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लॉकडाउन ने बदला प्रकृति का रूप, निर्मल हुआ देवप्रयाग का पानी

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Published : May 8, 2020, 7:09 PM IST

Updated : May 9, 2020, 12:31 PM IST

लॉकडाउन 3.0 देशभर में 17 मई तक लागू है. इस बीच देवप्रयाग में प्रकृति का एक अलग ही रंग देखने को मिला. लॉकडाउन के दौरान वायु प्रदूषण में बेतहाशा कमी आई है. देवभूमि के लोग स्वच्छ हवा में सांस ले रहे हैं. इतना ही नहीं जिन नदियों की सफाई के लिए सरकारें सैकड़ों करोड़ खर्च कर रही थीं. अब वो अपने आप स्वच्छ हो गई हैं.

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लॉकडाउन में बदला प्रकृति का रंग

श्रीनगर: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते उत्तराखंड में बीती अप्रैल से लॉकडाउन किया गया है. ऐसे में लॉकडाउन के चलते सभी लोग अपने घरों में कैद है. वहीं, इन दिनों प्रदूषण के स्तर में काफी कमी देखने को मिल रही है. जिसके चलते वादियां साफ़ नजर आने लगी है. देवप्रयाग में भी कुछ अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है. आम दिनों में प्रदूषण के चलते संगम पर बदरंग हुई अलकनंदा, भागीरथी और अदृश्य सरस्वती भी अब साफ लगने लगी है. इन नदियों का पानी भी साफ होकर नीला हो चुका है. आलम ये है कि आप नदी के पानी में बड़ी संख्या में मछलियों को साफ देख सकते हैं.

लॉकडाउन ने बदला प्रकृति का रूप

गौरतलब है कि देवनगरी देवप्रयाग देश की प्राचीनतम नगरी है, जो पूरी तरह चट्टानों पर बनी हुई है. इस शहर के नीचे से अलकनंदा, भागीरथी का अदृश्य सरस्वती नदी का संगम है. यहां श्रद्दालु अपने पितरों को मोक्ष दिलवाने के लिए पिंडदान करने आते है. लेकिन लॉकडाउन के पहले आधुनिक युग ने नगर में बहने वाली नदियों को कुछ हद तक प्रदूषित कर दिया था. लेकिन लॉकडाउन ने एक बार फिर देवप्रयाग संगम स्थल का नज़ारा बदल दिया है. इस समय संगम में बहने वाली अलकनंदा और भागीरथी का पानी नीला दिखाई दे रहा है. जबकि उसमे विचरण करने वाली रंग बिरंगी मछलियां साफ दिखाई पड़ रही है.

ये भी पढ़ें: केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय: आंदोलन पर डटे छात्र, मीडिया के प्रवेश पर लगाया बैन

ये है धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मुनिदेव ऋषि के 11 हजार सालों तक तप करने के बाद भगवान विष्णु यहां प्रकट हुए थे. उन्होंने देवशर्मा को त्रेतायुग युग में देवप्रयाग लौटने का वचन दिया था. इस दौरान भगवान विष्णु के रामअवतार ने अपना वचन पूरा किया. भगवान राम ने मुनिदेव ऋषि के नाम पर इस स्थान को देवप्रयाग नाम दिया. देवप्रयाग से भगवान विष्णु के श्रीराम समेत पांच अवतारों का संबंध माना जाता है. इसी स्थान पर वह वराह के रूप में प्रकट हुए. वराह शिला और फिर वामन रूप में प्रकट हुए. उसे वामन गुफा भी कहते है.

ये भी पढ़ें: व्यापार मंडल के सदस्यों ने लॉकडाउन के नियमों के तहत बाजार खोलने का लिया फैसला

देवप्रयाग के निकट नृसिहहाचल पर्वत शिखर पर भगवान विष्णु नृसिंह रुप में है. इस पर्वत के आधार स्थल पर परशुराम की तस्पस्थली थी. जिन्होंने अपने पितृ हंता राजा सहस्त्रबाहु को मारने से पूर्व यहां तप किया था. इसके निकट ही शिव तीर्थ में श्रीराम की बहन सांता ने सृंगी मुनि से विवाह करने के लिए यहां ही तपस्या की थी. सृंगी मुनि के यज्ञ के बाद ही राजा दशरथ के यहां श्रीराम पुत्र रूप में अवतरित हुए थे.

श्रीनगर: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते उत्तराखंड में बीती अप्रैल से लॉकडाउन किया गया है. ऐसे में लॉकडाउन के चलते सभी लोग अपने घरों में कैद है. वहीं, इन दिनों प्रदूषण के स्तर में काफी कमी देखने को मिल रही है. जिसके चलते वादियां साफ़ नजर आने लगी है. देवप्रयाग में भी कुछ अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है. आम दिनों में प्रदूषण के चलते संगम पर बदरंग हुई अलकनंदा, भागीरथी और अदृश्य सरस्वती भी अब साफ लगने लगी है. इन नदियों का पानी भी साफ होकर नीला हो चुका है. आलम ये है कि आप नदी के पानी में बड़ी संख्या में मछलियों को साफ देख सकते हैं.

लॉकडाउन ने बदला प्रकृति का रूप

गौरतलब है कि देवनगरी देवप्रयाग देश की प्राचीनतम नगरी है, जो पूरी तरह चट्टानों पर बनी हुई है. इस शहर के नीचे से अलकनंदा, भागीरथी का अदृश्य सरस्वती नदी का संगम है. यहां श्रद्दालु अपने पितरों को मोक्ष दिलवाने के लिए पिंडदान करने आते है. लेकिन लॉकडाउन के पहले आधुनिक युग ने नगर में बहने वाली नदियों को कुछ हद तक प्रदूषित कर दिया था. लेकिन लॉकडाउन ने एक बार फिर देवप्रयाग संगम स्थल का नज़ारा बदल दिया है. इस समय संगम में बहने वाली अलकनंदा और भागीरथी का पानी नीला दिखाई दे रहा है. जबकि उसमे विचरण करने वाली रंग बिरंगी मछलियां साफ दिखाई पड़ रही है.

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ये है धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मुनिदेव ऋषि के 11 हजार सालों तक तप करने के बाद भगवान विष्णु यहां प्रकट हुए थे. उन्होंने देवशर्मा को त्रेतायुग युग में देवप्रयाग लौटने का वचन दिया था. इस दौरान भगवान विष्णु के रामअवतार ने अपना वचन पूरा किया. भगवान राम ने मुनिदेव ऋषि के नाम पर इस स्थान को देवप्रयाग नाम दिया. देवप्रयाग से भगवान विष्णु के श्रीराम समेत पांच अवतारों का संबंध माना जाता है. इसी स्थान पर वह वराह के रूप में प्रकट हुए. वराह शिला और फिर वामन रूप में प्रकट हुए. उसे वामन गुफा भी कहते है.

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देवप्रयाग के निकट नृसिहहाचल पर्वत शिखर पर भगवान विष्णु नृसिंह रुप में है. इस पर्वत के आधार स्थल पर परशुराम की तस्पस्थली थी. जिन्होंने अपने पितृ हंता राजा सहस्त्रबाहु को मारने से पूर्व यहां तप किया था. इसके निकट ही शिव तीर्थ में श्रीराम की बहन सांता ने सृंगी मुनि से विवाह करने के लिए यहां ही तपस्या की थी. सृंगी मुनि के यज्ञ के बाद ही राजा दशरथ के यहां श्रीराम पुत्र रूप में अवतरित हुए थे.

Last Updated : May 9, 2020, 12:31 PM IST
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