पिथौरागढ़: लिपुलेख सड़क बनने के बाद नेपाल ने पूरी तरह भारत विरोधी रूख अपना लिया है. जिसका खामियाजा भारत-नेपाल बॉर्डर पर रहने वाले नेपाली नागरिकों को भुगतना पड़ सकता है. आलम ये है कि नेपाल के लोग आज भी कई मामलों में भारत पर ही निर्भर हैं. नेपाल के उच्च हिमालयी इलाकों में रहने वाले छांगरू और तिंकर के ग्रामीणों को अपने गांव पहुंचने के लिए भारत की सरजमीं से होकर गुजरना पड़ता है. दोनों गांवों के करीब 3 सौ परिवार गर्मियों के सीजन में अपने मूल आवासों का रुख करते हैं, लेकिन आज भी इनके आने-जाने का रास्ता धारचूला और सीतापुल से ही है.
लॉकडाउन के कारण इस साल छांगरू और तिंकर के ग्रामीण अभी भी नेपाल के दार्चुला में ही हैं. ऐसे में नेपाल ने भारत से अपने नागरिकों के लिए पुल खोलने की गुजारिश की है. वहीं, गृह मंत्रालय और शासन से इस मामले में कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुए है. ताजा सीमा विवाद से भले ही भारत और नेपाल के रिश्तों में तल्खी बढ़ी हो, बावजूद इसके दोनों मुल्कों का सामाजिक ताना-बाना काफी हद तक एक सा है. उच्च हिमालयी इलाके में बसे नेपाल के छांगरू और तिंकर गांव के ग्रामीण हर साल माइग्रेशन करते हैं. छांगरू और तिंकर के ग्रामीण रं समुदाय से हैं. इनका खान-पान, रहन-सहन, भाषा-बोली पूरी तरह भारतीय रं समुदाय से मिलती है.
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इतना ही नहीं इन दोनों गांवों के लोग भारतीय रं समुदाय के हर कार्यक्रम में शिरकत भी करते हैं. अंतरराष्ट्रीय सरहदें मुल्कों के भू-भाग को भले ही तय करती हों, लेकिन इंसानी ताना-बाना इससे काफी ऊपर है. दोनों मुल्कों में सीमा विवाद से भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी के रिश्ते बुरी तरह प्रभावित होंगे. नेपाल सरकार जितनी जल्दी ये बात समझे, उसके नागरिकों के लिए उतना ही बेहतर होगा. नहीं तो तय है कि आने समय में बॉर्डर पर बसे नेपाली नागरिकों को और भी दिक्कतें उठानी पड़ सकती है.