ETV Bharat / state

टिहरी: जर्जर हालत में स्वामी राम तीर्थ भवन, लोग बोले- कब सुधरेगी दशा

टिहरी झील किनारे कोटी कालोनी में बना संत स्वामी राम तीर्थ का भवन (गोलकोठी) इन दिनों देखरेख के अभाव में जर्जर होता जा रहा है.

जर्जर हालत में स्वामी राम तीर्थ भवन.
author img

By

Published : Nov 25, 2019, 10:21 AM IST

टिहरी: नगर के टिहरी झील किनारे कोटी कालोनी में बना संत स्वामी राम तीर्थ का भवन (गोलकोठी) इन दिनों देखरेख के अभाव में बदहाली के आंसू रो रहा है. जिसको इसके देखरेख का जिम्मा सौंपा हुआ है वे कुम्भकरणीय नींद में हैं. भवन में पड़ी दरारें इसकी तस्दीक कर रही हैं, जिनकी आज तक मरम्मत करने की जहमत नहीं उठाई गई है, जबकि इस भवन की देखरेख की जिम्मेदारी टिहरी झील विकास प्राधिकरण के पास है, जिसका कार्यालय भी नगर में ही स्थित है.

जर्जर हालत में स्वामी राम तीर्थ भवन.

गौर हो कि टिहरी झील किनारे कोटी कालोनी में बना संत स्वामी राम तीर्थ का भवन (गोलकोठी) देखरेख के अभाव में जर्जर होता जा रहा है. भवन में कई जगह दरारें पड़ चुकी हैं, जो समय के साथ बढ़ती जा रही हैं, अगर समय रहते इन दरारों की मरम्मत नहीं की गई तो आने वाले दिनों में भवन हादसों को दावत दे सकता है. इस भवन की देखरेख की जिम्मेदारी टिहरी झील विकास प्राधिकरण की है.

जानकारी होने के बाद भी टिहरी झील विकास प्राधिकरण द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है. 2006 में यह भवन बना था, जो लंबे समय से बदहाल बना हुआ है. ऐसे में देखना होगा कि कब टिहरी झील विकास प्राधिकरण नींद से जागता है? और भवन की मरम्मत की दिशा में क्या कदम उठाता है. वहीं स्थानीय लोग कई बार इस संबंध में प्राधिकरण के अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं. हैरानी की बात यह है कि इस संबंध में विभागीय अधिकारी अनजान बने हुए हैं.

कौन थे स्वामी राम तीर्थ?
स्वामी राम तीर्थ का जन्म साल 1873 में पंजाब गुजरावाला जिले मुरारीवाला ग्राम में हुआा था. स्वामीजी का देवभूमि से गहरा नाता रहा. स्वामी राम तीर्थ ने उच्च शिक्षा लाहौर से प्राप्त की. साल 1891 में पंजाब विश्वविद्यालय की बीए परीक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान हासिल किया. जिसके बाद वे उसी कालेज में प्रोफेसर नियुक्त हो गए. वे अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा निर्धन छात्रों के अध्ययन के लिये देते थे. लाहौर में ही उन्हें स्वामी विवेकानन्द के प्रवचन सुनने तथा सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला जिसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा.

बाद में स्वामी रामतीर्थ ने सभी बन्धनों से मुक्त होकर संन्यास ले लिया और तपस्या में लीन हो गए, लेकिन समाज के लिए वे कार्य करते रहे. अपने प्रवास के दौरान उनकी भेंट टिहरी रियासत के तत्कालीन नरेश कीर्तिशाह से हुई. स्वामी रामतीर्थ के सम्पर्क में आकर वे भी पूर्ण आस्तिक हो गये. उनका गढ़वाल क्षेत्र से खासा प्रेम रहा जिस वजह से उनका टिहरी में भवन बनाया गया, जो आज स्वामी राम तीर्थ के स्मारक के रूप में जाना जाता है.

टिहरी: नगर के टिहरी झील किनारे कोटी कालोनी में बना संत स्वामी राम तीर्थ का भवन (गोलकोठी) इन दिनों देखरेख के अभाव में बदहाली के आंसू रो रहा है. जिसको इसके देखरेख का जिम्मा सौंपा हुआ है वे कुम्भकरणीय नींद में हैं. भवन में पड़ी दरारें इसकी तस्दीक कर रही हैं, जिनकी आज तक मरम्मत करने की जहमत नहीं उठाई गई है, जबकि इस भवन की देखरेख की जिम्मेदारी टिहरी झील विकास प्राधिकरण के पास है, जिसका कार्यालय भी नगर में ही स्थित है.

जर्जर हालत में स्वामी राम तीर्थ भवन.

