पिथौरागढ़: उत्तराखंड के उच्च हिमालयी इलाकों में होने वाले यारसागंबू का दोहन इस बार नहीं हो पाया. कोरोना संकट के कारण चीन और नेपाल के बॉर्डर पूरी तरह सील हैं. जिस कारण इसके दोहन में स्थानीय लोगों ने भी खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. साथ ही वन पंचायतों को भी दोहन की अनुमति नहीं मिल पाई.
दशकों बाद ये पहला मौका है, जब यारसागंबू का दोहन नहीं हुआ है. जानकारों की मानें तो दोहन नहीं होने से आने वाले सालों में इसकी पैदावार और बढ़ेगी. हालांकि इसका कम दोहन भी खतरनाक साबित हो सकता है. यारसागंबू के फंगस स्पोर बुग्यालों में जरूरत से ज्यादा पाए गए तो हिमालयी इनसेक्ट्स के लार्वा प्रभावित होंगे, जिससे भविष्य में यारसागंबू का उत्पादन प्रभावित हो सकता है.
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यारसागंबू के जानकार डॉ.सचिन बोरा ने बताया कि इस साल यारसागंबू का दोहन नहीं होने से 2022-23 के बाद के लार्वा प्रभावित होंगे, जिससे अच्छी मात्रा में यारसागंबू प्राप्त होगा. हालांकि अगर इसके फंगस स्पोर बुग्यालों में ज्यादा पाए गए तो इसके होस्ट इन्सेक्ट थीटारोड के लार्वा प्रभावित होंगे, जिससे भविष्य में इसका उत्पादन पूरी तरह बंद हो जाएगा.
हिमालयन वियाग्रा है रोजगार का जरिया
उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी के ऊंचे इलाकों में हर साल भारी संख्या में इसका दोहन होता है. इंटरनेशनल मार्केट में इसकी कीमत 20 लाख रूपये किलो है. यही वजह है कि उच्च हिमालयी इलाकों में रहने वालों के लिए यारसागंबू रोजगार का सबसे बड़ा जरिया साबित हुआ है. हालांकि इसके बेतरतीब दोहन और ऊंचे इलाकों में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप ने पर्यावरण को भी खासा प्रभावित किया है.