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मुर्गी पालन कर स्वरोजगार को बढ़ावा दे रही शीतल, युवाओं के लिए बनीं प्रेरणास्रोत - Sheetal Rawat of Milai village doing poultry farmin

महज 17 साल की उम्र में मिलाई गांव की रहने वाली शीतल स्वरोजगार कर क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभर रही हैं. सिर से पिता का साया उठने के बाद शीतल ने हालातों को हराकर स्वरोजगार कर परिवार की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है.

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मुर्गी पालन कर स्वरोजगार को बढ़ावा दे रही शीतल
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Published : Mar 26, 2021, 5:39 PM IST

श्रीनगर: अगर कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति मन में हो तो आसमां में भी छेद किया जा सकता है. पाबौ की रहने वाले शीतल ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया है. बचपन में ही पिता का साया सर से उठने के बाद भी शीतल ने हार नहीं मानी. शीतल ने हालातों को हराकर अपने पैरों पर खड़ा होने के दिन रात मेहनत की. जिसके लिए उसने ने मुर्गी पालन को जरिया बनाया. मुर्गी पालन के व्यवसाय में दिन रात की मेहनत और लगन से शीतल सिफर से शिखर तक पहुंचीं. आज इसी के बल पर शीतल अपने परिवार का पालन-पोषण करने के साथ ही क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन रही है.

श्रीनगर विधानसभा के विकासखंड पाबौ के अंतर्गत आने वाले मिलाई गांव की शीतल रावत युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन कर उभरी रही है. शीतल राजकीय इंटर कॉलेज चिपलघाट की छात्रा है, जो शिक्षा के साथ-साथ खुद को स्वरोजगार से जोड़कर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने में लगी है.

मुर्गी पालन कर स्वरोजगार को बढ़ावा दे रही शीतल

पढ़ें- केंद्र के नए कृषि कानूनों का विरोध में आज 'भारत बंद'

शीतल बताती है कि उसके पिता का देहांत एक सड़क हादसे में हो गया था. तब से उसकी परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई. पिता के जाने के बाद शीतल ने बखूबी परिवार की जिम्मेदारियों को उठाया. खुद का स्वरोजगार से जोड़ते हुए शीतल ने परिवार को मजबूत करने का प्रण लिया. शीतल ने अपने घर में ब्लॉक की सहायता से मुर्गी पालन का कार्य शुरू किया.

पढ़ें- जमकर हो रहा सरकारी पैसे का दुरुपयोग, CM के हेलीकॉप्टर से यूपी में घूम रहे BJP के नेता

शीतल ने शुरू में बॉयलर प्रजाति के 100 से अधिक चूजे लाकर मुर्गी पालन का काम शुरू किया. जिससे अब शीतल अंडे और मुर्गी बेचकर अपनी आय को बढ़ा रही है.

पढ़ें- उत्तराखंड के माननीय कितने गंभीर? नियमों की दुहाई देने वाले खुद कोविड पॉजिटिव

आजकल खाद्यान्नों की बढ़ती मांग ने इस व्यवसाय को काफी बढ़ावा दिया है. अंडे की बढ़ती मांग को देखते हुए मुर्गी पालन अच्छी कमाई वाला रोजगार का साधन होता जा रहा है. कम पूंजी में मोटी कमाई का यह एक बेहतर रास्ता साबित हो रहा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि बढ़ती आबादी और घटते रोजगार में आजकल बेरोजगार युवक कृषि और पशुपालन को व्यवसाय के रूप में बहुत तेजी से अपना रहे हैं. इसका प्रमुख कारण इनसे होने वाले अतिरिक्त फायदा है. देश में रोजगार तलाश कर रहे युवा इसे रोजगार के तौर पर अपना रहे हैं, शीतल जैसी लड़कियां ऐसा कर न केवल क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन रही हैं, बल्कि ऐसा कर वह गांवों से पलायन को रोकने का संदेश दे रही हैं.

पढ़ें- राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सीने में दर्द की शिकायत, हरिद्वार दौरा रद्द

कैसे करें मुर्गी पालन की शुरुआत

20 से 30 देसी मुर्गियों से इस व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं. इन मुर्गियों के 1 दिन के चूजों की कीमत लगभग 30 से 60 रुपये तक हो सकती है. देसी मुर्गियों में अंडे सेने का गुण होता है, जिसका लाभ यह होता है कि किसानों को बार-बार चूजे खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. देसी मुर्गी साल में 160 से 180 अंडे देती हैं, जिनका बाजार में मूल्य अधिक होता है. देसी मुर्गी के अंडे की मांग भी बहुत ज्यादा है. आजकल इसको जैविक अंडा के रूप मे इस्तेमाल किया जा रहा है. इसकी कीमत आमतौर पर साधारण अंडे के मुकाबले ज्यादा होती है और इसकी मार्केटिंग मे कोई परेशानी नहीं होती है.

