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पिथौरागढ़: BRO ने 9 दिन के अंदर तैयार किया 180 फीट लंबा नया बेली ब्रिज

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Published : Aug 17, 2020, 5:07 PM IST

Updated : Aug 17, 2020, 5:32 PM IST

बीते 27 जुलाई को जौलजीबी-मुनस्यारी मोटरमार्ग पर दुबड़ीगाड़ में बना बेली ब्रिज आपदा की भेंट चढ़ गया था, जिसे बीआरओ ने 9 दिन के भीतर फिर से तैयार कर लिया है. यह ब्रिज 180 फीट लंबा और 18 टन वजनी है.

pithoragarh bailey bridge
बैली ब्रिज

पिथौरागढ़: बीते 27 जुलाई की रात आई भीषण आपदा में बरम के पास दुबड़ीगाड़ पर बना बीआरओ का मोटरपुल बह गया था. इस स्थान पर बीआरओ ने 180 फीट लंबा बेली ब्रिज 9 दिन के भीतर तैयार कर लिया है. पुल से वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई है. पुल तैयार होने से बंगापानी और मदकोट क्षेत्र की 20 हजार से ज्यादा की आबादी ने राहत की सांस ली है.

आपदा के चलते जौलजीबी-मुनस्यारी सड़क पर दुबड़ीगाड़ पर बहे पुल के स्थान पर बीआरओ ने नया पुल तैयार कर लिया है. पुल को बनाने का काम 7 अगस्त से शुरू हुआ था. बीआरओ ने युद्ध स्तर पर काम करते हुए 9 दिन के भीतर 180 फीट लंबा और 18 टन वजनी बेली ब्रिज तैयार किया है. बीआरओ के कमांडर एस बनर्जी ने बताया कि पुल तैयार होने के साथ ही जौलजीबी से लुमती गाड़ तक पूरी तरह सड़क खुली है. जबकि, मदकोट से मोरी तक मार्ग खोला जा चुका है. बीआरओ कमांडर ने बताया कि लुमती गाड़ में जेसीबी मशीन से कार्य चल रहा है, दो दिन में सड़क खोल दी जाएगी.

बीआरओ ने तैयार किया 180 फीट बैली ब्रिज.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड के IAS आशीष चौहान के नाम से जानी जाएगी स्पेन की एक पर्वत चोटी

बता दें कि, बीते 27 जुलाई की रात बंगापानी क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही मची थी. जिसमें जौलजीबी-मुनस्यारी मोटरमार्ग कई स्थानों पर जमींदोज होने के साथ ही दुबड़ीगाड़ पर बना पुल ध्वस्त हो गया था. जिसके बाद लुमती समेत अन्य गांवों में फंसे ग्रामीणों को कुमाऊं स्कॉट के जवानों ने रेस्क्यू किया था. पुल बहने से बंगापानी और मदकोट क्षेत्र का बाकी दुनिया से संपर्क कट गया था. जिस कारण क्षेत्र में जरूरी चीजों की किल्लत बनी हुई थी. पुल तैयार होने से 20 हजार से ज्यादा की आबादी को राहत मिली है.

क्या होता है बेली ब्रिज?

बेली ब्रिज एक प्रकार का पोर्टेबल, प्री-फैब्रिकेटेड, ट्रस ब्रिज है. 1940-1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे सेना के इस्तेमाल के लिये अंग्रेजों ने विकसित किया था. इस पुल की सबसे खास बात ये होती है कि इसे बनाने के लिए कोई विशेष उपकरण या भारी सामान की जरूरत नहीं है. ब्रिटिश सेना में सिविल इंजिनियर डोनाल्ड बेली ने 1941 में पहली बार इस तरह के पुल का माडल बनाकर सेना के अफसरों के सामने पेश किया था. डोनाल्ड बेली के नाम पर ही इस पुल का नाम बेली ब्रिज पड़ा.

