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आपदा के बाद सरकार ने नहीं ली सुध, अब श्रमदान से खुद ही पुलिया बना रहे ग्रामीण - मुनस्यारी चामी भैंस्कोट गांव

मुनस्यारी तहसील के अंतर्गत तल्ला जोहार के चामी भैस्कोट गांव में ग्रामीण खुद श्रमदान से पुल का निर्माण कर रहे हैं. जिससे वे रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए आवाजाही कर सके.

श्रमदान से पुल बनाते ग्रामीण.
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Published : Sep 26, 2019, 1:29 PM IST

बेरीनाग: शासन-प्रशासन जहां एक ओर आपदा प्रभावित क्षेत्रों में प्रत्येक व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने का दावा कर रहा है. तो वहीं सीमांत तहसील मुनस्यारी के अंतर्गत तल्ला जोहार के चामी भैस्कोट गांव की तस्वीर शासन-प्रशासन के दावों की पोल खोल रही है. जहां ग्रामीण आवाजाही के लिए श्रमदान से पुल निर्माण कर रहे हैं.

गौर हो कि 18 दिन पहले की आपदा ने तल्ला जोहार के चामी भैस्कोट में तबाही मचा दी थी. आपदा से गांव में तीन मकान ध्वस्त हो गए थे और कई जानवर मलबे में दब गए थे. जबकि एक गाय को मलबे से 12 दिन बाद जिंदा निकाला गया. इसके अलावा गांव में आपदा से 7 आरसीसी पुल बह गए थे. वहीं तीन सिंचाई गूल सहित सभी आंतरिक मार्ग ध्वस्त हो गए थे.

पढ़ें-अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान हंगामा, नगर निगम की टीम से भिड़े दुकानदार

गांव के एक तोक में रहने वाले एक परिवार ने गांव छोड़ दिया है. वहीं गांव के पीछे खड़ी पहाड़ी से लगातार भू-कटाव हो रहा है और हल्की बारिश होने पर ग्रामीण मंदिर की धर्मशाला और प्राथमिक विद्यालय में शरण लेने को मजबूर हैं. गांव के तीन ध्वस्त पेयजल लाइनों में मात्र एक पेयजल लाइन अभी तक अस्थाई रूप से चालू हो सकी है. 74 परिवारों वाले गांव में आपदा के 18 दिन बाद भी मात्र सात परिवारों को भी विभाग पेयजल उपलब्ध करा सका है. वहीं पुल बहने से ग्रामीण गांव में ही कैद हो गए हैं.

pithoragarh chami bhainskot
श्रमदान से पुल बनाते ग्रामीण.

जहां ग्रामीणों ने आवाजाही के लिए श्रमदान से पुल निर्माण शुरू कर दिया है. लोगों का कहना है कि अभी तक नदी का जलस्तर भी काफी अधिक था, अब जलस्तर स्थिर हो चुका है. जिसे देखते हुए ग्रामीणों ने श्रमदान से पुल बनाने का निर्णय लिया. इस निर्णय के तहत पुल निर्माण किया जा रहा है. वहीं अन्य नालों पर भी श्रमदान से पुलियां का निर्माण किया जाएगा.

बेरीनाग: शासन-प्रशासन जहां एक ओर आपदा प्रभावित क्षेत्रों में प्रत्येक व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने का दावा कर रहा है. तो वहीं सीमांत तहसील मुनस्यारी के अंतर्गत तल्ला जोहार के चामी भैस्कोट गांव की तस्वीर शासन-प्रशासन के दावों की पोल खोल रही है. जहां ग्रामीण आवाजाही के लिए श्रमदान से पुल निर्माण कर रहे हैं.

गौर हो कि 18 दिन पहले की आपदा ने तल्ला जोहार के चामी भैस्कोट में तबाही मचा दी थी. आपदा से गांव में तीन मकान ध्वस्त हो गए थे और कई जानवर मलबे में दब गए थे. जबकि एक गाय को मलबे से 12 दिन बाद जिंदा निकाला गया. इसके अलावा गांव में आपदा से 7 आरसीसी पुल बह गए थे. वहीं तीन सिंचाई गूल सहित सभी आंतरिक मार्ग ध्वस्त हो गए थे.