पढ़ें- दिल्ली: भारत बंद के चलते पटरियों पर बैठे किसान, रेल यातायात प्रभावित

किन नस्लों का मुर्गी पालना बेहतर

पोल्ट्री में असील, कड़कनाथ, ग्रामप्रिया, स्वरनाथ, केरी श्यामा, निर्भीक, श्रीनिधि, वनराजा, कारी उज्जवल और कारी उत्तम जैसी नस्लों का पालन किया जाता है.

श्रीनगर: अगर कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति मन में हो तो आसमां में भी छेद किया जा सकता है. पाबौ की रहने वाले शीतल ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया है. बचपन में ही पिता का साया सर से उठने के बाद भी शीतल ने हार नहीं मानी. शीतल ने हालातों को हराकर अपने पैरों पर खड़ा होने के दिन रात मेहनत की. जिसके लिए उसने ने मुर्गी पालन को जरिया बनाया. मुर्गी पालन के व्यवसाय में दिन रात की मेहनत और लगन से शीतल सिफर से शिखर तक पहुंचीं. आज इसी के बल पर शीतल अपने परिवार का पालन-पोषण करने के साथ ही क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन रही है.

श्रीनगर विधानसभा के विकासखंड पाबौ के अंतर्गत आने वाले मिलाई गांव की शीतल रावत युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन कर उभरी रही है. शीतल राजकीय इंटर कॉलेज चिपलघाट की छात्रा है, जो शिक्षा के साथ-साथ खुद को स्वरोजगार से जोड़कर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने में लगी है.

मुर्गी पालन कर स्वरोजगार को बढ़ावा दे रही शीतल

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शीतल बताती है कि उसके पिता का देहांत एक सड़क हादसे में हो गया था. तब से उसकी परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई. पिता के जाने के बाद शीतल ने बखूबी परिवार की जिम्मेदारियों को उठाया. खुद का स्वरोजगार से जोड़ते हुए शीतल ने परिवार को मजबूत करने का प्रण लिया. शीतल ने अपने घर में ब्लॉक की सहायता से मुर्गी पालन का कार्य शुरू किया.

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शीतल ने शुरू में बॉयलर प्रजाति के 100 से अधिक चूजे लाकर मुर्गी पालन का काम शुरू किया. जिससे अब शीतल अंडे और मुर्गी बेचकर अपनी आय को बढ़ा रही है.

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आजकल खाद्यान्नों की बढ़ती मांग ने इस व्यवसाय को काफी बढ़ावा दिया है. अंडे की बढ़ती मांग को देखते हुए मुर्गी पालन अच्छी कमाई वाला रोजगार का साधन होता जा रहा है. कम पूंजी में मोटी कमाई का यह एक बेहतर रास्ता साबित हो रहा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि बढ़ती आबादी और घटते रोजगार में आजकल बेरोजगार युवक कृषि और पशुपालन को व्यवसाय के रूप में बहुत तेजी से अपना रहे हैं. इसका प्रमुख कारण इनसे होने वाले अतिरिक्त फायदा है. देश में रोजगार तलाश कर रहे युवा इसे रोजगार के तौर पर अपना रहे हैं, शीतल जैसी लड़कियां ऐसा कर न केवल क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन रही हैं, बल्कि ऐसा कर वह गांवों से पलायन को रोकने का संदेश दे रही हैं.

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कैसे करें मुर्गी पालन की शुरुआत

20 से 30 देसी मुर्गियों से इस व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं. इन मुर्गियों के 1 दिन के चूजों की कीमत लगभग 30 से 60 रुपये तक हो सकती है. देसी मुर्गियों में अंडे सेने का गुण होता है, जिसका लाभ यह होता है कि किसानों को बार-बार चूजे खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. देसी मुर्गी साल में 160 से 180 अंडे देती हैं, जिनका बाजार में मूल्य अधिक होता है. देसी मुर्गी के अंडे की मांग भी बहुत ज्यादा है. आजकल इसको जैविक अंडा के रूप मे इस्तेमाल किया जा रहा है. इसकी कीमत आमतौर पर साधारण अंडे के मुकाबले ज्यादा होती है और इसकी मार्केटिंग मे कोई परेशानी नहीं होती है.

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किन नस्लों का मुर्गी पालना बेहतर

पोल्ट्री में असील, कड़कनाथ, ग्रामप्रिया, स्वरनाथ, केरी श्यामा, निर्भीक, श्रीनिधि, वनराजा, कारी उज्जवल और कारी उत्तम जैसी नस्लों का पालन किया जाता है.

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