पिथौरागढ़: देवभूमि की सुंदरता में चार चांद लगाने वाला बुरांश पर्वतीय अंचलों में खिलने लगा है. जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों की नजारा बेहद खूबसूरत नजर आ रहा है. जो देवभूमि के लोकगीत, साहित्य, संस्कृति और सौंदर्य को खुद में समेटे हुए है. औषधीय गुणों से भरपूर बुरांश के फूल को उत्तराखंडी संस्कृति में भी अहम स्थान रखता है. जिसका वर्णन प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविताओं में भी किया है. उन्होंने कविताओं में लिखा है कि बुरांश की जैसे कोई दूसरा सुंदर वृक्ष नहीं है.
उत्तराखंड के जाने माने लोककवि गिरीश चन्द्र तिवारी 'गिर्दा' ने भी अपनी रचनाओं में बुरांश की सुंदरता का व्याख्यान किया है. बुरांश के पेड़ को पहाड़ के लोकजीवन में गहरी आत्मीयता मिली हुई है, इसलिए इसे राज्य वृक्ष का गौरव प्राप्त है. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने संस्मरणों में बुरांश का सुंदर चित्रण किया है. गढ़वाली और कुमाऊंनी लोकगीतों और लोककथाओं में भी बुरांश के फूल के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है.
हिमालयी क्षेत्र में 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला बुरांश लाल, गुलाबी और सफेद तीन रंगों का होता है. हिमालय की तलहटी में जहां लाल और गुलाबी रंग के बुरांश अपनी सुंदरता बिखेरते हैं तो उच्च हिमालयी इलाकों में सफेद रंग का बुरांश बहुतायत में मिलता है. कहा जाता है बसंत ऋतु में यह फूल सभी फूलों से पहले खिल जाता है. मानो कहीं दूसरा फूल इससे पहले ना खिल जाए. बता दें कि उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांश नेपाल का राष्ट्रीय फूल है. हिमांचल और नागालैंड राज्यों में इसे राज्य पुष्प का दर्जा मिला हुआ है.