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गढ़वाल राइफल के सूत्रधार सूबेदार मेजर बलभद्र की मूर्ति का अनावरण

कोटद्वार के आईएचएमएस संस्थान में सूबेदार मेजर बलभद्र नेगी की मूर्ति का अनावरण किया गया. सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी को ही गढ़वाल राइफल का सूत्रधार कहा जाता है.

Subedar Major Balbhadra Singh Negi
सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी
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Published : Mar 24, 2021, 8:42 AM IST

कोटद्वारः पौड़ी जिले के कोटद्वार में बलभद्र सिंह नेगी एजुकेशन सोसायटी आईएचएमएस संस्थान द्वारा गढ़वाल राइफल के सूत्रधार सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी की मूर्ति का भव्य अनावरण हुआ. सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी को गढ़वाल राइफल रेजीमेंट के जन्म का श्रेय दिया जाता है. सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी की स्मृति में उनकी तीसरी पीढ़ी ने बलभद्र सिंह नेगी एजुकेशन सोसाइटी का गठन किया.

सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी की मूर्ति का अनावरण

मुख्य अतिथि ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह रावत ने सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी की शौर्य गाथा के बारे में बताया कि वो गढ़वाल की शान हैं. गढ़वाल क्षेत्र की तीलू रौतेली जैसे वीरांगनाओं से उनकी तुलना होती है. इनको तो बहुत पहले ही सम्मान देना चाहिए था. यही एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने गढ़वालियों का नाम स्वर्ण अंक्षरों में अंकित कराया. उन्होंने गोरखा बटालियन में दिखाया कि गढ़वाली सिपाही गोरखा से बहुत अच्छा कार्य कर सकते हैं. कम संख्या में होते हुए भी गोरखा रेजीमेंट में गढ़वाली सिपाहियों ने बहुत बढ़िया काम किया. वह ऐसे व्यक्ति थे जो कि कमांडर इन चीफ रॉबर्ट्स और तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन के करीब थे और उनसे अपनी बात कह सकते थे.

ये भी पढ़ेंः ग्राम प्रहरियों का मानदेय बढ़कर हुआ 2 हजार, कर्णप्रयाग में 3 मोटर मार्ग को मंजूरी

सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी के बारे में जानिए
सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह का जन्म और 1829 में गलकोट अस्वालस्यूं, पौड़ी गढ़वाल में हुआ था. उनके पिता धन सिंह नेगी अस्वालस्यूं पट्टी के आजीवन पटवारी रहे. गढ़वाल राइफल के जन्मदाता पहाड़ी जेम्स बॉन्ड, आंग्ल अफगान युद्ध के नायक सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जिन्होंने सन 1879 में कंधार के युद्ध में अफगानों के विरुद्ध अपनी अद्भुत हिम्मत, वीरता और लड़ाकू क्षमता को दिखाया था. इस वजह से उन्हें ऑर्डर ऑफ मेरिट, ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया, सरदार बहादुर जैसे कई सम्मान दिए गए थे.

ब्रिटिश अवार्ड ऑफ मेरिट से हुए थे सम्मानित

1879-80 में द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध में सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी के युद्ध कौशल से ब्रिटिश हुकूमत बहुत प्रभावित हुई थी. उन्होंने बलभद्र को ब्रिटिश अवार्ड ऑफ मेरिट से सम्मानित किया. सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी की गढ़वाली रेजीमेंट बनाने की इच्छा थी. इसके लिए उन्होंने तत्कालीन प्रधान सेनापति रॉबर्ट्स से कहा और उन्होंने वायसराय लॉर्ड डफरिन को इसकी अनुशंसा का पत्र भेजा.

गढ़वाल रेजीमेंट बनवाने का श्रेय

आखिरकार अप्रैल 1887 में गोरखा राइफल की दूसरी बटालियन बनाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने आदेश दिए. इसमें 6 कंपनियां गढ़वाली सैनिकों की और दो गोरखा सैनिकों की शामिल की गईं. 5 मई 1887 को कुमाऊं के अल्मोड़ा में लेफ्टिनेंट कर्नल ईपी मेन वायरिंग के नेतृत्व में पहली गढ़वाली बटालियन खड़ी कर दी गई. 4 नवंबर 1887 को यह बटालियन पहली बार लैंसडाउन पहुंची. लैंसडाउन में छावनी बसाने का सुझाव भी सूबेदार बलदेव सिंह ने दिया था. यह तो वह पल था जब पहाड़ियों के लिए एक अलग से छावनी बनाई गई. 1887 में सेना से अवकाश ग्रहण करने के बाद ब्रिटिश सरकार ने उनकी सराहनीय सैनिक सेवाओं का सम्मान किया. घोसी खाता कोटद्वार में 302 एकड़ भूमि को बलभद्रपुर का नाम दिया गया.

