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सरकार की योजनाओं से वंचित भेड़-बकरी पालक, खानाबदोश जीवन जीने को मजबूर

उत्तरकाशी के भेड़-बकरी पालक इन दिनों खानाबदोश जिंदगी जीने को मजबूर हैं. उनका कहना है कि सरकार उनकी ओर ध्यान नहीं दे रही है. उनके द्वारा तैयार कच्चे माल की कीमत लगातार गिरती जा रही है, जिससे उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

pauri news
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Published : Dec 16, 2019, 12:59 PM IST

Updated : Dec 16, 2019, 2:14 PM IST

पौड़ी: उत्तराखंड के अनेक जनपदों के भेड़-बकरी पालक इन दिनों गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं. ये लोग पीढ़ी दर पीढ़ी से भेड़-बकरी पालन का काम कर रहे हैं. वे समय-समय पर अपना जनपद छोड़कर विभिन्न जनपदों में भेड़ बकरियों को लेकर पहुंचते हैं. वहीं, इन दिनों पौड़ी पहुंचे भेड़ बकरी पालकों ने बताया कि लगातार बदल रहे समय के साथ-साथ उन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. आज भी भेड़-बकरी पालक खानाबदोश जीवन जीने को मजबूर हैं.

गुमनामी में जी रहे भेड़ पालक.

केंद्र और राज्य सरकार की ओर से समय-समय पर लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन धरातल पर कुछ नजर नहीं आता. पिछले लंबे समय से उत्तरकाशी के भेड़ पालक सर्दियों के समय मैदानी क्षेत्रों का रुख करते हैं और सर्दी खत्म होने के बाद अपने क्षेत्रों की ओर लौट आते हैं. इनको एक-स्थान से दूसरे स्थान की दूरी तय करने में लगभग 4 महीने का समय लगता है.

भेड़ पालकों का कहना है कि पहले भेड़ के ऊन का अच्छा दाम मिलता था, लेकिन उनके द्वारा तैयार कच्चे माल की कीमत भी लगातार गिरी है. इन्हें अपने माल की वास्तविक कीमत भी नहीं मिल पाती है. वे जैसे-तैसे अपने परिवार को चलाने को मजबूर हैं. बावजूद इसके सरकार की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. साथ ही वन विभाग द्वारा भी उन्हें समय-समय पर परेशान किया जाता है.

पढे़ं- पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन संसदीय कमेटी में MP अजय भट्ट को मिली जगह

भेड़ पालकों के मुताबिक वन विभाग द्वारा जंगलों में भेड़ों के साथ रोकटोक भी करते हैं. जिससे कि वह अपने काम को सही तरीके से नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने सरकार से भेड़ पालकों की तरफ ध्यान देने की मांग की है.

पौड़ी: उत्तराखंड के अनेक जनपदों के भेड़-बकरी पालक इन दिनों गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं. ये लोग पीढ़ी दर पीढ़ी से भेड़-बकरी पालन का काम कर रहे हैं. वे समय-समय पर अपना जनपद छोड़कर विभिन्न जनपदों में भेड़ बकरियों को लेकर पहुंचते हैं. वहीं, इन दिनों पौड़ी पहुंचे भेड़ बकरी पालकों ने बताया कि लगातार बदल रहे समय के साथ-साथ उन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. आज भी भेड़-बकरी पालक खानाबदोश जीवन जीने को मजबूर हैं.

गुमनामी में जी रहे भेड़ पालक.

केंद्र और राज्य सरकार की ओर से समय-समय पर लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन धरातल पर कुछ नजर नहीं आता. पिछले लंबे समय से उत्तरकाशी के भेड़ पालक सर्दियों के समय मैदानी क्षेत्रों का रुख करते हैं और सर्दी खत्म होने के बाद अपने क्षेत्रों की ओर लौट आते हैं. इनको एक-स्थान से दूसरे स्थान की दूरी तय करने में लगभग 4 महीने का समय लगता है.

भेड़ पालकों का कहना है कि पहले भेड़ के ऊन का अच्छा दाम मिलता था, लेकिन उनके द्वारा तैयार कच्चे माल की कीमत भी लगातार गिरी है. इन्हें अपने माल की वास्तविक कीमत भी नहीं मिल पाती है. वे जैसे-तैसे अपने परिवार को चलाने को मजबूर हैं. बावजूद इसके सरकार की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. साथ ही वन विभाग द्वारा भी उन्हें समय-समय पर परेशान किया जाता है.