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गांव के एक तोक में रहने वाले एक परिवार ने गांव छोड़ दिया है. वहीं गांव के पीछे खड़ी पहाड़ी से लगातार भू-कटाव हो रहा है और हल्की बारिश होने पर ग्रामीण मंदिर की धर्मशाला और प्राथमिक विद्यालय में शरण लेने को मजबूर हैं. गांव के तीन ध्वस्त पेयजल लाइनों में मात्र एक पेयजल लाइन अभी तक अस्थाई रूप से चालू हो सकी है. 74 परिवारों वाले गांव में आपदा के 18 दिन बाद भी मात्र सात परिवारों को भी विभाग पेयजल उपलब्ध करा सका है. वहीं पुल बहने से ग्रामीण गांव में ही कैद हो गए हैं.

pithoragarh chami bhainskot
श्रमदान से पुल बनाते ग्रामीण.

जहां ग्रामीणों ने आवाजाही के लिए श्रमदान से पुल निर्माण शुरू कर दिया है. लोगों का कहना है कि अभी तक नदी का जलस्तर भी काफी अधिक था, अब जलस्तर स्थिर हो चुका है. जिसे देखते हुए ग्रामीणों ने श्रमदान से पुल बनाने का निर्णय लिया. इस निर्णय के तहत पुल निर्माण किया जा रहा है. वहीं अन्य नालों पर भी श्रमदान से पुलियां का निर्माण किया जाएगा.

Intro:ग्रामीण बना रहे पुलBody:बेरीनाग ।
शासन-प्रशासन मौन, आपदा पीड़ित श्रमदान से बना रहे हैं पुल
शासन-प्रशासन मौन, आपदा पीड़ित श्रमदान से बना रहे हैं पुल


बेरीनाग : नाचनी आपदा के अठारह दिन बीतने के बाद भी शासन-प्रशासन द्वारा सुध नहीं लिए जाने से निराश चामी भैंस्कोट के ग्रामीणों ने श्रमदान से पुल निर्माण प्रारंभ कर दिया है। गांव की सीमा से बाहर निकलने के लिए ग्रामीण पुल निर्माण कर रहे हैं।

अठारह दिन पूर्व की आपदा ने तल्ला जोहार के चामी भैंस्कोट में तबाही मचा दी थी। इस गांव में तीन मकान ध्वस्त हो गए थे। कई जानवर मलबे में दब गए थे। एक गाय तो मलबे से 12वें दिन जिंदा निकाली गई। इसके अलावा गांव के सात आरसीसी पुल बह गए थे तीन सिंचाई गूल सहित सभी आंतरिक मार्ग ध्वस्त हो गए थे। गांव के एक तोक में रहने वाले एक परिवार ने तो गांव त्याग दिया है दूसरे गांव में जाकर शरण ली है। गांव के पीछे खड़ी पहाड़ी से लगातार भू कटाव हो रहा है। हल्की बारिश होने पर ग्रामीण मंदिर की धर्मशाला और प्राथमिक विद्यालय में शरण लेते हैं। गांव के तीन ध्वस्त पेयजल लाइनों में मात्र एक पेयजल लाइन अभी तक अस्थाई रू प से चालू हो सकी है।

74 परिवारों वाले गांव में आपदा के 18 दिन बाद भी मात्र सात परिवारों को भी विभाग पेयजल उपलब्ध करा सका है। सबसे बड़ी समस्या पुल बहने से ग्रामीणों के गांव में भी फंस कर रहने की है। प्रशासन पंचायती चुनाव में व्यस्त हो चुका है। ऐसे में ग्रामीणों को अपने हाल में छोड़ दिया गया है। जिसे लेकर अब ग्रामीण श्रमदान कर पुल निर्माण कर रहे हैं। गांव के जीवन साही का कहना है कि अभी तक नदी का जलस्तर भी काफी अधिक था। अब जलस्तर स्थिर हो चुका है। जिसे देखते हुए ग्रामीणों ने श्रमदान से पुल बनाने का निर्णय लिया। इस निर्णय के तहत पुल निर्माण किया गया जा रहा है। अन्य नालों पर भी पुलियाओं का श्रमदान से निर्माण किया जाएगा।Conclusion:लापरवाही
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