कोटद्वारः पौड़ी जिले के कोटद्वार में बलभद्र सिंह नेगी एजुकेशन सोसायटी आईएचएमएस संस्थान द्वारा गढ़वाल राइफल के सूत्रधार सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी की मूर्ति का भव्य अनावरण हुआ. सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी को गढ़वाल राइफल रेजीमेंट के जन्म का श्रेय दिया जाता है. सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी की स्मृति में उनकी तीसरी पीढ़ी ने बलभद्र सिंह नेगी एजुकेशन सोसाइटी का गठन किया.

सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी की मूर्ति का अनावरण

मुख्य अतिथि ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह रावत ने सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी की शौर्य गाथा के बारे में बताया कि वो गढ़वाल की शान हैं. गढ़वाल क्षेत्र की तीलू रौतेली जैसे वीरांगनाओं से उनकी तुलना होती है. इनको तो बहुत पहले ही सम्मान देना चाहिए था. यही एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने गढ़वालियों का नाम स्वर्ण अंक्षरों में अंकित कराया. उन्होंने गोरखा बटालियन में दिखाया कि गढ़वाली सिपाही गोरखा से बहुत अच्छा कार्य कर सकते हैं. कम संख्या में होते हुए भी गोरखा रेजीमेंट में गढ़वाली सिपाहियों ने बहुत बढ़िया काम किया. वह ऐसे व्यक्ति थे जो कि कमांडर इन चीफ रॉबर्ट्स और तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन के करीब थे और उनसे अपनी बात कह सकते थे.

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सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह नेगी के बारे में जानिए
सूबेदार मेजर बलभद्र सिंह का जन्म और 1829 में गलकोट अस्वालस्यूं, पौड़ी गढ़वाल में हुआ था. उनके पिता धन सिंह नेगी अस्वालस्यूं पट्टी के आजीवन पटवारी रहे. गढ़वाल राइफल के जन्मदाता पहाड़ी जेम्स बॉन्ड, आंग्ल अफगान युद्ध के नायक सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी जिन्होंने सन 1879 में कंधार के युद्ध में अफगानों के विरुद्ध अपनी अद्भुत हिम्मत, वीरता और लड़ाकू क्षमता को दिखाया था. इस वजह से उन्हें ऑर्डर ऑफ मेरिट, ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया, सरदार बहादुर जैसे कई सम्मान दिए गए थे.

ब्रिटिश अवार्ड ऑफ मेरिट से हुए थे सम्मानित

1879-80 में द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध में सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी के युद्ध कौशल से ब्रिटिश हुकूमत बहुत प्रभावित हुई थी. उन्होंने बलभद्र को ब्रिटिश अवार्ड ऑफ मेरिट से सम्मानित किया. सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी की गढ़वाली रेजीमेंट बनाने की इच्छा थी. इसके लिए उन्होंने तत्कालीन प्रधान सेनापति रॉबर्ट्स से कहा और उन्होंने वायसराय लॉर्ड डफरिन को इसकी अनुशंसा का पत्र भेजा.

गढ़वाल रेजीमेंट बनवाने का श्रेय

आखिरकार अप्रैल 1887 में गोरखा राइफल की दूसरी बटालियन बनाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने आदेश दिए. इसमें 6 कंपनियां गढ़वाली सैनिकों की और दो गोरखा सैनिकों की शामिल की गईं. 5 मई 1887 को कुमाऊं के अल्मोड़ा में लेफ्टिनेंट कर्नल ईपी मेन वायरिंग के नेतृत्व में पहली गढ़वाली बटालियन खड़ी कर दी गई. 4 नवंबर 1887 को यह बटालियन पहली बार लैंसडाउन पहुंची. लैंसडाउन में छावनी बसाने का सुझाव भी सूबेदार बलदेव सिंह ने दिया था. यह तो वह पल था जब पहाड़ियों के लिए एक अलग से छावनी बनाई गई. 1887 में सेना से अवकाश ग्रहण करने के बाद ब्रिटिश सरकार ने उनकी सराहनीय सैनिक सेवाओं का सम्मान किया. घोसी खाता कोटद्वार में 302 एकड़ भूमि को बलभद्रपुर का नाम दिया गया.

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