पिथौरागढ़: गोरखाओं ने 1790 में कुमाऊं पर आक्रमण किया. गोरखा राजा रण बहादुर के समय हुए इस आक्रमण का नेतृत्व चौतरिया बहादुरशाह काजी, जगजीत पांडे, अमरसिंह थापा और सूरसिंह थापा के हाथों में था. चंद वंश के राजाओं को हराकर गोरखाओं ने कुमाऊं पर कब्जा कर लिया. इस विजय की खुशी में गोरखाओं ने 1791 में पिथौरागढ़ शहर के सबसे ऊंचे स्थान पर एक किला बनवाया. इस किले का नाम 'बाउलीकीगढ़' रखा गया.
गोरखाओं ने बनवाया था 'बाउलीकीगढ़' किला: गोरखा शासन की याद दिलाने वाले सोर घाटी के इस किले को निगरानी की दृष्टि से बनवाया गया था. इस किले की खास बात ये थी कि यहां से पिथौरागढ़ में मौजूद 9 अन्य किलों को आसानी से देखा जा सकता था. इस किले में गोरखा सैनिक और सामंत ठहरते थे. उनके लिए किले के भीतर सभी सुविधाएं मौजूद थीं.
किले के चारों तरफ हैं अभेद्य दीवारें: किले की लंबाई 88.5 मीटर और चौड़ाई 40 मीटर है. साढ़े 6 नाली (करीब 1200 स्क्वायर मीटर) जमीन में बने इस किले के चारों तरफ अभेद्य दीवार का निर्माण किया गया था. इस दीवार की ऊंचाई 8 फीट 9 इंच जबकि चौड़ाई 5 फीट 4 इंच है. दीवार में बंदूक चलाने के लिए 152 मचान बने हुए हैं. इन मचानों में सैनिकों के बैठकर और लेटकर हथियार चलाने के लिए विशेष स्थान भी बने हैं.
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किले में हैं गुप्त दरवाजे: पिथौरागढ़ के इस किले में एक तहखाना भी था. इसमें कीमती सामान और असलहे रखे जाते थे. किले में बंदी गृह और न्याय भवन भी निर्मित था. किले के अंदर गुप्त दरवाजे और रास्ते भी थे. इनका प्रयोग आपातकाल में किया जाता था.
किले का नाम ऐसे हुआ 'लंदन फोर्ट': वर्ष 1815-16 में गोरखाओं को ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों शिकस्त मिली. इस शिकस्त के फलस्वरूप सुगौली की संधि हुई. संधि के अनुसार कुमाऊं पर अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया. कुमाऊं पर अंग्रेजों का कब्जा होने के बाद अंग्रेजों ने 'बाउलीकीगढ़' किले का नाम बदलकर 'लंदन फोर्ट' रख दिया. तब से पिथौरागढ़ का ये किला 'लंदन फोर्ट' कहलाता है. लंबे समय तक इस किले में अंग्रेजी फौज रही थी.
135 साल तक संचालित हुई तहसील: 1881 से 2015 तक यहां पिथौरागढ़ तहसील संचालित होता थी. 18वीं सदी में बने इस ऐतिहासिक किले में 135 साल तक तहसील का संचालन हुआ. 2018 में पर्यटन विभाग ने किले का सौन्दर्यीकरण कर इसे पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किया. इसके बाद से ये किला सैलानियों की पहली पसंद बन गया. हालांकि कोरोना काल में लगी बंदिशों के कारण पर्यटकों की आवाजाही सीमित है. जल्द ही इस किले को म्यूजियम में तब्दील करने की योजना है.
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शिलापट में है प्रथम विश्व युद्ध का उल्लेख: ब्रिटिश शासन में किले के भीतर एक शिलापट लगाया गया था. इसमें प्रथम विश्व युद्ध में प्राण न्योछावर करने वाले सैनिकों का उल्लेख किया गया है. शिलापट में लिखा गया है कि परगना सोर एंड जोहार से विश्व युद्ध में 1005 सैनिक शामिल हुए थे. इनमें से 32 सैनिकों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये.
पर्यटन केन्द्र के रूप में किया गया है विकसित: पर्यटन विकास परिषद ने 4 करोड़ 65 लाख की लागत से किले को पर्यटन केन्द्र के रूप में तैयार कर लिया है. बेहद खूबसूरत लंदन फोर्ट के भीतर एक बेहतरीन रेस्टोरेंट, 8 कमरे हस्तशिल्प के लिए और एक शानदार म्यूजियम भवन तैयार किया गया है. इस किले के संचालन का जिम्मा कुमाऊं मंडल विकास निगम को दिया गया है.
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म्यूजियम में तब्दील होगा लंदन फोर्ट: 230 साल के इतिहास को खुद में समेटे इस ऐतिहासिक किले में जल्द ही म्यूजियम का संचालन किया जाएगा. इस संग्रहालय में जिले के इतिहास की जानकारी देने वाले ताम्रपत्र, प्राचीन सिक्के, हस्तलिखित पुस्तकें और शिलालेख रखे जायेंगे. इसके अलावा यहां कुमाऊं हस्तशिल्प और संस्कृति से जुड़ी धरोहरें भी देखने को मिलेंगी. पिथौरागढ़ में पर्यटन का मुख्य केंद्र होने के साथ ही ये किला इतिहासकारों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है.