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धारचूला तहसील के ग्रामीण बोले- 18 साल से विकास का मिला सिर्फ आश्वासन, अब करेंगे चुनाव का बहिष्कार

पिथौरागढ़ जिले के सीमांत क्षेत्र धारचूला, मुनस्यारी, बंगापानी और डीडीहाट के करीब 14 गांव के लोगों ने मूलभूत सुविधाओं को लेकर इस बार चुनाव बहिष्कार का एलान किया है.

पिथौरागढ़ ग्रामीणों का चुनाव बहिष्कार
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Published : Mar 27, 2019, 9:34 PM IST

पिथौरागढ़ः उत्तराखंड राज्य को अस्तित्व को आये 18 साल हो गए हैं. आज भी कई गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. वहीं, लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों के नेता जनता को रिझाने में लगे हैं. लेकिन मूलभूत सुविधाओं से वंचित सीमांत क्षेत्र धारचूला, मुनस्यारी, बंगापानी और डीडीहाट के करीब 14 गांव के लोगों ने इस बार चुनाव बहिष्कार का एलान किया है. ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के दौरान नेता तमाम घोषणाएं और वादे करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद उनकी सुध नहीं ली जाती है.

जानकारी देते स्थानीय ग्रामीण और जिलाधिकारी.


चुनाव आते ही नेताओं को एक बार फिर जनता की याद आने लगी है. लुभावने वादों को लेकर नेताजी एक बार फिर जनता के बीच जा रहे हैं, लेकिन दशकों से मूलभूत सुविधाओं का अभाव झेल रही जनता नेताओं के झूठे वादों से परेशान हो चुकी है. आजादी के सात दशक बीत जाने के भी पिथौरागढ़ जिले के दर्जनों दूरस्थ गांवों में बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है. विकास से कोसों दूर होने के बावजूद सीमांत की जनता हर चुनावों में वोट डालकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करती है, लेकिन चुनाव के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि और सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है.


इसी को लेकर जिले के धारचूला तहसील के सुदूर दारमा क्षेत्र के रांथी, खेला, दर, उमचिया, बोलिंग, सोबला, सुआ, जम्कू, खेत और गलती गांव की 10 हजार से अधिक की आबादी ने सड़क और विभिन्न बुनियादी सुविधाओं के अभाव को लेकर चुनाव बहिष्कार का एलान किया है. उधर, बंगापानी तहसील के कनार और मेतली, मुनस्यारी तहसील के नामिक, साइपोलो, गांधीनगर, और क्विरिजिमिया, डीडीहाट के काणाधार गांव के लोगों ने भी वोट ना डालने की घोषणा की है.


ये भी पढ़ेंःनए पोलिंग बूथों के लिए नहीं मिली अनुमति, 1794 बूथों पर ही होगा मतदान


बता दें कि इनमें से कई गांव पहले भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों का बहिष्कार कर चुके हैं. ग्रामीणों का कहना है कि दूरस्थ गांवों में आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. नेता और जनप्रतिनिधि केवल चुनाव के दौरान ही उनके पास आते हैं और कई वादे और घोषणाएं करते हैं, लेकिन जीतने के बाद वादे भूल जाते हैं. आज भी क्षेत्र की स्थिति जस की तस बनी हुई है. उनका कहना है कि दोनों सरकारों ने बॉर्डर पर बसे ग्रामीणों को हमेशा से ही उपेक्षा में रखा है. उनकी मांगों को दरकिनार किया जाता रहा है. ऐसे में वो इस बार चुनाव में वोटिंग नहीं करेंगे.


वहीं, मामले पर जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे का कहना है कि जिन गांवों में विकास कार्य नहीं हो पाया है, उन गांवों के लोगों के साथ वार्ता किया जाएगा. वर्तमान में आचार संहिता प्रभावी है. ऐसे में कोई कार्य शुरू नहीं किया जा सकता है. इसके बारे में संबंधित ग्राम सभा के लोगों को बताया जाएगा. साथ ही ग्रामीणों से वोट डालने को लेकर अनुरोध किया जाएगा. जिससे प्रतिनिधि चुने जाने के बाद विकास कार्य भी हो सके.

