टिहरी: नगर के टिहरी झील किनारे कोटी कालोनी में बना संत स्वामी राम तीर्थ का भवन (गोलकोठी) इन दिनों देखरेख के अभाव में बदहाली के आंसू रो रहा है. जिसको इसके देखरेख का जिम्मा सौंपा हुआ है वे कुम्भकरणीय नींद में हैं. भवन में पड़ी दरारें इसकी तस्दीक कर रही हैं, जिनकी आज तक मरम्मत करने की जहमत नहीं उठाई गई है, जबकि इस भवन की देखरेख की जिम्मेदारी टिहरी झील विकास प्राधिकरण के पास है, जिसका कार्यालय भी नगर में ही स्थित है.
गौर हो कि टिहरी झील किनारे कोटी कालोनी में बना संत स्वामी राम तीर्थ का भवन (गोलकोठी) देखरेख के अभाव में जर्जर होता जा रहा है. भवन में कई जगह दरारें पड़ चुकी हैं, जो समय के साथ बढ़ती जा रही हैं, अगर समय रहते इन दरारों की मरम्मत नहीं की गई तो आने वाले दिनों में भवन हादसों को दावत दे सकता है. इस भवन की देखरेख की जिम्मेदारी टिहरी झील विकास प्राधिकरण की है.
जानकारी होने के बाद भी टिहरी झील विकास प्राधिकरण द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है. 2006 में यह भवन बना था, जो लंबे समय से बदहाल बना हुआ है. ऐसे में देखना होगा कि कब टिहरी झील विकास प्राधिकरण नींद से जागता है? और भवन की मरम्मत की दिशा में क्या कदम उठाता है. वहीं स्थानीय लोग कई बार इस संबंध में प्राधिकरण के अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं. हैरानी की बात यह है कि इस संबंध में विभागीय अधिकारी अनजान बने हुए हैं.
कौन थे स्वामी राम तीर्थ?
स्वामी राम तीर्थ का जन्म साल 1873 में पंजाब गुजरावाला जिले मुरारीवाला ग्राम में हुआा था. स्वामीजी का देवभूमि से गहरा नाता रहा. स्वामी राम तीर्थ ने उच्च शिक्षा लाहौर से प्राप्त की. साल 1891 में पंजाब विश्वविद्यालय की बीए परीक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान हासिल किया. जिसके बाद वे उसी कालेज में प्रोफेसर नियुक्त हो गए. वे अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा निर्धन छात्रों के अध्ययन के लिये देते थे. लाहौर में ही उन्हें स्वामी विवेकानन्द के प्रवचन सुनने तथा सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला जिसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा.
बाद में स्वामी रामतीर्थ ने सभी बन्धनों से मुक्त होकर संन्यास ले लिया और तपस्या में लीन हो गए, लेकिन समाज के लिए वे कार्य करते रहे. अपने प्रवास के दौरान उनकी भेंट टिहरी रियासत के तत्कालीन नरेश कीर्तिशाह से हुई. स्वामी रामतीर्थ के सम्पर्क में आकर वे भी पूर्ण आस्तिक हो गये. उनका गढ़वाल क्षेत्र से खासा प्रेम रहा जिस वजह से उनका टिहरी में भवन बनाया गया, जो आज स्वामी राम तीर्थ के स्मारक के रूप में जाना जाता है.