गौर हो कि टिहरी झील किनारे कोटी कालोनी में बना संत स्वामी राम तीर्थ का भवन (गोलकोठी) देखरेख के अभाव में जर्जर होता जा रहा है. भवन में कई जगह दरारें पड़ चुकी हैं, जो समय के साथ बढ़ती जा रही हैं, अगर समय रहते इन दरारों की मरम्मत नहीं की गई तो आने वाले दिनों में भवन हादसों को दावत दे सकता है. इस भवन की देखरेख की जिम्मेदारी टिहरी झील विकास प्राधिकरण की है.

जानकारी होने के बाद भी टिहरी झील विकास प्राधिकरण द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है. 2006 में यह भवन बना था, जो लंबे समय से बदहाल बना हुआ है. ऐसे में देखना होगा कि कब टिहरी झील विकास प्राधिकरण नींद से जागता है? और भवन की मरम्मत की दिशा में क्या कदम उठाता है. वहीं स्थानीय लोग कई बार इस संबंध में प्राधिकरण के अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं. हैरानी की बात यह है कि इस संबंध में विभागीय अधिकारी अनजान बने हुए हैं.

कौन थे स्वामी राम तीर्थ?
स्वामी राम तीर्थ का जन्म साल 1873 में पंजाब गुजरावाला जिले मुरारीवाला ग्राम में हुआा था. स्वामीजी का देवभूमि से गहरा नाता रहा. स्वामी राम तीर्थ ने उच्च शिक्षा लाहौर से प्राप्त की. साल 1891 में पंजाब विश्वविद्यालय की बीए परीक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान हासिल किया. जिसके बाद वे उसी कालेज में प्रोफेसर नियुक्त हो गए. वे अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा निर्धन छात्रों के अध्ययन के लिये देते थे. लाहौर में ही उन्हें स्वामी विवेकानन्द के प्रवचन सुनने तथा सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला जिसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा.

बाद में स्वामी रामतीर्थ ने सभी बन्धनों से मुक्त होकर संन्यास ले लिया और तपस्या में लीन हो गए, लेकिन समाज के लिए वे कार्य करते रहे. अपने प्रवास के दौरान उनकी भेंट टिहरी रियासत के तत्कालीन नरेश कीर्तिशाह से हुई. स्वामी रामतीर्थ के सम्पर्क में आकर वे भी पूर्ण आस्तिक हो गये. उनका गढ़वाल क्षेत्र से खासा प्रेम रहा जिस वजह से उनका टिहरी में भवन बनाया गया, जो आज स्वामी राम तीर्थ के स्मारक के रूप में जाना जाता है.

Intro:टिहरी झील के किनारे कोटी कालोनी में बना संत स्वामी राम तीर्थ गोलकोठी के भवन में दरार पडी शासन प्रशासन बेखबरBody:आज से 118 साल पर्व दीपावली के दिन प्रसिद्ध संत स्वामी राम तीर्थ ने भिंलगना नदी के सिमलासू तट में ली थी जल समाधि
आपको बता दे कि प्रसिद्ध संत स्वामी राम तीर्थ का पुरानी टिहरी से बहुत लगाव रहा जैसे ही पुरानी टिहरी में टिहरी बाध की झील भरने के बाद स्वामी राम तीर्थ स्मारक ओर गोलकोटी को कोटी कोलानी में बनाया गयालेकिन 2006 से लेकर अब तक स्वामी राम तीर्थ के नाम से बना भवन की हालात दिन प्रति दिन खराब हो रही हे साथ ही इस भवन के प्रवेश करते ही पूरे प्रागण में दरार पडने लग गई जिससे स्वामी राम तीर्थ के नाम से बनाये गये भवन की स्थिति दयनीय बनी हे।

आश्चर्य की बात हे कि स्वामी राम तीर्थ नके भवन में टिहरी झील बिकास प्रधिकरण का कार्यालय बना हुआ हे लेकिन वह कार्यालय नाम का बना हे यह पर कोई कर्मचारी अधिकारी नही बैठता ओर ना ही इसके प्रगण में पडी दरार के बारे में जानकारी हे जब ई टी बी भारत की टीम इस जगह पर गई तो प्रागण में पडी दरार की जानकारी प्र्यटन बिभाग के अधिकारियो को दी जिन्होने इस दरार के बारे में अनभिज्ञता जताई

अगर जल्दी ही स्वामी राम तीर्थ भवन गोलकोटी का रख रखन सही से नही किया गया तो कुछ समय बाद करोडो की लागत से बना यह भवन घ्वस्त हो जायेगा।

