पिथौरागढ़: रिंगाल पहाड़ में पर्यावरण बचाने के साथ रोजगार का साधन भी बन रहा है. उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में बहुतायत में पाया जाने वाला रिंगाल और बांस यहां के लोकजीवन का एक अहम हिस्सा है. इससे विभिन्न प्रकार की परम्परागत टोकरियां, डोके, सुपा, झाडू इत्यादि सदियों से बनाये जाते रहे हैं. मगर अब इसका प्रयोग सजावटी सामान बनाने में भी किया जा रहा है. पिछले 5 सालों से मुवानी में कार्य कर रही उत्तरापथ संस्था रिंगाल और बांस की मदद से कई बेहतरीन आइटम तैयार कर रही है. संस्था की इस पहल से जहां कई लोगों को रोजगार मिल रहा है, वहीं रिंगाल और बांस का उत्पादन करने वाले लोगों की भी अच्छी खासी आय हो रही है.
रिंगाल से बनीं टोकरी, हॉट केस, माला, फ्लावर पॉट, चिड़ियों के घोंसलें, टोपी और स्ट्रा लोगों को पहली ही नजर में लुभा रहे हैं. बेहद खूबसूरत नजर आने वाले ये आइटम मुवानी में उत्तरापथ संस्था से जुड़े लोगों ने तैयार किए हैं. जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण एवं विकास संस्थान के सहयोग के उत्तरापथ पिथौरागढ़ और बागेश्वर के 25 गांवों में ऐसे आइटम बना रहा है. जिससे लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.
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इको फ्रेंडली सामान: बांस और रिंगाल से निर्मित ये आइटम पूरी तरह पर्यावरण को बचाते हैं. इनको बनाने में रत्ती भर भी प्लास्टिक का यूज नही होता है. प्राकृतिक चीजों से तैयार होने के कारण इनको इस्तेमाल करने में शरीर को भी कोई नुकसान नही है. यही नही इनसे बने आइटम की डिमांड बढ़ रही है तो लोग अपने खेतों में बांस और रिंगाल पैदा भी कर रहे हैं.
सबसे बेहतरीन क्वालिटी का बांस-रिंगाल उत्तराखंड और हिमाचल में ही पैदा होता है. जिस कारण इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है. उत्तराखंड में मुख्य रूप से 5 तरह के बांस पाए जाते हैं. इनके पहाड़ी नाम हैं गोलू रिंगाल, देव रिंगाल, थाम, सरारू और भाटपुत्र इनमें गोलू और देव रिंगाल सबसे अधिक मिलता है.
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रिंगाल से फायदे: रिंगाल उत्तराखंड के जंगलों में पाया जाने वाला वृक्ष है, जो बांस की प्रजाति का होता है. इसलिए इसे बौना बांस भी कहा जाता है. जहां बांस की लम्बाई 25-30 मीटर होती है. वहीं, रिंगाल 5-8 मीटर लंबा होता है. रिंगाल एक हजार से सात हजार फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है. इसे पानी और नमी की आवश्यकता रहती है.