दूसरे विश्व युद्घ के समय ब्रिटिश सेना इसका उपयोग नदी-नाले पार करने के लिए करती थी. पूरे पुल को एक ट्रक में लादकर सेना अपने साथ ले जाया करती थी. ये पुल इतना मजबूत होता था कि उसके ऊपर से युद्घ के टैंकर पार हो जाते थे. बेली ब्रिज का इस्तेमाल सिविल इंजीनियरिंग निर्माण परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर किया जाता है.

पिथौरागढ़: बीते 27 जुलाई की रात आई भीषण आपदा में बरम के पास दुबड़ीगाड़ पर बना बीआरओ का मोटरपुल बह गया था. इस स्थान पर बीआरओ ने 180 फीट लंबा बेली ब्रिज 9 दिन के भीतर तैयार कर लिया है. पुल से वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई है. पुल तैयार होने से बंगापानी और मदकोट क्षेत्र की 20 हजार से ज्यादा की आबादी ने राहत की सांस ली है.

आपदा के चलते जौलजीबी-मुनस्यारी सड़क पर दुबड़ीगाड़ पर बहे पुल के स्थान पर बीआरओ ने नया पुल तैयार कर लिया है. पुल को बनाने का काम 7 अगस्त से शुरू हुआ था. बीआरओ ने युद्ध स्तर पर काम करते हुए 9 दिन के भीतर 180 फीट लंबा और 18 टन वजनी बेली ब्रिज तैयार किया है. बीआरओ के कमांडर एस बनर्जी ने बताया कि पुल तैयार होने के साथ ही जौलजीबी से लुमती गाड़ तक पूरी तरह सड़क खुली है. जबकि, मदकोट से मोरी तक मार्ग खोला जा चुका है. बीआरओ कमांडर ने बताया कि लुमती गाड़ में जेसीबी मशीन से कार्य चल रहा है, दो दिन में सड़क खोल दी जाएगी.

बीआरओ ने तैयार किया 180 फीट बैली ब्रिज.

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बता दें कि, बीते 27 जुलाई की रात बंगापानी क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही मची थी. जिसमें जौलजीबी-मुनस्यारी मोटरमार्ग कई स्थानों पर जमींदोज होने के साथ ही दुबड़ीगाड़ पर बना पुल ध्वस्त हो गया था. जिसके बाद लुमती समेत अन्य गांवों में फंसे ग्रामीणों को कुमाऊं स्कॉट के जवानों ने रेस्क्यू किया था. पुल बहने से बंगापानी और मदकोट क्षेत्र का बाकी दुनिया से संपर्क कट गया था. जिस कारण क्षेत्र में जरूरी चीजों की किल्लत बनी हुई थी. पुल तैयार होने से 20 हजार से ज्यादा की आबादी को राहत मिली है.

क्या होता है बेली ब्रिज?

बेली ब्रिज एक प्रकार का पोर्टेबल, प्री-फैब्रिकेटेड, ट्रस ब्रिज है. 1940-1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे सेना के इस्तेमाल के लिये अंग्रेजों ने विकसित किया था. इस पुल की सबसे खास बात ये होती है कि इसे बनाने के लिए कोई विशेष उपकरण या भारी सामान की जरूरत नहीं है. ब्रिटिश सेना में सिविल इंजिनियर डोनाल्ड बेली ने 1941 में पहली बार इस तरह के पुल का माडल बनाकर सेना के अफसरों के सामने पेश किया था. डोनाल्ड बेली के नाम पर ही इस पुल का नाम बेली ब्रिज पड़ा.

दूसरे विश्व युद्घ के समय ब्रिटिश सेना इसका उपयोग नदी-नाले पार करने के लिए करती थी. पूरे पुल को एक ट्रक में लादकर सेना अपने साथ ले जाया करती थी. ये पुल इतना मजबूत होता था कि उसके ऊपर से युद्घ के टैंकर पार हो जाते थे. बेली ब्रिज का इस्तेमाल सिविल इंजीनियरिंग निर्माण परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर किया जाता है.

Last Updated : Aug 17, 2020, 5:32 PM IST
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