पढे़ं- पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन संसदीय कमेटी में MP अजय भट्ट को मिली जगह

भेड़ पालकों के मुताबिक वन विभाग द्वारा जंगलों में भेड़ों के साथ रोकटोक भी करते हैं. जिससे कि वह अपने काम को सही तरीके से नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने सरकार से भेड़ पालकों की तरफ ध्यान देने की मांग की है.

Intro:जनपद उत्तरकाशी के रहने वाले लोग जो की रोजगार के चलते पीढ़ी दर पीढ़ी बकरी पालन का काम कर रहे हैं वह समय-समय पर अपना जनपद छोड़कर विभिन्न जनपदों में भेड़ बकरियों को लेकर पहुंचते हैं वहीं इन दिनों पौड़ी पहुंचे भेड़ बकरी पालकों ने बताया कि लगातार बदल रहे समय के साथ-साथ उनके समक्ष विभिन्न प्रकार की समस्याएं भी आ रही हैं पहले के मुकाबले इस काम में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पहले के समय मे भेड़ की ऊंन का अच्छा दाम मिलता था साथ ही जंगलों में भेड़ो के साथ रोकटोक भी कम थी। आज के समय में सरकार की ओर से उन पर विभिन्न पाबंदियां लगाई जा रही हैं जिससे कि वह अपने भेड़ बकरियों का जो काम है वह सही तरीके से नहीं कर पा रहे हैं और सरकार से गुजारिश कर रहे हैं कि सरकार उनकी तरफ ध्यान दें। व रोजगार के चलते अपना जनपद छोड़कर 4 महीने तक अन्य जनपदों में जंगलों में ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं।Body:केंद्र और राज्य सरकार की ओर से समय-समय पर स्थानीय रोजगार और लघु-कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए अनेकों योजनाओं का बखान क्या जाता है, मगर धरातल यह कुछ ओर ही नजर आता है, पिछले लंबे समय से उत्तरकाशी के भेड़ पालक सर्दियों के समय मैदानी क्षेत्रों का रुख करते हैं, यह भेड़ पालक पीढ़ियों से भेड़ और बकरी पालन का काम कर रहे है जिनका जीवन यापन का सहारा भी भेड़ पालन पर ही निर्भर रहता है। ये सर्द मौसम के समय मैदानी क्षेत्रों का रुख करते हैं और सर्द मौसम के खत्म हो जाने पर अपने अपने क्षेत्रों की ओर लौटने लगते हैं, इन भेड़ पालक को एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी तय करने में लगभग 4 महीने का समय लगता है। इनका कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में इनकी आमदनी में बहुत कमी आयी है, पहले वर्षो के मुकाबले इनके द्वारा तैयार कच्चे माल की कीमत भी लगातार गिरी है, और इन्हें अपने माल की वास्तविक कीमत भी नहीं मिल पाती है। ये बस जैसे-तैसे अपने परिवार को चला रहे हैं बताया कि लगातार उनके माल के भाव में गिरावट आई है गिरावट आने के बावजूद भी सरकार की ओर से इनके ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है ये सभी दो-दो की टोली में 400 से 500 भेड़-बकरी लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आ रहे हैं मगर उनके व्यवसाय की ओर सरकार ने कभी भी ध्यान नहीं दिया उन्होंने बताया कि वन विभाग द्वारा भी उन्हें समय-समय पर परेशान किया जाता है, अपने गृह जनपद छोड़ने के बाद इन्हें लगभग 4 महीने का समय जंगलों में बिताना पड़ता है, उसके बावजूद भी इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है, यह वास्तविकता है की सरकार कितनी धरातल पर काम कर रही है, वाकई में इन जैसे लोगों के रोजगार को बचाकर ही पलायान को रोका जा सकता है अन्यथा आने वाले समय में इनके आने वाली पीढ़ी भी आपने बुजुर्गों की इस भेड़-बकरी व्यवसाय को छोड़कर पलायन करने के लिए मजबूर हो जाएगी।
बाइट-खजान सिंह (भेड़-बकरी पालक)
बाइट-गंगा सिंह नेगी (भेड़-बकरी पालक)Conclusion:
Last Updated : Dec 16, 2019, 2:14 PM IST
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