पिथौरागढ़: भारत-चीन सीमा से सटे उत्तराखंड के कई गांव सात दशक बाद सड़क से जुड़ने जा रहे हैं. ऐसे में एक ओर जहां ये खबर सीमांत गांव में बसे हजारों लोगों के लिए उम्मीद की किरण लेकर आ रही है तो वहीं, दूसरी ओर इस सड़क के बनने से सैकड़ों परिवार का दाना-पानी भी छिनता नजर आ रहा है.
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दरअसल, बॉर्डर पर रहने वाले ये परिवार बेहद गरीब हैं, जो सड़क विहीन क्षेत्रों में लोगों का सामान व राशन घोड़े-बकरियों पर लादकर दुर्गम इलाकों तक पहुंचाते हैं. यही इनके रोजगार का एकमात्र जरिया है. लेकिन सीमांत क्षेत्रों तक सड़क बनने से अब ये परिवार दो जून की रोटी को मोहताज होते नजर आ रहे हैं.
बता दें कि पिथौरागढ़ जिले को चीन सीमा से जोड़ने वाली सड़क नजंग तक बनकर तैयार हो गई है. बॉर्डर के इस इलाके को मुख्यधारा से जोड़ने वाली ये सड़क भले ही हजारों की आबादी के लिए लाइफ लाइन साबित हो रही हो, मगर सीमांत क्षेत्रों में ढुलान के जरिये अपना गुजर बसर करने वाले परिवारों के लिए ये सड़क किसी अभिशाप से कम नहीं है.
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गाला गांव की स्थानीय महिला कलावती बताती हैं कि पहले जब ये सड़क तवाघाट तक हुआ करती थी, उस समय सामान लादकर सीमांत के गांवों तक पहुंचाने का उन्हें 4 से 5 हजार रुपए भाड़े के तौर पर मिलता था. जिससे वो अपने बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च चलाती थीं. लेकिन जब से सड़क नजंग तक पहुंची है तो उनको मात्र डेढ़ से दो हज़ार ही आमदनी हो पाती है. ऐसे में अब घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है.
कलावती अपना दर्द बयां करते हुए कहती हैं कि अब बच्चे बड़ी कक्षाओं में पहुंच गए हैं. महंगाई भी बढ़ गई है, लेकिन मजूदरी लगातार कम होती जा रही है. ऐसे में अगर सीमांत क्षेत्र तक सड़क पहुंच जाती है तो उनका दाना-पानी पूरी तरह उठ जाएगा, वो बेरोजगार हो जाएंगी. ऐसी ही व्यथा सीमांत क्षेत्र के सैकड़ों परिवार की है, जो ढुलान का काम करके ही अपना गुजर-बसर करते हैं.