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स्वरोजगार के क्षेत्र में नजीर पेश कर रहा नाबी गांव, पूरा गांव होमस्टे में तब्दील

चीन सीमा पर बसे पिथौरागढ़ के नाबी गांव को ग्रामीणों ने होम स्टे में तब्दील कर दिया है, जो सैलानियों को भी रास आ रहा है.

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होम स्टे से जुड़े गांव के 35 परिवार.
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Published : Oct 20, 2020, 7:41 AM IST

पिथौरागढ़: सीमांत जनपद पिथौरागढ़ जिले का नाबी गांव स्वरोजगार के क्षेत्र में नजीर पेश का कर रहा है. मुख्यधारा से कोसों दूर बसे नाबी के ग्रामीणों ने पूरे गांव को ही होम स्टे में तब्दील कर दिया है. दरअसल, इस गांव के ग्रामीणों ने 2017 में होमस्टे के जरिए रोजगार शुरू किया था. देखते ही देखते पिछले 4 सालों में यहां के 35 से अधिक परिवार होमस्टे से जुड़ गए हैं.

स्वरोजगार के क्षेत्र में नजीर पेश कर रहा नाबी गांव.

पारंपरिक शैली में बने इन घरों को सैलानी काफी पसंद कर रहे हैं. होमस्टे में तब्दील होने से गांव में सैलानियों का तांता लगा रहता है. साथ ही ग्रामीणों को भी घर पर ही रोजगार मिला है. ब्यास घाटी की संस्कृति, वेशभूषा, खान-पान और रहन-सहन के तौर तरीकों को नजदीक से जानने के लिये पर्यटक यहां खिंचे चले आ रहे हैं. ये बात अलग है कि इस साल नाबी का पर्यटन कोरोबार भी कोरोना की भेंट चढ़ा हुआ है. हिमालय की चोटियों के बीच बसा नाबी गांव आज स्वरोजगार के क्षेत्र में दूसरों को रास्ता दिखा रहा है. केएमवीएन के सहयोग से ये गांव मॉडल होम स्टे विलेज के रूप में अपनी पहचान बना चुका है. 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे नाबी गांव तक पहुंचना भले ही कठिन हो, लेकिन यहां की वादियां सैलानियों को रास आ रही है.


यह भी पढ़ें-चारधाम परियोजना मामला : सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

प्रकृति की गोद में बसे नाबी में होम स्टे इस कदर फल-फूल सकता है ये किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. सामूहिक सहभागिता के बूते ये गांव अब नई इबारत रच रहा है. बीते सालों तक गर्मियों के सीजन में यहां सैलानियों का तांता लगा रहता था. मगर इस साल कोरोना के चलते सैलानी यहां नहीं पहुंच पाये. चीन सीमा से लगे इलाकों में सुविधाओं के अभाव में भारी तादात में पलायन हुआ है, लेकिन इस गांव ने पर्यटन विकास का एक नया रास्ता सीमावर्ती क्षेत्रों को दिखाया है. जिस पर चलने से बॉर्डर के इलाके तो आबाद होंगे ही साथ ही द्वितीय रक्षा पंक्ति कहलाने वाले सीमांत के ग्रामीणों को अपने घर पर ही रोजगार भी मिलेगा.

पिथौरागढ़: सीमांत जनपद पिथौरागढ़ जिले का नाबी गांव स्वरोजगार के क्षेत्र में नजीर पेश का कर रहा है. मुख्यधारा से कोसों दूर बसे नाबी के ग्रामीणों ने पूरे गांव को ही होम स्टे में तब्दील कर दिया है. दरअसल, इस गांव के ग्रामीणों ने 2017 में होमस्टे के जरिए रोजगार शुरू किया था. देखते ही देखते पिछले 4 सालों में यहां के 35 से अधिक परिवार होमस्टे से जुड़ गए हैं.

स्वरोजगार के क्षेत्र में नजीर पेश कर रहा नाबी गांव.

पारंपरिक शैली में बने इन घरों को सैलानी काफी पसंद कर रहे हैं. होमस्टे में तब्दील होने से गांव में सैलानियों का तांता लगा रहता है. साथ ही ग्रामीणों को भी घर पर ही रोजगार मिला है. ब्यास घाटी की संस्कृति, वेशभूषा, खान-पान और रहन-सहन के तौर तरीकों को नजदीक से जानने के लिये पर्यटक यहां खिंचे चले आ रहे हैं. ये बात अलग है कि इस साल नाबी का पर्यटन कोरोबार भी कोरोना की भेंट चढ़ा हुआ है. हिमालय की चोटियों के बीच बसा नाबी गांव आज स्वरोजगार के क्षेत्र में दूसरों को रास्ता दिखा रहा है. केएमवीएन के सहयोग से ये गांव मॉडल होम स्टे विलेज के रूप में अपनी पहचान बना चुका है. 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे नाबी गांव तक पहुंचना भले ही कठिन हो, लेकिन यहां की वादियां सैलानियों को रास आ रही है.


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प्रकृति की गोद में बसे नाबी में होम स्टे इस कदर फल-फूल सकता है ये किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. सामूहिक सहभागिता के बूते ये गांव अब नई इबारत रच रहा है. बीते सालों तक गर्मियों के सीजन में यहां सैलानियों का तांता लगा रहता था. मगर इस साल कोरोना के चलते सैलानी यहां नहीं पहुंच पाये. चीन सीमा से लगे इलाकों में सुविधाओं के अभाव में भारी तादात में पलायन हुआ है, लेकिन इस गांव ने पर्यटन विकास का एक नया रास्ता सीमावर्ती क्षेत्रों को दिखाया है. जिस पर चलने से बॉर्डर के इलाके तो आबाद होंगे ही साथ ही द्वितीय रक्षा पंक्ति कहलाने वाले सीमांत के ग्रामीणों को अपने घर पर ही रोजगार भी मिलेगा.

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