श्रीनगर: उत्तराखंड जहां पर्यटन की दृष्टि से पूरे देश विदेश में अपनी अलग पहचान रखता है. तो वहीं, प्रदेश की नदियां पर्वतीय आंचल सभी अपनी तरफ लोगों को आकर्षित करती है. यहां की संस्कृति लोक गीत नृत्य सभी को अपनी तरफ खिंचती है. साल के 12 महीनों को हर मौसम में अलग-अलग गीत और नृत्य किए जाते हैं. खेत खलिहान से लेकर विरह और त्योहारों के अपने अलग नृत्य हैं.
प्रदेश के लोक साहित्य में अलग-अलग विधाएं है. महिलाएं खेती या पशुओं के लिए चारा काटने तक जाती है तो महिलाएं एक साथ मिलकर गीतों को गाती है. इन गीतों में झोड़ा, चाचरी, धपेली, छोलिया, आदि गीत होते है. जिनमें नृत्या किया जाता है, अमूमन विवाह, मेलों, उत्सवों में धपेली गायी जाती हैं.
वही, घर परिवारों में होने वाले शुभ कार्यों में मंगल गायन होता है. जिसमे गांव की बुजुर्ग महिलाएं देवी देवताओं का आह्वान करती है, और उन्हें आशीर्वाद देने को इन गीतों में गाया जाता है.
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गणेश कुकशाल गणि बताते है कि ये गीत संगीत पीढ़ी दर पीढ़ी सुने और सुनाए जा रहे है. जिन्हें अब सरकार मंच मेलों के मंच दे रही है. कुकशाल ने बताया कि इन गीतों का उत्तराखंड की संस्कृति से विशेष लगाव है. अब ये गीत संगीत दूरस्थ गांवों तक ही सिमट गया है. जिसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना आवश्यक है.
वहीं. लोक कलाकारों का कहना है कि अब लोगों ने इन गीतों को गाना समाप्त कर दिया है. लेकिन सरकार द्वारा दिया जा रहा मंच अब धीरे-धीरे युवाओं इस ओर आकर्षित कर रहा है.