बेरीनाग: आज यानी 28 मई को पूरी दुनिया में 'मासिक धर्म स्वच्छता दिवस' मनाया जाता है. 2014 में जर्मन के 'वॉश यूनाइटेड' नाम के एक एनजीओ ने इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी. जिसका मुख्य उद्देश्य लड़कियों और महिलाओं को महीने के उन 5 दिन यानी अपने मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता रखने के लिए जागरूक करना है. तारीख भी '28' ही इसलिए चुनी गई क्योंकि आमतौर पर महिलाओं के मासिक धर्म 28 दिनों के भीतर आते हैं.
एक आंकड़े के मुताबिक देशभर में करीब 35 करोड़ महिलाएं उस उम्र में हैं, जब उन्हें माहवारी होती है. लेकिन इनमें से करोड़ों महिलाएं इस अवधि को सुविधाजनक और सम्मानजनक तरीके से नहीं गुजार पातीं. एक शोध के अनुसार करीब 71 फीसदी महिलाओं को प्रथम मासिक स्राव से पहले मासिक धर्म के बारे में जानकारी ही नहीं होती. वहीं करीब 70 फीसदी महिलाओं की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वो सेनिटरी नेपकिन खरीद पाएं, जिसकी वजह से वे कपड़े इस्तेमाल करती हैं.
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क्या है माहवारी?
माहवारी नौ से 13 वर्ष की लड़कियों के शरीर में होने वाली एक सामान्य हार्मोनल प्रक्रिया है. इसके फलस्वरूप शरीर में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं. यह प्राकृतिक प्रक्रिया सभी लड़कियों में किशोरावस्था के अंतिम चरण से शुरू होकर उनके संपूर्ण प्रजनन काल तक जारी रहती है.
इस मौके पर डॉक्टर बबीता ने बताया इस दिवस के मौके पर विश्व के 70 देशों में 500 से अधिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. भारत में तमिलनाडू, असम में लड़की की पहली महावारी के समय उत्सव मनाया जाता है. कुछ स्थानों पर साक्षरता दर अच्छी नहीं होने के कारण इसकी जानकारी तक नहीं होती है.
डॉ. बबीता के अनुसार आज भी 11 से 13 वर्ष की उम्र में लगभग 71 प्रतिशत लड़कियां माहवारी से अनजान रहती हैं. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 48 प्रतिशत महिलायें स्वच्छता सामाग्री जैसे पैड, टैम्यून, नैपकिन आदि का प्रयोग करती हैं. महावारी के प्रति रूढ़िवादी सोच का ही नतीजा है कि वे इस बारे में बात करने में भी शरमाती हैं.
उनका कहना है कि महावारी दिवस पर 'इट्स टाइम फार एक्शन' के तहत लड़कियों को माहवारी के बारे में उचित व्याहारिक जानकारी दी जाए. उन्होंने कहा कि महिलाओं से जुड़ी समस्याओं का सामाधान किये बिना नारी सशक्तीकरण की बात करना गलत है. वे कहती हैं कि जब 100 प्रतिशत महिलायों को इसकी पूरी जानकारी मिल जाएगी तब इस दिवस को मनाने का उद्देश्य पूरा होगा.