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पहाड़ों की सुंदरता में चार चांद लगा रहा बुरांश, चारों ओर बिखरी लालिमा

उत्तराखंड के जाने माने लोककवि गिरीश चन्द्र तिवारी 'गिर्दा' ने भी अपनी रचनाओं में बुरांश की सुंदरता का व्याख्यान किया है. बुरांश के पेड़ को पहाड़ के लोकजीवन में गहरी आत्मीयता मिली हुई है, इसलिए इसे राज्य वृक्ष का गौरव प्राप्त है.

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Published : Apr 28, 2019, 11:58 AM IST

Updated : Apr 28, 2019, 2:18 PM IST

बुरांश का फूल.

पिथौरागढ़: देवभूमि की सुंदरता में चार चांद लगाने वाला बुरांश पर्वतीय अंचलों में खिलने लगा है. जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों की नजारा बेहद खूबसूरत नजर आ रहा है. जो देवभूमि के लोकगीत, साहित्य, संस्कृति और सौंदर्य को खुद में समेटे हुए है. औषधीय गुणों से भरपूर बुरांश के फूल को उत्तराखंडी संस्कृति में भी अहम स्थान रखता है. जिसका वर्णन प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविताओं में भी किया है. उन्होंने कविताओं में लिखा है कि बुरांश की जैसे कोई दूसरा सुंदर वृक्ष नहीं है.

पहाड़ों में खिलने लगा बुरांश.

उत्तराखंड के जाने माने लोककवि गिरीश चन्द्र तिवारी 'गिर्दा' ने भी अपनी रचनाओं में बुरांश की सुंदरता का व्याख्यान किया है. बुरांश के पेड़ को पहाड़ के लोकजीवन में गहरी आत्मीयता मिली हुई है, इसलिए इसे राज्य वृक्ष का गौरव प्राप्त है. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने संस्मरणों में बुरांश का सुंदर चित्रण किया है. गढ़वाली और कुमाऊंनी लोकगीतों और लोककथाओं में भी बुरांश के फूल के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है.

हिमालयी क्षेत्र में 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला बुरांश लाल, गुलाबी और सफेद तीन रंगों का होता है. हिमालय की तलहटी में जहां लाल और गुलाबी रंग के बुरांश अपनी सुंदरता बिखेरते हैं तो उच्च हिमालयी इलाकों में सफेद रंग का बुरांश बहुतायत में मिलता है. कहा जाता है बसंत ऋतु में यह फूल सभी फूलों से पहले खिल जाता है. मानो कहीं दूसरा फूल इससे पहले ना खिल जाए. बता दें कि उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांश नेपाल का राष्ट्रीय फूल है. हिमांचल और नागालैंड राज्यों में इसे राज्य पुष्प का दर्जा मिला हुआ है.

पिथौरागढ़: देवभूमि की सुंदरता में चार चांद लगाने वाला बुरांश पर्वतीय अंचलों में खिलने लगा है. जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों की नजारा बेहद खूबसूरत नजर आ रहा है. जो देवभूमि के लोकगीत, साहित्य, संस्कृति और सौंदर्य को खुद में समेटे हुए है. औषधीय गुणों से भरपूर बुरांश के फूल को उत्तराखंडी संस्कृति में भी अहम स्थान रखता है. जिसका वर्णन प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविताओं में भी किया है. उन्होंने कविताओं में लिखा है कि बुरांश की जैसे कोई दूसरा सुंदर वृक्ष नहीं है.

पहाड़ों में खिलने लगा बुरांश.

उत्तराखंड के जाने माने लोककवि गिरीश चन्द्र तिवारी 'गिर्दा' ने भी अपनी रचनाओं में बुरांश की सुंदरता का व्याख्यान किया है. बुरांश के पेड़ को पहाड़ के लोकजीवन में गहरी आत्मीयता मिली हुई है, इसलिए इसे राज्य वृक्ष का गौरव प्राप्त है. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने संस्मरणों में बुरांश का सुंदर चित्रण किया है. गढ़वाली और कुमाऊंनी लोकगीतों और लोककथाओं में भी बुरांश के फूल के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है.

हिमालयी क्षेत्र में 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला बुरांश लाल, गुलाबी और सफेद तीन रंगों का होता है. हिमालय की तलहटी में जहां लाल और गुलाबी रंग के बुरांश अपनी सुंदरता बिखेरते हैं तो उच्च हिमालयी इलाकों में सफेद रंग का बुरांश बहुतायत में मिलता है. कहा जाता है बसंत ऋतु में यह फूल सभी फूलों से पहले खिल जाता है. मानो कहीं दूसरा फूल इससे पहले ना खिल जाए. बता दें कि उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांश नेपाल का राष्ट्रीय फूल है. हिमांचल और नागालैंड राज्यों में इसे राज्य पुष्प का दर्जा मिला हुआ है.