पिथौरागढ़ः उत्तराखंड राज्य को अस्तित्व को आये 18 साल हो गए हैं. आज भी कई गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. वहीं, लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों के नेता जनता को रिझाने में लगे हैं. लेकिन मूलभूत सुविधाओं से वंचित सीमांत क्षेत्र धारचूला, मुनस्यारी, बंगापानी और डीडीहाट के करीब 14 गांव के लोगों ने इस बार चुनाव बहिष्कार का एलान किया है. ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के दौरान नेता तमाम घोषणाएं और वादे करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद उनकी सुध नहीं ली जाती है.

जानकारी देते स्थानीय ग्रामीण और जिलाधिकारी.


चुनाव आते ही नेताओं को एक बार फिर जनता की याद आने लगी है. लुभावने वादों को लेकर नेताजी एक बार फिर जनता के बीच जा रहे हैं, लेकिन दशकों से मूलभूत सुविधाओं का अभाव झेल रही जनता नेताओं के झूठे वादों से परेशान हो चुकी है. आजादी के सात दशक बीत जाने के भी पिथौरागढ़ जिले के दर्जनों दूरस्थ गांवों में बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है. विकास से कोसों दूर होने के बावजूद सीमांत की जनता हर चुनावों में वोट डालकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करती है, लेकिन चुनाव के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि और सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है.


इसी को लेकर जिले के धारचूला तहसील के सुदूर दारमा क्षेत्र के रांथी, खेला, दर, उमचिया, बोलिंग, सोबला, सुआ, जम्कू, खेत और गलती गांव की 10 हजार से अधिक की आबादी ने सड़क और विभिन्न बुनियादी सुविधाओं के अभाव को लेकर चुनाव बहिष्कार का एलान किया है. उधर, बंगापानी तहसील के कनार और मेतली, मुनस्यारी तहसील के नामिक, साइपोलो, गांधीनगर, और क्विरिजिमिया, डीडीहाट के काणाधार गांव के लोगों ने भी वोट ना डालने की घोषणा की है.


ये भी पढ़ेंःनए पोलिंग बूथों के लिए नहीं मिली अनुमति, 1794 बूथों पर ही होगा मतदान


बता दें कि इनमें से कई गांव पहले भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों का बहिष्कार कर चुके हैं. ग्रामीणों का कहना है कि दूरस्थ गांवों में आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. नेता और जनप्रतिनिधि केवल चुनाव के दौरान ही उनके पास आते हैं और कई वादे और घोषणाएं करते हैं, लेकिन जीतने के बाद वादे भूल जाते हैं. आज भी क्षेत्र की स्थिति जस की तस बनी हुई है. उनका कहना है कि दोनों सरकारों ने बॉर्डर पर बसे ग्रामीणों को हमेशा से ही उपेक्षा में रखा है. उनकी मांगों को दरकिनार किया जाता रहा है. ऐसे में वो इस बार चुनाव में वोटिंग नहीं करेंगे.


वहीं, मामले पर जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे का कहना है कि जिन गांवों में विकास कार्य नहीं हो पाया है, उन गांवों के लोगों के साथ वार्ता किया जाएगा. वर्तमान में आचार संहिता प्रभावी है. ऐसे में कोई कार्य शुरू नहीं किया जा सकता है. इसके बारे में संबंधित ग्राम सभा के लोगों को बताया जाएगा. साथ ही ग्रामीणों से वोट डालने को लेकर अनुरोध किया जाएगा. जिससे प्रतिनिधि चुने जाने के बाद विकास कार्य भी हो सके.

