श्रीनगर: चिपको आंदोलन को आज 50 साल पूरे हो गये हैं. आज ही के दिन उत्तराखंड की महिलाओं ने जंगलों को बचाने की ऐतिहासिक लड़ाई शुरू की थी. गौरा देवी और उनकी साथी महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर वन तस्करों से पेड़ों की बचाने की शुरुआत की थी. जिसके बाद धीरे-धीरे उनकी ये पहल पहले उत्तराखंड के दूसरे जिलों में फैली. उसके बाद देश के साथ ही दुनिया के दूसरे कोनों में इसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना गया. आज चिपको आंदोलन के 50 साल पूरे होने पर श्रीनगर गढ़वाल में विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया.
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र एवं समाज कार्य विभाग तथा पर्वतीय विकास शोध केंद्र के तत्वाधान में चिपको आंदोलन के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में गौरा देवी स्मृति सम्मान एवं व्याख्यानमाला का आयोजन किया. इस मौके पर खिर्सू ब्लॉक के मरोड़ा गांव की 80 वर्षीय शकुंतला खंडूड़ी को कृषि, उद्यान एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्य के लिए गौरा देवी स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया.
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इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि हिमालय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. जेपी पचौरी ने कहा चिपको आंदोलन का एक विशेष पहल यह है कि इससे हिमालय क्षेत्र में सदियों से कुंठित महिलाओं की शक्ति का परिचय करवाया है. पर्यावरण संरक्षण में चिपको आंदोलन में गौरा देवी के द्वारा किए गए कार्य भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में दिखाई देता है. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. हिमांशु बौड़ाई ने कहा आज हर किसी सफल आंदोलन में महिला यहां सबसे पहले दिखाई देती हैं. उत्तराखंड में शराब विरोधी आंदोलन हो या पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन, सभी आंदोलनों में महिलाओं ने अपनी स्पष्ट और प्रशंसनीय भागीदारी दी है.
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इस दौरान सम्मानित हुई 80 साल की शकुंतला खंडूड़ी ने कहा उन्हें हार्ट अटैक तक आया, लेकिन, उन्होंने कभी गांव छोड़ने के बारे में नहीं सोचा. वे अपने सिर पर चारा पत्ती लेकर आती हैं. उन्होंने कहा उनके दोनों बेटे सम्मानित पेशे से जुड़े हुए हैं, लेकिन, उसके बाद भी वे गांव में खेती बाड़ी में लगी रहती हैं. जिससे उनका स्वास्थ्य भी उत्तम बना रहता है. उन्होंने नौजवान पीढ़ी से गांवों में स्वरोजगार करने की अपील की है.