार |
कालीमठ | 2 |
कुणजेठी | 4 |
जालतल्ला | 2 |
बालसुंडी | 16 |
बीरों देवल (खोली तोक) | 7 |
सेमी तल्ली | 27 |
दैड़ा | 3 |
सिल्ला बामणगांव | 24 |
चमराड़ा | 29 |
गिरिया | 48 |
कविल्ठा | 7 |
ऊखीमठ | 13 |
नागजगई (जाख तोक) | 18 |
टेमरिया वल्ला | 9 |
दिलमी | 1 |
टाट लगा फेगू | 4 |
डमार | 34 |
रुद्रप्रयाग मलाऊ | 13 |
कुण्डा दानकोट | 14 |
छांतीखाल | 5 |
कुल | 472 |
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आपदा की दृष्टि से रुद्रप्रयाग जनपद की केदारघाटी अति संवेदनशील
16-17 जून 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद से केदारघाटी में हर बरसाती सीजन में आफत की बारिश होती रही है. यह मॉनसून सीजन भी केदारघाटी की जनता पर भारी पड़ रहा है. केदारघाटी के उषाड़ा गांव में जमीन धंसने से 80 परिवार बेघर हुये हैं. यह 80 परिवार पिछले 10 दिनों से सुरक्षित स्थानों पर ठिकाना लिये हुये हैं, जबकि सिरवाड़ी गांव के 20 से अधिक परिवार भी विगत नौ अगस्त को बादल फटने के कारण अपने घर छोड़ चुके हैं. इस बरसाती सीजन में सिरवाड़ी और उषाड़ा में सबसे अत्यधिक नुकसान हुआ है. केदारघाटी का खुमेरा गांव भी खतरे की जद में आ गया है. केदारनाथ हाईवे और मंदाकिनी नदी से हो रहे कटाव के चलते गांव के कई परिवार खतरे की जद में हैं.
नुकसान का अभी तक नहीं किया गया आंकलन
जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुमंत तिवाड़ी ने कहा कि केदारघाटी के कई गांव बरसाती सीजन आने पर डर के माहौल में जीवन यापन करने को मजबूर रहते हैं. प्रशासन की ओर से समय से प्रभावितों को राहत नहीं मिल पा रही है. उषाड़ा, रामपुर, तलसारी, खाट और फाटा में आपदा से भारी नुकसान हुआ है और प्रशासन की टीम ग्रामीणों को राहत नहीं दे पाई है. नुकसान का आंकलन नहीं किया गया है और ग्रामीणों को मुआवजा नहीं मिल पाया है. उन्होंने कहा कि जिलाधिकारी को तहसील प्रशासन के अधिकारियों को सख्त हिदायत देनी चाहिए, जिससे कोई भी घटना होने से त्वरित कार्रवाई की जा सके.
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सिरवाड़ी गांव के विस्थापन को लेकर कोई निर्णय नहीं
वहीं, रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी ने कहा कि जखोली ब्लॉक का सिरवाड़ी गांव संवेदनशील क्षेत्र है. इस गांव में 1986 में आपदा आने पर 13 लोगों की जान गई थी और इस बरसाती सीजन में भी गांव में भारी तबाही हुई है. ग्रामीणों को मुआवजा दिया गया है. उन्होंने कहा कि गांव के पुनर्वास को लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ है. भूगर्भीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट आने के बाद ही सरकार निर्णय लेगी कि कितने परिवारों का विस्थापन किया जाना है. उन्होंने कहा कि जिले के अन्य गांव भी विस्थापन की मांग करते आ रहे हैं, जिसके लिए शासनस्तर पर कार्रवाई चल रही है.
क्षतिग्रस्त भवनों का किया जा रहा विस्थापन
जिलाधिकारी वंदना सिंह का कहना है कि कहा कि केदारघाटी के उषाड़ा गांव में प्रभावितों के लिए टेंट की व्यवस्था की गयी है. आपदा प्रभावित गांवों का निरीक्षण किया जा रहा है और क्षति का आंकलन कर मानकों के तहत मुआवजा दिया जा रहा है. बारिश के इस सीजन में उषाड़ा और सिरवाड़ी गांव में ज्यादा नुकसान हुआ है. यहां लोगों ने अपने घरों को छोड़ दिया है, जिन प्रभावितों के भवन पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हैं, उनके लिए विस्थापन की कार्रवाई की जा रही है.
रुद्रप्रयाग जनपद में आपदा की दृष्टि से संवेदनशील इन 23 गांवों को हर बरसाती सीजन में भारी नुकसान झेलना पड़ता है. सरकार मुआवजा के नाम चंद सिक्के देकर यहां के पीड़ितों का मुंह बंद कर देती है, लेकिन यहां पर रह रहे लोग बरसात शुरू होते ही दहशत में जीने को मजबूर हो जाते हैं.