Intro:Slug: Bahiskar
Anchor: 18 साल के वयस्क राज्य उत्तराखंड में आज भी कई गाँव ऐसे है जो बुनियादी सुविधाओं से कोसो दूर है। हर बार चुनाव के वक्त नेता बड़े-बड़े वादे तो करते है। लेकिन ये वादे कभी पूरे नही होते। राजनीतिक पार्टियों के लुभावने घोषणापत्र और नेताओं के झूठे वादों से तंग आकर राज्य के उपेक्षित गाँवों में एक बार फिर मतदान बहिष्कार का बुलन्द हुआ है। बात करें सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की तो यहां दर्जन भर से अधिक गाँवों ने आम चुनाव में वोट ना देने का फैसला लिया है। ये लोग व्यवस्था विरोधी नही मगर लाख फरियादें जब अनसुनी हो जाये तो लोगों के पास शायद यही रास्ता शेष बचता है। पेश है एक रिपोर्ट।

V. O.1: "आ गया इलेक्शन फिर नेता जी आएंगे, दिल तो पुराना ही है टोपी बदल लाएंगे"। चुनावी समर में नेताओं को एक बार फिर जनता की याद आने लगी है। लुभावने वादों को लेकर नेताजी एक बार फिर जनता के बीच जा रहे है। लेकिन दशकों से मूलभूत सुविधाओं का अभाव झेल रही जनता नेताओं के वादों से आजिज आ चुकी है। आजदी के 7 दशक बाद भी पिथौरागढ़ जिले के दर्जनों दूरस्थ गांवों में बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। विकास से कोसो दूर होने के बावजूद सीमांत की जनता प्रत्येक चुनावों में वोट डालकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करती है। लेकिन चुनाव के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि या सरकार जनता की उम्मीदों पर खरे नही उतरते। यहीं वजह है कि जिले के दर्जन भर से अधिक गांवों ने इन बार आम चुनाव में प्रतिभाग ना करने का फैसला लिया है।
Byte1: राजेन्द्र सिंह बिष्ट, ग्रामीण
Byte2: मोहन सिंह, ग्रामीण
Byte3: खीम सिंह परिहार, ग्रामीण
V.O.2: मूलभूत सुविधाओं से वंचित सीमांत क्षेत्र धारचूला, मुनस्यारी, बंगापानी और डीडीहाट के 14 गाँव के ग्रामीणों ने इस बार चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है। धारचूला तहसील के सुदूर दारमा क्षेत्र के रांथी, खेला, दर, उमचिया, बोलिंग, सोबला, सुआ, जम्कू, खेत और गलती गांव की 10 हज़ार से अधिक आबादी ने सड़क और विभिन्न बुनियादी सुविधाओं के अभाव में चुनाव बहिष्कार का एलान किया है। बंगापानी तहसील के कनार और मेतली, मुनस्यारी तहसील के नामिक, साइपोलो, गांधीनगर, और क्विरिजिमिया, डीडीहाट तहसील के काणाधार गाँव के ग्रामीणों ने मूलभूत सुविधाओं को लेकर आम चुनाव में प्रतिभाग करने से मना किया है। इनमे से कई गांव ऐसे भी है जो पूर्व में भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों का बहिष्कार कर चुके है। प्रशासन ग्रामीणों को मनाने में लगा हुआ है मगर ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार का मन बना लिया है।
Byte5: विजय कुमार जोगदंडे, जिलाधिकारी, पिथौरागढ़
F.V.O.: लोकतंत्र के इस महापर्व में जहां पूरा देश अपनी हिस्सेदारी का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। वहीं दूसरी ओर बॉर्डर पर बसे ग्रामीणों का दर्द इस बात को साफ बयां कर रहा है कि केंद्रीयकृत विकास की अवधारणा ने कई मुश्किले खड़ी कर दी है। लोकतंत्र में चुनाव बहिष्कार को जायज नही कहा जा सकता लेकिन जिन परिस्थितियों में ये ग्रामीण चुनाव बहिष्कार को मजबूर हुए है उसे देखकर इनके फैसले को नजरअंदाज भी नही किया जा सकता। ऐसे में लाख टके का सवाल ये है कि क्या लोकतंत्र में अंतिम छोर पर बसे ग्रामीणों की फरियाद यूं ही अनसुनी रहेगी या फिर इन्हें अपनी मांगों को मनवाने के लिए कोई और रास्ता तलाशना पड़ेगा।

मयंक जोशी, ई टी वी भारत, पिथौरागढ़


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