Conclusion:कोन थे स्वामी राम तीर्थ
यह वह संत रहे जिनका जन्म दीपावली के दिन हुआा ओर दीपावली के हि नही जल समाधि ली
स्वामी राम तीर्थ का जन्म 1873 में दीपावली के दिन पजाब गुजरावाला जिले मुरारीवाला ग्राम में हुआा था
इनके बचपन का नाम तीर्थराम था। विद्यार्थी जीवन में इन्होंने अनेक कष्टों का सामना किया। भूख और आर्थिक बदहाली के बीच भी उन्होंने अपनी माध्यमिक और फिर उच्च शिक्षा पूरी की। पिता ने बाल्यावस्था में ही उनका विवाह भी कर दिया था। वे उच्च शिक्षा के लिए लाहौर चले गए।सन् 1891 में पंजाब विश्वविद्यालय की बी० ए० परीक्षा में प्रान्त भर में सर्वप्रथम आये। इसके लिए इन्हें 90 रुपये मासिक की छात्रवृत्ति भी मिली। अपने अत्यंत प्रिय विषय गणित में सर्वोच्च अंकों से एम० ए० उत्तीर्ण कर वे उसी कालेज में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हो गए। वे अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा निर्धन छात्रों के अध्ययन के लिये दे देते थे।लाहौर में ही उन्हें स्वामी विवेकानन्द के प्रवचन सुनने तथा सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला। ठन पर दो महात्माओं का विशेष प्रभाव पड़ा दृ द्वारकापीठ के तत्कालीन शंकराचार्य और स्वामी विवेकानन्द।स्वामी रामतीर्थ ने सभी बन्धनों से मुक्त होकर एक संन्यासी के रूप में घोर तपस्या की।

प्रवास के समय उनकी भेंट टिहरी रियासत के तत्कालीन नरेश कीर्तिशाह से हुई। टिहरी नरेश पहले घोर अनीश्वरवादी थे। स्वामी रामतीर्थ के सम्पर्क में आकर वे भी पूर्ण आस्तिक हो गये। महाराजा ने स्वामी रामतीर्थ के जापान में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में जाने की व्यवस्था की। वे जापान से अमरीका तथा मिस्र भी गये। विदेश यात्रा में उन्होंने भारतीय संस्कृति का उद्घोष किया तथा विदेश से लौटकर भारत में भी अनेक स्थानों पर प्रवचन दिये। उनके व्यावहारिक वेदान्त पर विद्वानों ने सर्वत्र चर्चा की।
वर्ष 1901 में प्रो॰ तीर्थराम ने लाहौर से अन्तिम विदा लेकर परिजनों सहित हिमालय की ओर प्रस्थान किया। अलकनन्दा व भागीरथी के पवित्र संगम पर पहूँचकर उन्होंने पैदल मार्ग से गंगोत्री जाने का मन बनाया। टिहरी के समीप पहुँचकर नगर में प्रवेश करने की बजाय वे कोटी ग्राम में शाल्माली वृक्ष के नीचे ठहर गये। ग्रीष्मकाल होने के कारण उन्हें यह स्थान सुविधाजनक लगा। मध्यरात्रि में प्रो॰ तीर्थराम को आत्म.साक्षात्कार हुआ। उनके मन के सभी भ्रम और संशय मिट गये। उन्होंने स्वयं को ईश्वरीय कार्य के लिए समर्पित कर दिया और वह प्रो॰ तीर्थराम से रामतीर्थ हो गये।

स्वामी रामतीर्थ ने जापान में लगभग एक मास और अमेरिका में लगभग दो वर्ष तक प्रवास किया। वे जहाँ.जहाँ पहुँचेए लोगों ने उनका एक सन्त के रूप में स्वागत किया। उनके व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण थाए जो भी उन्हें देखता वह अपने अन्दर एक शान्तिमूलक चेतना का अनुभव करता। दोनों देशों में राम ने एक ही संदेश दिया.श्आप लोग देश और ज्ञान के लिये सहर्ष प्राणों का उत्सर्ग कर सकते हैं। यह वेदान्त के अनुकूल है। पर आप जिन सुख साधनों पर भरोसा करते हैं उसी अनुपात में इच्छाएँ बढ़ती हैं। शाश्वत शान्ति का एकमात्र उपाय है आत्मज्ञान। अपने आप को पहचानोए तुम स्वयं ईश्वर हो।श्
सन् 1904 में स्वदेश लौटने पर लोगों ने राम से अपना एक समाज खोलने का आग्रह किया। राम ने बाँहें फैलाकर कहाए भारत में जितनी सभा समाजें हैंए सब राम की अपनी हैं। राम मतैक्य के लिए हैंए मतभेद के लिए नहींय देश को इस समय आवश्यकता है एकता और संगठन कीए राष्ट्रधर्म और विज्ञान साधना कीए संयम और ब्रह्मचर्य की।

टिहरी ;गढ़वालद्ध से उन्हें अगाध स्नेह था। वे पुनरू यहाँ लौटकर आये। टिहरी उनकी आध्यात्मिक प्रेरणास्थली थी और वही उनकी मोक्षस्थली भी बनी। 1906 की दीपावली के दिन उन्होंने मृत्यु के नाम एक सन्देश लिखकर गंगा में जलसमाधि ले ली।

बाइट गिरिश घिल्डियाल पुrनी टिहरी निवासी

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.