Intro:पिथौरागढ़: उत्तराखंड के लोकगीत, साहित्य, संस्कृति और सौंदर्य को खुद में समेटा राज्य वृक्ष बुरांश हिमालयी इलाकों में अपनी सुंदर छटा बिखेरने लगा है। पहाड़ के साहित्यकारों से लेकर संगीतकारों ने बुरांश के सौंदर्य की महिमा अपनी रचनाओं में की है। ओषधीय गुणों से भरपूर बुरांश के फूल को उत्तराखंडी संस्कृति में एक अहम स्थान मिला है। पेश है एक खास रिपोर्ट।

सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां,
फूलन छै के बुरुंश! जंगल जस जलि जां।
कविवर सुमित्रा नंदन पंत अपनी एकमात्र कुमाऊंनी कविता में बुरांश के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते है बुरांश की बराबरी करने लायक जंगल मे कोई दूसरा वृक्ष नही है। वहीं उत्तराखंड के जाने माने लोककवि गिरीश चन्द्र तिवारी 'गिर्दा' ने भी अपनी रचनाओं में बुरांश की महिमा का बखान किया है। बुरांश के पेड़ को पहाड़ के लोकजीवन में गहरी आत्मीयता मिली हुई है इसलिए इसे राज्य वृक्ष का गौरव प्राप्त हुआ है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने संस्मरणों में बुरांश का सुंदर चित्रण किया है। गढ़वाली और कुमाऊँनी लोकगीतों और लोककथाओं में भी बुरांश के फूल के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है। अगर कहा जाए कि बुरांश का वृक्ष प्रकृति के अद्भुत श्रृंगार और उत्तराखंड की जवानी का प्रतीक है तो ये अतिशयोक्ति नही होगा।
Byte1: डॉ0 मनीषा पांडे, हिंदी प्रवक्ता

हिमालयी क्षेत्र में 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला बुरांश लाल, गुलाबी और सफेद तीन रंगों को खुद में समेटा हुआ है। हिमालय की तलहटी में जहां लाल और गुलाबी रंग के बुरांश अपनी सुंदरता बिखेरते है तो उच्च हिमालयी इलाकों में सफेद रंग का बुरांश बहुतायत में मिलता है। बुरांश का फूल खिलने को लेकर काफी उतावला रहता है। मानो कोई दूसरा फूल इससे पहले ना खिल जाए। एक लोकगीत के अनुसार इसे शिव के सिर पर सबसे पहले चढ़ाये जाने की आकांशा रहती है।

Byte: डॉ0 कमलेश भाकुनी, प्रवक्ता, वनस्पति विज्ञान

उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांश नेपाल का राष्ट्रीय फूल है। हिमांचल और नागालैंड राज्यों में इसे राज्य पुष्प का दर्जा मिला हुआ है। उत्तराखंड के पहाड़ी जीवन में बुरांश कई पहलुओं का पर्याय बना हुआ है।

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Body:पिथौरागढ़: उत्तराखंड के लोकगीत, साहित्य, संस्कृति और सौंदर्य को खुद में समेटा राज्य वृक्ष बुरांश हिमालयी इलाकों में अपनी सुंदर छटा बिखेरने लगा है। पहाड़ के साहित्यकारों से लेकर संगीतकारों ने बुरांश के सौंदर्य की महिमा अपनी रचनाओं में की है। ओषधीय गुणों से भरपूर बुरांश के फूल को उत्तराखंडी संस्कृति में एक अहम स्थान मिला है। पेश है एक खास रिपोर्ट।

सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां,
फूलन छै के बुरुंश! जंगल जस जलि जां।
कविवर सुमित्रा नंदन पंत अपनी एकमात्र कुमाऊंनी कविता में बुरांश के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते है बुरांश की बराबरी करने लायक जंगल मे कोई दूसरा वृक्ष नही है। वहीं उत्तराखंड के जाने माने लोककवि गिरीश चन्द्र तिवारी 'गिर्दा' ने भी अपनी रचनाओं में बुरांश की महिमा का बखान किया है। बुरांश के पेड़ को पहाड़ के लोकजीवन में गहरी आत्मीयता मिली हुई है इसलिए इसे राज्य वृक्ष का गौरव प्राप्त हुआ है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने संस्मरणों में बुरांश का सुंदर चित्रण किया है। गढ़वाली और कुमाऊँनी लोकगीतों और लोककथाओं में भी बुरांश के फूल के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है। अगर कहा जाए कि बुरांश का वृक्ष प्रकृति के अद्भुत श्रृंगार और उत्तराखंड की जवानी का प्रतीक है तो ये अतिशयोक्ति नही होगा।
Byte1: डॉ0 मनीषा पांडे, हिंदी प्रवक्ता

हिमालयी क्षेत्र में 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला बुरांश लाल, गुलाबी और सफेद तीन रंगों को खुद में समेटा हुआ है। हिमालय की तलहटी में जहां लाल और गुलाबी रंग के बुरांश अपनी सुंदरता बिखेरते है तो उच्च हिमालयी इलाकों में सफेद रंग का बुरांश बहुतायत में मिलता है। बुरांश का फूल खिलने को लेकर काफी उतावला रहता है। मानो कोई दूसरा फूल इससे पहले ना खिल जाए। एक लोकगीत के अनुसार इसे शिव के सिर पर सबसे पहले चढ़ाये जाने की आकांशा रहती है।

Byte: डॉ0 कमलेश भाकुनी, प्रवक्ता, वनस्पति विज्ञान

उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांश नेपाल का राष्ट्रीय फूल है। हिमांचल और नागालैंड राज्यों में इसे राज्य पुष्प का दर्जा मिला हुआ है। उत्तराखंड के पहाड़ी जीवन में बुरांश कई पहलुओं का पर्याय बना हुआ है।

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Last Updated : Apr 28, 2019, 2:18 PM IST
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