पिथौरागढ़: 21वीं सदी में जहां इंसान चांद पर आशियाना बनाने के सपने देख रहा है. वहीं, उत्तराखंड के कई बॉर्डर इलाके ऐसे भी हैं, जहां तक पहुंच पाना किसी कड़ी चुनौती से कम नहीं है. यहां दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां जानलेवा ट्रॉलियां लाइफ लाइन बनी हुई है. इन ट्रॉलियों से आर-पार जाने में हर साल कई लोगों की जान चली जाती है. बावजूद इसके यहां आवागमन की एकमात्र उम्मीदें ट्रॉली पर ही टिकी हुई है. यहां इंसानी जिंदगी हो या जरूरी सामान इन ट्रॉलियों के जरिये ही ढोया जाता है.
हम बात कर रहे हैं, गोरीछाल क्षेत्र के मनकोट और घरयूडी गांव की. इन गांवों तक पहुंचने के लिए लोगों को ट्रॉली का सहारा लेने पड़ता है. 2013 में आई आपदा में गोरी नदी पर बना झूलापुल ध्वस्त हो गया था. जिसके बाद से यहां के लोग ट्रॉली के जरिये ही नदी पार करने को मजबूर हैं. यही नहीं गांव तक जरूरी राशन भी ट्रॉली के माध्यम से ही ले जाया जाता है.
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हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव मतदान के लिए पोलिंग पार्टियां भी, इन्हीं जानलेवा ट्रॉली से होते हुए मतदान स्थलों तक पहुंची थी. मनकोट गांव के 18 और घरूणी के 25 परिवारों के लिए ये जानलेवा ट्रॉली ही लाइफलाइन है. स्थानीय लोग कई बार शासन-प्रशासन से स्थायी पुल बनाने की मांग कर चुके हैं, लेकिन आज तक उन्हें कोई राहत नहीं मिली है.
एक तरफ जहां सरकार अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक विकास की गंगा बहाने का दावा करते नहीं थकती. वहीं, पिथौरागढ़ जिले में गोरी नदी घाटी पर बसे गांवों में जानलेवा ट्रॉली पर झूलती जिंदगियां सरकारों के दावों और वादों को आईना दिखाते नजर आ रहे हैं. सीमांत के इन गांवों के लिए पक्के पुल और सड़क बनने की उम्मीद अभी भी एक सपना ही बनी हुई है.