पिथौरागढ़: चीन और नेपाल की सीमा से सटे पिथौरागढ़ जिले ने अपनी 63वां स्थापना दिवस मनाया. 24 फरवरी 1960 को कुमाऊ मंडल में तीसरे जिले के रूप में पिथौरागढ़ जिला अस्तित्व में आया था. गठन के 62 वर्ष पूरे कर चुके पिथौरागढ़ जिले के खाते में जहां कई नई उपलब्धियां जुड़ीं तो कई ऐसे अभिशाप भी हैं जो आज भी जिले से जुड़े हुए हैं.
1960 के दशक में जब चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत तिब्बत में कब्जा करने लगा तो तिब्बती धर्मगुरू दलाईलामा ने तिब्बत छोड़कर भारत में शरण ली, जिस कारण भारत और चीन के रिश्तों में खटास अपने चरम पर पहुंच गई. दोनों मुल्कों के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए 24 फरवरी 1960 को अविभाजित उत्तर प्रदेश में तीन नये सीमांत जनपदों को मिलाकर उत्तराखंड कमिश्नरी का गठन किया गया. पौड़ी गढ़वाल में जहां चमोली तहसील को अलग जिले का दर्जा मिला, वहीं टिहरी से उत्तरकाशी और अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ जनपद अस्तित्व में आया. उत्तराखंड कमिश्नरी के गठन का मुख्य उद्देश्य तिब्बत से लगे सीमांत क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ना था ताकि चीन से लगी भारतीय सीमाओं को सुरक्षित किया जा सके.
उत्तराखंड कमिश्नरी के गठन के शुरूआती दौर में तीनों सीमांत जिलों को सामरिक रूप से सशक्त बनाने और अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए विशेष आर्थिक पैकेज दिया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे चीनी आक्रमण का खतरा टलता गया इन सीमांत जनपदों की भी उपेक्षा होती चली गई.
अगर बात करें पिथौरागढ़ जिले की तो पिछले 62 सालों में यहां विकास कछुआ चाल में चल रहा है. कई ग्रामीण इलाके तो आज भी विकास से पूरी तरह अछूते हैं. पलायन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक सीमांत जिले के 59 गांव मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पूरी तरह मानवविहीन हो गए हैं. मूलभूत सुविधाओं और रोजगार के अभाव में लगातार गांव से लोग शहरों का रूख कर रहे हैं. वहीं शहरी इलाकों में बढ़ता जनदबाव और अनियोजित विकास गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है.
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वहीं, चीन बॉर्डर को जोड़ने वाले मिलम मार्ग में सड़क कटिंग का कार्य लंबे समय से चल रहा है. वहीं दारमा और व्यास घाटी को जोड़ने वाली सड़क के हाल बरसात में बद से बदतर हो जाते हैं. जिस कारण भारतीय सेना को बार्डर तक पहुंचने के लिए दुर्गम पहाड़ी रास्तों और विषम भौगोलिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. वहीं चाईना, तिब्बत बार्डर तक सड़कों का जाल बिछाने के साथ ही रेल यातायात और हवाई अड्डे भी तैनात कर चुका है. बुनियादी सुविधाओं के अभाव में चीन सीमा पर द्वितीय रक्षापंक्ति का काम करने वाले सीमांत वासियों का पलायन भी सामरिक नजरिये से चिंता का विषय बना हुआ है.
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पिथौरागढ़ जिला अपनी स्थापना के 62 साल बाद भी विकास की वो रफ्तार नहीं पकड़ सका, अगर सरकार वाकई में सीमाओं की सुरक्षा के प्रति गंभीर है तो सामरिक नजरिये से महत्वपूर्ण टनकपुर-जौलजीबी रेल लाईन के निर्माण के साथ ही तिब्बत से लगे सीमांत इलाकों में युद्ध स्तर पर सड़कों का जाल बिछाने के प्रयास करने होंगे. यही नहीं दो-दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरे सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में पलायन को रोकने के लिए विकास के नये आयाम भी स्थापित करने होंगे.